5 Top Tips for Art of Life Management
1.जीवन प्रबंधन की कला के लिए 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Art of Life Management),जीवन जीने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Living):
- जीवन प्रबंधन की कला के लिए 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Art of Life Management) के द्वारा जानेंगे कि कैसे जिएं? हमारे जीवन में अनेक उतार-चढ़ाव आते हैं।दोनों जीवन के अंग हैं,एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती है।जो इन उतार-चढ़ाव में चलना सीख जाता है उसके लिए जीवन जीना आसान हो जाता है।
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2.जीवन के सिद्धांतों को समझें (Understand the principles of life):
- जीवन प्रबंधन एक ऐसा विषय है,जिसे सीखने की जरूरत हर किसी को है।यदि उस विषय को समझने में कोई हिचकता है या आनाकानी करता है,तो भी जीवन में आने वाली परिस्थितियाँ उसे यह विषय सीखने के लिए मजबूर कर देती हैं।जिंदगी का हर पल हमें कुछ सिखाकर जाता है,लेकिन यदि व्यक्ति बिल्कुल भी होश में नहीं है,तो वह इसका लाभ नहीं ले सकता; अन्यथा जीवन में मिलने वाली असफलताएं,परेशानियां,चुनौतियां,अपमान,शारीरिक व मानसिक कष्ट यह बताते हैं कि जिंदगी जीने में कहीं कोई भूल हुई है,जिसका परिणाम आज भुगतना पड़ रहा है।यदि आज भी इसके जीने के तौर-तरीके नहीं सीखे गए और इन भूलों को दोहराते रह गए तो आने वाला भविष्य अंधकारमय-कष्टमय हो सकता है।निश्चित तौर पर जीवन को संवारने के लिए जीवन को गहराई से समझना जरूरी है।इसके सिद्धांतों को जानना जरूरी है और अपनी क्षमताओं को पहचानना और उनका सही नियोजन करना भी उतना ही जरूरी है।
- व्यक्ति अपने पूरे जीवन में खुशियां तलाशता है,फिर भी उसे वह तृप्ति नहीं मिल पाती,जिसकी वह तलाश करता है।वह सुकून उसको नहीं मिल पाता,जो उसे आत्मसंतुष्टि दे सके,सार्थकता का अनुभव करा सके।इसके लिए व्यक्ति को अपनी चाहतों के ढेर में से सही चाहत को तलाशना होगा।जो चाहतें व्यक्ति पूरी करने में लगा है,उसके पूरा हो जाने पर क्या वह संतुष्ट हो जाएगा या फिर उसकी अतृप्ति बढ़ जाएगी? ऐसा क्या है,जिसकी उसे परम आवश्यकता है,जिसके मिल जाने से उसकी अतृप्ति समाप्त हो सकती है,इस प्रश्न को बार-बार सोचना होगा और सही उत्तर की प्रतीक्षा करनी होगी।
- हमारा जीवन जिन शक्तियों से संचालित है,उनका हम सदुपयोग भी कर सकते हैं और दुरुपयोग भी।यह कार्य करने के लिए हम स्वतंत्र हैं,लेकिन हम जिस तरह का कार्य करेंगे,उसका फल भोगने के लिए परतंत्र हैं।वहां पर हमारी स्वतंत्रता समाप्त होती है और महाकाल की स्वतंत्रता आरंभ हो जाती है।इसलिए इस तथ्य को भली प्रकार समझकर हमें कर्म करना चाहिए।जिस तरह के परिणाम की हम आशा करते हैं,उसके अनुरूप कर्म करने का प्रयास करना चाहिए।यदि हमारे कर्म की क्षमता ज्यादा है तो परिणाम आशा से भी अच्छे मिल सकते हैं और यदि कर्म की क्षमता कम है तो परिणाम आशा के विपरीत मिल सकते हैं,लेकिन सदैव वर्तमान कर्म के आधार पर अपने भविष्य में मिलने वाले परिणामों का आकलन करना उचित नहीं हैं; क्योंकि मिलने वाले परिणाम हमारे कई शुभ व अशुभ कर्मों के फल हो सकते हैं।
- हमारे जीवन में कौन-सा कार्य कब फलीभूत होगा,यह व्यक्ति के संज्ञान में नहीं होता।कर्मों का परिपाक तो जन्म-जन्मान्तरों का खेल है और इस क्रम में विधाता ने कहीं कोई त्रुटि नहीं की है।सभी व्यक्तियों को अपने किए हुए शुभ कर्म एवं अशुभ कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है।कोई भी इससे बच नहीं सकता,चाहे वह भगवान ही क्यों ना हों।इस मामले में विधाता ने किसी के साथ कोई भी पक्षपात नहीं किया है।हर व्यक्ति समयानुसार अपने शुभ-अशुभ कर्मों के फलों का भोग करता है और यह प्रक्रिया तभी थमती है,जब व्यक्ति निष्काम भाव से प्रभु को समर्पित करते हुए निरंतर लंबे समय तक कर्म करता है।ऐसे किए गए निष्काम कर्म से व्यक्ति के जन्म-जन्मान्तरों के संस्कारों का नाश होता है और व्यक्ति सही अर्थों में कर्मों के रहस्य को,परमतत्त्व (Ultimate reality) को समझ पाता है।
3.जीवन के दोनों पक्षों को समझना जरूरी (It is important to understand both sides of life):
- हमारे जीवन के दो पक्ष हैं:एक दृश्य एवं दूसरा अदृश्य। दृश्य जीवन में हर व्यक्ति का बाहरी रूप,उसका व्यवहार,किए गए कर्म आदि दीखते हैं,जबकि आंतरिक जीवन में उसके विचार,रुचियाँ,इच्छाएँ एवं भावनाएँ आदि होती हैं,जो दिखाई नहीं पड़तीं,लेकिन व्यक्ति इन्हें महसूस करता है।व्यक्ति जो भी व्यवहार किसी वस्तु के प्रति करता है तो उस वस्तु पर किए गए व्यवहार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता; क्योंकि उसके अंदर विचार या भावनाएं नहीं होतीं,लेकिन यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति व्यवहार करता है तो उसकी भावनाएं प्रभावित होती हैं।अच्छा व्यवहार दूसरे व्यक्ति को अपना बना लेता है और बुरा व्यवहार उसकी भावनाओं को बुरी तरह से उद्वेलित कर देता है,जिससे उसकी भावनाएं भी अपनी प्रतिक्रिया देती हैं और वह उन्हें महसूस करता है; भले ही पूरी तरह कह न सके।भावनाओं की यह घुटन,पीड़ा ही दूसरे व्यक्ति के लिए संस्कार बन जाती है,जो उसका इस जन्म के साथ-साथ अन्य जन्मों में भी पीछा करती है,अपना हिसाब पूरा करती है।
- हिसाब पूरा करने का यह क्रम रिश्तों के रूप में होता है; जैसे:पति-पत्नी का रिश्ता,भाई-बहन का रिश्ता,मित्र या दुश्मनी का रिश्ता या अन्य कोई रिश्ता।सामान्यतः यह देखा जाता है कि व्यक्ति उसी को ज्यादा याद करता है,जिससे उसको अधिक पीड़ा मिलती है और ऐसा होने पर वह व्यक्ति उसके आसपास किसी न किसी रूप में या किसी रिश्ते के रूप में अवश्य आ जाता है,क्योंकि यह प्रकृति का नियम है कि आप जिसके बारे में सोचेंगे,जिसके बारे में चाहत रखेंगे,वह आपको देर-सबेर मिल ही जाएगा।देर-सबेर मिलने पर भले ही आपको उसकी आवश्यकता ना हो या उसकी चाहत खत्म हो गई हो,लेकिन फिर भी वह मिलेगा।इसलिए इस मामले में सावधान होने की जरूरत है कि आप किसके बारे में अधिक सोचते हैं और आप पाना क्या चाहते हैं?
- यदि हमें अपने इन हिसाब-किताब वाले रिश्तों से मुक्त होना है तो एक उपाय यह है कि हम इन रिश्तों का आदर करते हुए संबंधित व्यक्ति के प्रति अच्छा व्यवहार करें;ऐसा व्यवहार करें,जो इनकी क्षमताओं को फिर से सुकोमल व सुंदर बना दें,जहां पर भी इनकी भावनाएं आहत हैं,उनमें मलहम लगा दे।ऐसा होने पर ही बदले की भावना रखने वाले ये रिश्ते प्रेम की सुगंध से सरोबार होंगे।इसके साथ ही जीवन में आने वाली विपरीत परिस्थितियों का सामना करने पर भगवान को कोसने के बजाय उनका आशीर्वाद मानें; क्योंकि कठिन समझी जाने वाली यह परिस्थितियाँ ही हमें जगाती हैं,जीवन की सही समझ पैदा करती हैं और हमारी क्षमताओं को निखारती है।इन परिस्थितियों से गुजरने पर ही हमें पता चलता है कि हम अभी कितने पानी में हैं।
- ‘व्यक्ति के जीवन में आने वाली किसी भी तरह की परिस्थिति उसके विकास के लिए सर्वोत्तम होती है।’ यदि इस तथ्य को व्यक्ति हर समय स्मरण कर सके और अपनी क्षमताओं के अनुरूप उसका सामना कर सके तो किसी भी तरह की परिस्थिति उसके व्यक्तित्व की क्षमताओं को अधिकतम निखारेगी और अपने अधिकतम अच्छे परिणामों को देकर जाएगी।यह व्यक्ति का दृष्टिकोण ही होता है,जिसके द्वारा वह कम को अधिक आँकता है और अधिक को कम आँकने लगता है।अतः हमें अपने दृष्टिकोण को सुधारना चाहिए।इसे सकारात्मक बनाने से व्यक्ति का मन सदैव प्रसन्न व संतुष्ट होगा।
4.छात्र-छात्राएं जीवन को समझें (Students understand life):
- छात्र-छात्राओं के सामने कर्मों का परिणाम क्रिकेट की गुगली गेंद की तरह है।जैसे बल्लेबाज गेंदबाज द्वारा फेंकी गई गुगली गेंद को समझ नहीं पाता,उसे वह चकमा दे देती है और बल्लेबाज गच्चा खा जाता है।वह गुगली गेंद उसको बोल्ड आउट कर देती है और उसकी गिल्लियां बिखर जाती है।इसी प्रकार छात्र-छात्राएं बहुत परिश्रम करते हैं और किसी परीक्षा में असफल हो जाते हैं तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि जीवन में कठिन परिश्रम करने वाले सफल नहीं होते हैं।कष्ट,कठिनाइयां भुगतने पर भी सही,अच्छा और श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त न हो तो अध्ययन करने,कठिन परिश्रम करने,शुभ कर्म करने का क्या फायदा है? यहीं से वे गलत तरीके अपनाने लगते हैं।क्योंकि वे देखते हैं कि नकल करने वाले,गलत उपाय करके परीक्षा देने वाले उत्तीर्ण होते हैं और आज बहुत उच्च पद पर पदासीन हैं।
- गलत विद्यार्थियों को ठाठ-बाट,ऐशो आराम और विलासितापूर्ण जीवन जीते हुए देखकर वे फिसल जाते हैं।ऐसे विद्यार्थी दरअसल कर्मों के रहस्य को समझ नहीं पाते हैं और जीवन की दौड़ में बेपटरी हो जाते हैं।गलत रास्ते पर चलने पर और उसके दुष्परिणाम भोगने पर उन्हें पता चलता है कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती कर दी है।क्योंकि किसी दूसरे के जीवन जीने के ढंग को देखकर (समझकर नहीं) यह अनुमान लगा लेना कि जीवन जीने का यही ढंग उत्तम है,अपने आपको धोखा देना है।
- हर व्यक्ति और विद्यार्थी अद्वितीय है,अनूठा है।हर व्यक्ति को अपने कर्मों का परिणाम भुगताना ही पड़ेगा है,अब कौनसे कर्म का परिणाम कब और कब तक भुगतना पड़ेगा यह प्रकृति का रहस्य है।इसे अच्छे-अच्छे दार्शनिक,विद्वान,पंडित और ज्ञानी भी नहीं समझ पाते हैं तो साधारण व्यक्ति कहां लगता है? इसलिए दूसरे व्यक्तियों के रहन-सहन,जीवन जीने के ढंग और तौर-तरीकों से यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वह भी ऐसा ही करेगा तो उनके जैसा ही जीवन जी सकेगा।
- किसी विद्यार्थी ने नकल करके अच्छे अंक प्राप्त कर लिए।उसके देखा-देखी आप भी यह निर्णय लेते हैं कि उसे भी नकल करके उत्तीर्ण होने का तरीका अपनाना चाहिए।ऐसा करने से जरूरी नहीं है कि आप भी उत्तीर्ण हो जाएं।आपके साथ इसके उलट कई बातें हो सकती हैं।आपको अपेक्षाकृत कम अंक प्राप्त हो।आप परीक्षा में नकल करते हुए पकड़े जा सकते हैं।आपको परीक्षा से बहिष्कृत किया जा सकता है।इसके अलावा आपके व्यक्तित्व का सही निर्माण नहीं होगा।
- सबसे बढ़कर बात यह है कि आपको आत्मसंतुष्टि नहीं होगी,आपकी अंतरात्मा बार-बार धिक्कारेगी कि आपने कठिन परिश्रम करके,परीक्षा में सही उत्तर लिखकर ये अधिक अंक प्राप्त नहीं किए हैं।व्यक्ति दूसरों से जलालत,अपमान को सहन कर सकता है जब तक आप सही मार्ग पर चल रहे हैं परंतु अपनी ही निगाहों से गिर जाना सबसे बुरी बात होती है और अपनी नजरों से गिरकर जीना भी कोई जीना है क्या? ऐसी आत्म-प्रताड़ना व्यक्ति को कदम-कदम पर मिलती रहेगी।प्रश्न है कि फिर वह किसलिए और क्यों जीना चाहता है? इस पर विचार-मनन करें और चिंतन करें।
5.छात्र-छात्राएं आत्म विश्लेषण करें (Students should do self-analysis):
- जीवन का निर्माण करना एक दिन में नहीं होता है,इसके लिए काफी समय लगता है।काफी कुछ संघर्ष करना पड़ता है,बहुत खोना पड़ता है,बहुत ठोकरें खानी पड़ती है,तभी सही जीवन जीने की कला में कोई भी विद्यार्थी पारंगत हो सकता है।हाँ,जीवन का ध्वंस करने,जीवन को बदरंग करने,खोटे,निकृष्ट और पापपूर्ण कर्म करने में समय नहीं लगता है।यह प्रकृति का नियम है कि निर्माण करने में बहुत संघर्षों का सामना करना पड़ता है और काफी समय लगता है परंतु ध्वंस करने में पलभर भी नहीं लगता है।जीवन जीने की कला विकसित करने का पहला चरण है आत्मश्लेषण करना।हालांकि हम आत्म-विश्लेषण अपनी बुद्धि के अनुसार ही करते हैं,इसलिए इसका शत-प्रतिशत सही होना अनिवार्य नहीं है,परंतु यदि इसे पूरी ईमानदारी के साथ किया जाए तो यह काफी हद तक आपकी मदद कर सकता है।
- आत्म-विश्लेषण के लिए आप अपने आंतरिक एवं बाह्य गुणों की अलग-अलग सूची बनाएं फिर आप अपने गुणों की मात्रा के हिसाब से 100 में से अंक दें।
- उदाहरणतः सकारात्मक दृष्टिकोण (75 अंक),कठिन परिश्रम (82 अंक),दृढ़ निश्चय (80 अंक),धैर्य (70 अंक),मन की एकाग्रता (90 अंक) इत्यादि।इसी प्रकार नकारात्मक अवगुणों जैसे:ईर्ष्या (70 अंक),आलस्य (60 अंक),क्रोध (50 अंक) आदि।सकारात्मक अंकों को जोड़कर और नकारात्मक अंकों को अलग से जोड़ लें।अच्छे गुणों के जोड़ का औसत 90 या ऊपर आता है तो स्तर सर्वश्रेष्ठ है बस ध्यान रखें कि कोई आपके अच्छे गुणों का अनुचित लाभ न उठाएं।60 से 80 के बीच यह संतुलित स्तर है और इसे और नीचे न जाने दें।50 से कम है तो इसका मतलब है आपमें बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है।
- इसी प्रकार दुर्गुणों के योग का औसत 70 से अधिक बहुत ही खतरनाक है और तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।30 से 60 का स्तर उचित नहीं है और इस पर नियंत्रण की आवश्यकता है।20 अंक तक योग का औसत है तो यह बहुत संतुलित है और इसे और ऊपर ना जाने दें।
- आप इस तरह आत्म-विश्लेषण करेंगे तो अपने जीवन जीने के ढंग को न केवल सुधार सकते हैं बल्कि अपने जीवन को अनुकरणीय और प्रेरक बना सकते हैं।यह आत्म-विश्लेषण किसी भी विद्यार्थी द्वारा स्वयं किया जा सकता है।यदि आप आत्म-विश्लेषण करने में सक्षम नहीं है तो अपने सहपाठी,माता-पिता,अभिभावक भी आपका विश्लेषण कर सकते हैं।यदि आप कोई जॉब करते हैं तो आपका सहकर्मी,जूनियर,सीनियर या बाॅस आपका मूल्यांकन कर सकता है।इस प्रकार विश्लेषण करके लगातार अपने आप में सुधार करते रहें।
- यह विश्लेषण किसी परीक्षा में या जॉब में सफलता-असफलता के आधार पर भी किया जा सकता है।आप जिस परीक्षा में सफल नहीं हुए या जिस विषय में कम अंक प्राप्त हुए हैं उनकी सूची बनाएं।फिर यह देखें कि संबंधित परीक्षा या विषय में सफल होने या अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए और किन-किन गुणों की आवश्यकता होती है और किन-किन दुर्गुर्णों को छोड़ना पड़ता है।आपको पता लग जाएगा कि आपके भीतर कौन-कौन से सद्गुणों का अभाव है और कौन से दुर्गुणों की अधिकता है।यही प्रक्रिया जिन परीक्षाओं में आप सफल हुए हैं उनके लिए भी अपना सकते हैं।
- अपने व्यवहार,बात करने के ढंग,उठने-बैठने के तरीके,शिष्टाचार के तौर-तरीकों,किसी से मुलाकात करने,अपनी हर गतिविधि को गहरी नजर से देखें।इससे आपको अपने सद्गुणों और दुर्गुणों का पता लग जाएगा और आप अपने जीने के ढंग में सुधार कर सकते हैं।
- उपर्युक्त आर्टिकल में जीवन प्रबंधन की कला के लिए 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Art of Life Management),जीवन जीने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Living) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:5 Techniques to Adopt Ideal Life Style
6.बदमाश छात्र को कैसे पढ़ाएं? (हास्य-व्यंग्य) (How to Teach a Wicked Student?) (Humour-Satire):
- गणित के टीचर की भर्ती के लिए साक्षात्कार चल रहा था।
- अधिकारी:अव्वल दर्जे के बदमाश और लड़ाकू छात्र को कैसे पढ़ाओगे?
- उम्मीदवार:मुझे अगर शरारती,गुंडे और बदमाश छात्रों को गणित पढ़ाने के लिए नियुक्त किया जा रहा है तो मैं अपना आवेदन पत्र वापस लेता हूं।
- सवाल पर बुरी तरह से हड़बड़ाते हुए उम्मीदवार ने जवाब दिया।
7.जीवन प्रबंधन की कला के लिए 5 टॉप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Top Tips for Art of Life Management),जीवन जीने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Living) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.जिन्दगी क्या है? (What is life?):
उत्तर:जिंदगी एक कसौटी है,भगवान उस पर हमें कस लेता है।नेक काम करके हम कसौटी पर खरे उतरते हैं तो भगवान की सच्ची पूजा करते हैं।
प्रश्न:2.सच्चा जीवन कब आरंभ होता है? (When does real life begin?):
उत्तर:मनुष्य का सच्चा जीवन तब आरंभ होता है जब वह यह अनुभव करता है कि शारीरिक जीवन अस्थिर है और वह संतोष नहीं दे सकता है।
प्रश्न:3.जीवन का उद्देश्य क्या होना चाहिए? (What should be the purpose of life?):
उत्तर:मनुष्य का सच्चा जीवन अपना आत्म-विश्लेषण करके उन्नति करना,आत्मोन्नति करना है और उसकी सिद्धि का मुख्य उपाय विद्या एवं ज्ञानार्जन करके परोपकार करना है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा जीवन प्रबंधन की कला के लिए 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Art of Life Management),जीवन जीने की कला विकसित करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips to Develop Art of Living) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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