5 Tips to Tame Mind to Achieve Success
1.सफलता प्राप्त करने के लिए मन को वश में करने की 5 टिप्स (5 Tips to Tame Mind to Achieve Success),मन को वश में करने के 5 अचूक मंत्र (5 Surefire Spells to Tame Mind):
- सफलता प्राप्त करने के लिए मन को वश में करने की 5 टिप्स (5 Tips to Tame Mind to Achieve Success) को देखकर आप सोचेंगे कि मन को वश में करने के लिए बार-बार लिखने और सुनाने की क्या जरूरत है? लेकिन जरूरत है।कारण यह है कि मनुष्य मन वाला होने के कारण मन की शक्ति शाश्वत रहेगी जब तक मनुष्य जाति जीवित रहेगी।मन की एकाग्रता से ही सब कुछ पाया जा सकता है और इसके बिखराव से ही हमारा पतन भी हो जाता है।
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2.मन ही हमारे उत्थान और पतन का कारण (The mind is the cause of our rise and fall):
- एक कहावत है:’मन के हारे हार है,मन के जीते जीत’।यदि आप मन से हार मान लेंगे तो निश्चय ही आप किसी भी कार्य में पराजय का मुँख देखेंगे।किंतु यदि आपने मन में विजय प्राप्त करने का संकल्प ले रखा है तो निश्चय ही आप विजयी होंगे।एक विचारक ने कहा है कि ‘जो मनुष्य अधिकतम संतोष और सुख पाना चाहते हैं,उनको अपने मन को वश में रखना चाहिए।’ हमारा मन अनियंत्रित होकर प्रायः प्रलोभनों में फंस जाता है और भटक जाता है।प्रलोभन कुछ भी हो सकते हैंःधन,आलस्य,सुख,वासना,वैभव आदि।इन प्रलोभनों का जब मायाजाल टूटता है तब हम समझ पाते हैं कि हमारे चंचल मन ने हमें किस तरह भटकाया था।किंतु जब तक इतनी देर हो चुकती है कि हम बहुत कुछ खो चुके होते हैं।इसलिए मन को नियंत्रण में रखने की बात हर युग में,हर विचारक ने,हरेक धर्मग्रंथ ने और हरेक महापुरुष ने कही है।गीता में कहा गया है कि चंचल मन को वश में करना बड़ा कठिन काम होता है,क्योंकि वह मनुष्य को मथ डालता है-इसलिए वह बहुत बलवान है।जैसे वायु को दबाना कठिन होता है,वैसे ही मन को वश में करना भी कठिन होता है।
- यह सच है कि मन बड़ा चंचल है,यह रुक नहीं सकता; परंतु अभ्यास और वैराग्य से यह वश में किया जा सकता है।अभ्यास अर्थात् अच्छे कार्य की ओर मन लगाए रखना और वैराग्य अर्थात् बुरे कार्य की तरफ मन को जाने से रोकना।
- इसी के साथ मन के व्यावहारिक रूप की व्याख्या और उसके परिणाम अन्य धर्मग्रंथों में लिखे गए हैं।उपनिषद में कहा गया है कि मन का पूर्ण निरोध करने से ही विषयहीन मन को समर्थन मिलता है।इसी को दूसरे शब्दों में उपनिषद कहते हैं-‘जिन्हें तृणरूपी ग्राह ने पकड़ रखा है,जो संसार समुद्र में गिरे हुए हैं,भंवरों के जाल में पड़कर लक्ष्य से दूर भटक रहे हैं,उनको बचाने के लिए अपना विषयविहीन मन ही नौका के रूप में सहायक बन सकता है।’ स्वेट मार्डन ने इसीलिए कहा है-‘मन ही अपने लिए जीवन का रास्ता बनाता है और मृत्यु का रास्ता भी मन ही तैयार करता है।विचार तो उसे रास्ते की सीमा निश्चित कर देते हैं।’इसे दूसरे शब्दों में कहें तो,’मन ही मनुष्य को स्वर्ग या नरक में बिठा देता है।स्वर्ग या नरक में जाने की कुंजी भगवान ने हमारे ही हाथ में दे रखी है।’यह बात इसलिए सच है कि आप जब किसी काम को करते हैं,उस समय आपके मन के विचार ही उसकी सफलता-असफलता निश्चित करते हैं।आप जब भी मन को नकारात्मक बनाते हैं,उसी क्षण आप उसे भय के आक्रमण के लिए खुला छोड़ देते हैं और वह भय आपके मनोबल को कमजोर बना देता है।आपकी वास्तविक शक्ति और बौद्धिक सोच को डरपोक बना देता है और तब आप उस कार्य को आधे और डरे हुए मन से करते हैं।नतीजा? असफलता।किंतु यदि आप अपने मन में यह भाव बैठा लेते हैं कि हां,मैं इस काम को अपनी शक्ति और क्षमताओं के साथ करूंगा,तो आप पाएंगे कि उसी क्षण आपकी सारी ऊर्जा जागृत हो उठती है।यानी आपकी मानसिकता सकारात्मक हो उठती है और आप पाते हैं कि सफलता को आप अपनी ओर ला रहे हैं।
3.मन की शक्ति अपार है (The power of the mind is immense):
- जैसा हम सोचते हैं,हमारा मन जो कहता है-उसका सीधा प्रभाव हमारे शरीर,हमारी ऊर्जा और हमारी बुद्धि पर पड़ता है।इस तरह हम अपनी सोच को स्वयं शक्ति प्रदान करते हैं।यदि किसी बात से भयभीत हैं तो दुर्बल मन आपके भय को और बढ़ाएगा और बल देगा।यदि मन से संकित हैं कि कहीं परीक्षा में असफल ना हो जाएं,तो निश्चय ही असफल होते हैं-क्योंकि तब हमारी सोच,ऊर्जा और बुद्धि पंगु हो जाती है।लेकिन यदि हम अपने सफल होने का दृढ़ विश्वास मन में जगाकर एकाग्र हो जाते हैं-अपनी शक्ति,ऊर्जा और बुद्धि को एकत्रित करके आगे बढ़ते हैं तो हम निश्चय सफल होते हैं।इसका स्पष्ट अर्थ दूसरे शब्दों में कहें तो-‘मन की शक्ति अभ्यास है,विश्राम नहीं।’ इसे सदैव नियंत्रित करने,एकाग्र करने और सकारात्मक सोच की ओर लगाना चाहिए।मन एक भीरु शत्रु है,जो पीछे से वार करता है।यानी हम यदि उससे मुकाबला करें,उसे पराजित करके वश में कर लें,तो वह हमारा गुलाम बनकर रहेगा।लेकिन यदि उसके प्रति असावधान रहें तो वह मौका पाकर पीछे से हमला करके हमें कमजोर बना देगा।
- जिसने अपने मन को वश में कर लिया,उसने संसार भर को वश में कर लिया।किंतु जो मनुष्य मन को ना जीतकर स्वयं उसके वश में हो जाता है,उसने तो सारे संसार की अधीनता स्वीकार कर ली।वह तो सबका गुलाम हो गया।मन ही सुख-दुःख का कारण है।इसीलिए ऐसा देखा जाता है कि एक ही विषय को पाकर मन की अवस्था के भेद से मनुष्य को सुख और दुख हुआ करता है।
- आइये विचार किया करें कि ऐसा क्यों होता है? हमारा मन,हमारे विचारों को और हमारे विचार हमारे शरीर को किस तरह प्रभावित करते हैं।यदि किसी विद्यार्थी को किसी परीक्षा में असफलता मिलती है और दूसरा विद्यार्थी भी यही विचार करने लग जाता है कि अमुक परीक्षा तो बहुत कठिन है और संभव है वह भी इस परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो जाएगा।ऐसी भावना उसकी केंद्रित शक्ति,एकाग्र मन की शक्ति को विखंडित कर देती है।इससे उसके द्वारा परीक्षा की तैयारी करने में बाधा खड़ी हो जाती है।परिणाम यह होता है कि उसकी परीक्षा को उत्तीर्ण करने के लिए की जाने वाली तैयारी को आधी-अधूरी करता है अथवा याद किया हुआ भूल जाता है।उसे पुनः स्मरण करने के लिए केंद्रित अर्थात् एकाग्र मन की ऊर्जा की जरूरत होती है जो कि उसके संशय मनःस्थिति के कारण विखंडित हो चुकी होती है।
- अब यह बात वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है कि मनुष्य की भावनाओं का उसकी शारीरिक क्रियाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है।डॉक्टरों का कहना है कि यदि रोगी के मन में भय अथवा चिंताएं हैं तो उसे रोगमुक्त करने में बड़ी कठिनाई होती है।इसके विपरीत शांत तथा प्रसन्न स्वभाव के रोगी शीघ्र स्वस्थ हो जाते हैं।डॉक्टर विलियम एम. एडलर का कहना है कि यद्यपि मन के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव अभी तक अस्पष्ट रूप से ही सामने आते थे-किंतु अब वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि मन की दशा शरीर को कितना प्रभावित करती है।अब यह प्रमाणित किया गया है कि मन की प्रवृत्तियां शरीर के निरोग और अंग-अंग को अत्यधिक प्रभावित करती है।अपने नकारात्मक विचारों के कारण एक निरोग व्यक्ति भी बीमारी के चंगुल में फंस सकता है।
- इसलिए मन के विचारों पर नियंत्रण रखने का अभ्यास कीजिए।उन्हें सकारात्मक बनाइए।अपने काम या उद्देश्य के प्रति निराशाजनक विचारों को मत पनपने दीजिए।आत्मविश्वास जगाकर,मन को दृढ़ संकल्प बनाइये और विश्वास के साथ सफलता को पाने के लिए आगे बढ़िये।एक न एक दिन आपको अपनी मंजिल अवश्य मिलेगी-विश्वास रखिए।
4.विद्यार्थी के लिए मन को नियंत्रित करना आवश्यक (It is necessary for the student to control the mind):
- भावनाएं मनुष्य को कल्पना लोक का भ्रमण कराती है जबकि मस्तिष्क वास्तविकता के करीब लाता है।मन बहुत ही भावुक और चंचल होता है।विद्यार्थी के लिए जो उचित है,मनुष्य उसके विपरीत दिशा में कार्य करने को प्रेरित करता है।अध्ययन करने के अवसर पर मन आराम करने,मौजमस्ती करने की और आराम करने के अवसर पर परीक्षा में नकल करने,अनुचित तरीके अपनाने,फालतू मटरगश्ती करने,अय्याशी करने,शराब और ड्रग्स का सेवन करने,सेक्स का लुत्फ उठाने और भोग विलास (कामुक कृत्य आदि) करने की प्रेरणा देता है।जो विद्यार्थी दृढ़तापूर्वक अपने कर्त्तव्यपथ (अध्ययन करने) पर बढ़ते रहते हैं और भावनाओं को वश में रखते हैं वे ही उन्नति की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाते हैं।ऐसे विद्यार्थी अर्जुन की भाँति सदैव अपने लक्ष्य रूपी चिड़िया पर ही आंख केंद्रित रखते हैं वे कोरी भावनाओं और अयथार्थ कल्पनाओं के जाल में न फंसकर अध्ययन करने (विद्या ग्रहण करने,कर्त्तव्य) के कठोर पथ पर बढ़ते जाते हैं।जब तक मन चंचल और अस्थिर है तब तक अच्छे गुरु और साधुजन की संगति मिल जाने पर भी किसी विद्यार्थी को कोई लाभ नहीं होता।
- साधारण सी बात है कि जो मन शीघ्र ही किसी प्रलोभन का शिकार हो जाए उसको वश में रखना कितना आवश्यक है।भावनारूपी समुद्र में गोते लगाना विद्यार्थी को दिशाहीन कर सकता है जैसे जो ड्राइवर स्टेरिंग (हैंडल) को छोड़ देता है तो वह गाड़ी अपने पथ से भटक जाती है और किसी पेड़ या अन्य वाहनों से टकरा जाती है अथवा किसी खाई-खंदक में जा गिरती है।
- विद्यार्थी को मन को साधना पड़ता है,मन को कर्त्तव्य की डोरी से बांधना पड़ता है,नहीं तो उसकी चंचलता विद्यार्थियों को न जाने कौन-कौनसे खोटे,निकृष्ट और पापपूर्ण कर्म करने के लिए विवश कर दे।सुख-दुःख,सफलता-असफलता तो विद्यार्थी के जीवन में बारी-बारी से आते जाते रहते हैं और जीवन चक्र अबाध गति से चलता रहता है।अब जो विद्यार्थी विषम परिस्थितियों में अपनी भावनाओं,अपने मन के वश में होकर अध्ययन कार्य से विमुख हो जाते हैं वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं और अपनी असफलताओं के लिए अपनी परिस्थितियों,सहपाठियों,प्रश्न-पत्र कठिन आने,शिक्षकों और भाग्य को कोसने लगते हैं।ऐसा ना हो इसके लिए मन और मन की भावनाओं पर नियंत्रण रखकर अध्ययन (कर्त्तव्य का पालन) करना निहायत जरूरी है।
- आप टॉपर्स,महान गणितज्ञों और वैज्ञानिकों तथा महामानवों की जीवन शैली पर नजर डालेंगे तो पाएंगे ये ऐसे कर्त्तव्यनिष्ठ थे कि इन्होंने सब कुछ त्याग कर,माया-मोह भूलकर कर्त्तव्य का पालन किया और भावनाओं पर नियंत्रण रखे रहे।भावना की अपेक्षा कर्त्तव्य को महत्त्व देना इसी को कहते हैं।भावनावश किया गया काम क्षणिक प्रसन्नता दे सकता है पर कर्त्तव्य भूलकर किया गया काम बाद में ग्लानि से भर देता है।ऐसे कई उदाहरण हैं जब भावना के वश गलत काम किए गए।भावना पर नियंत्रण न कर पाने वाला मन का गुलाम हो जाता है जबकि मन को अपना गुलाम बनाना चाहिए।यह साधना है तो दुष्कर,पर असंभव नहीं।कर्त्तव्यपरायणता का पालन करके ही श्रेष्ठ विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं अतः हमें भी इस आदर्श का पालन हर हालत में करना चाहिए।
- भगवान की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य की जीवन यात्रा अद्भुत और विलक्षण है।जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव को समझ पाना साधारण बुद्धि वाले के लिए संभव नहीं है।कई ऐसे अवसर आ जाते हैं जब किसी निर्णायक स्थिति में पहुंच पाना आसान नहीं होता।इस दुविधा का कारण होता है हमारा मन,जो भावनाओं से भरा होता है दूसरी ओर हमारे कर्त्तव्य का भी हमें भान होता है।निस्संदेह ऐसे वक्त में भावनाओं का ज्वार तीव्र होता है पर विवेकशील विद्यार्थी ऐसे वक्त में भी कर्त्तव्य से विमुख नहीं होता।कर्त्तव्यपालन सर्वोपरि समझता है।
5.विद्यार्थी वर्तमान में जीना सीखें (Students learn to live in the present):
- समय का सदुपयोग करने और अध्ययन को पूरी दक्षतापूर्वक करने के लिए बहुत जरूरी है कि हमारा मन भी एकाग्रतापूर्वक हमारे साथ ही हो,कहीं और उड़ान न भर रहा हो।मन का एकाग्रचित रहना ही वर्तमान में जीना होता है लेकिन ज्यादातर ऐसा होता है कि जहां हम होते हैं वहां हमारा मन अक्सर नहीं होता,कहीं ओर होता है।इसे उच्चाटन (absense of mind) यानी मन की चंचलता कहते हैं।इससे हम पूरी दक्षता से अध्ययन नहीं कर पाते क्योंकि जहां हम होते हैं वहाँ हमारा ध्यान यानी मन नहीं होता और जहां हमारा मन होता है वहाँ हमारा शरीर नहीं होता।इस तरह हमारा व्यक्तित्व दो खण्डों में विभाजित हो जाता है।जो वर्तमान को छोड़कर भूतकाल या भविष्यकाल में खोये रहते हैं वे मौजूदा समय में मौजूद नहीं रहते इसलिए वर्तमानकाल से वंचित रहते हैं।जो विद्यार्थी असफल हो जाते हैं वे सफलता के दिनों को याद करते रहते हैं और जो पढ़ाई कर रहे होते हैं वे पढ़ाई करने में आने वाली अड़चनों से घबराकर अपने बचपन को याद करते हैं कि बचपन के दिन भी क्या दिन थे।कोई चिंता न थी,कोई कष्ट न था,जिम्मेदारियां का बोझ नहीं था लेकिन जब बच्चे थे तब सोचते थे कि कैसे भी बड़ा हो जाऊं और बड़ों की तरह आजाद हो जाऊं क्योंकि अभी तो सबकी डांट खानी पड़ती है,जो चाहता हूं वह कर नहीं पाता हूं।
- घर में मां-बाप हैं,बड़े भाई हैं जो देखो डांट-डपट करता रहता है,यह मत करो,वह मत करो।स्कूल में टीचर हैं जो जरा-जरा सी बात पर कान खींच देते हैं।मजा तो बड़ा होने में है,कल बड़ा हो जाऊंगा,कॉलेज व विश्वविद्यालय का छात्र हो जाऊंगा तभी मनमानी कर सकूंगा।आज जो मुसीबत ही मुसीबत है क्योंकि असहाय हूं।
- कुछ विद्यार्थियों को उपयुक्त उपदेश और नीति की बातें सुनकर कुछ अजीब-सा लग सकता है,क्योंकि आधुनिक युग में विद्यार्थियों और युवाओं को,ऐसी बातें ऊबाऊ,बोझिल और उपदेशात्मक लगती हैं।वे ऐसी बातें सुनकर यह महसूस करते हैं जैसे कि उन पर कोई बात जबरन लादी जा रही हो।उन्हें वही बातें अच्छी लगती है,जो उन्हें सुनना अच्छा लगता है।यानी आप उनके मन की बात कहिए।
- दूसरा कारण यह भी है कि ऐसे एकाग्रचित रखने वाले विद्यार्थी का चित्रण पढ़कर उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे किसी धार्मिक फिल्म के हीरो के चरित्र का चित्रण किया गया हो,फिल्म में दिखाए जाने वाले किसी आध्यात्मिक पुरुष की चर्चा की गई हो क्योंकि यथार्थ जीवन में ऐसे गुणों वाला विद्यार्थी ढूंढने से भी नहीं मिलने वाला,वह भी आज के इस जमाने में जब चारों तरफ मौजमस्ती करने वाले,विद्यार्थी काल में सब सुखों का भोग करने वाले ही दिखाई देते हैं।तब इस तरह की बातों को मानता ही कौन है,चलना तो दूर की बात है।इस जमाने में जैसे आपके सामने काल्पनिक चित्रण सुनाया जा रहा हो,लेकिन वास्तव में ऐसे एकाग्रचित्त,मन को वश में करने वाला विद्यार्थी होना असंभव नहीं है।यदि अपनी दृष्टि को विस्तृत करके देखेंगे तो अपने आसपास ही ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे।सुदृढ़ संकल्प करके प्रयत्न करें तो कोई भी विद्यार्थी क्या कुछ नहीं कर सकता।यह हो सकता है कि मन को एकाग्र करने के लिए उसे जल्दी सफलता न मिले क्योंकि हर अच्छे काम में सफलता जल्दी नहीं मिलती,पर मिलती है।देर होती है पर अंधेर नहीं होती।जरूरत है शुभ संकल्प की,सुदृढ़ इच्छा शक्ति की और अपने सही लक्ष्य की।आज ऐसे विद्यार्थियों की संख्या भले ही कम हो,कितनी ही कम हो पर इस संसार की गोद ऐसे विद्यार्थियों की संख्या से सूनी नहीं है।जो भी विद्यार्थी कोशिश करेगा वह अच्छे गुणों को धारण कर सकेगा।
- उपर्युक्त आर्टिकल में सफलता प्राप्त करने के लिए मन को वश में करने की 5 टिप्स (5 Tips to Tame Mind to Achieve Success),मन को वश में करने के 5 अचूक मंत्र (5 Surefire Spells to Tame Mind) के बारे में बताया गया है।
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6.पुस्तकों को कोई नहीं ले जाए (हास्य-व्यंग्य) (No one Should Carry Books) (Humour-Satire):
- शिक्षक:सचिन,इन पुस्तकों को ऐसी जगह रखो जहां से कोई भी इनको लेकर न जा सके।
- दूसरे दिन,शिक्षकःसचिन पुस्तकें कहां रखी हैं?
- सचिन:मेरे घर पर,वहां पर से कोई छात्र पुस्तकें नहीं लेकर जा सकेगा।
7.सफलता प्राप्त करने के लिए मन को वश में करने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips to Tame Mind to Achieve Success),मन को वश में करने के 5 अचूक मंत्र (5 Surefire Spells to Tame Mind) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.प्रत्येक कार्य में सफलता का सूत्र क्या है? (What is the formula for success in each task?):
उत्तर:संसार के प्रत्येक कार्य में विजय पाने के लिए एकाग्रचित्त होना आवश्यक है।जो लोग चित्त को चारों ओर बिखेरकर काम करते हैं उन्हें सैकड़ो वर्षों तक सफलता का मूल्य मालूम नहीं होता।
प्रश्न:2.साधनों की सिद्धि का मूल मंत्र क्या है? (What is the key to the accomplishment of resources?):
उत्तर:एकाग्रता एक कला है,जिसके आते ही सफलता निश्चित हो जाती है।कर्म,भक्ति,ज्ञान,योग और संपूर्ण साधनों की सिद्धि का मूल मंत्र एकाग्रता है।
प्रश्न:3.एकाग्रता का मूल मंत्र क्या है? (What is the key to concentration?):
उत्तर:अपने कार्य को डूबकर करना,दिल से करना तथा अपनी अभिलाषाओं को वशीभूत कर लेने के बाद मन को जितनी देर तक चाहो एकाग्र किया जा सकता है। विद्यार्थी अध्ययन कार्य को पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ करें तो एकाग्रता सधने लगती हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सफलता प्राप्त करने के लिए मन को वश में करने की 5 टिप्स (5 Tips to Tame Mind to Achieve Success),मन को वश में करने के 5 अचूक मंत्र (5 Surefire Spells to Tame Mind) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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