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5 Tips for Writing Articles in Exam

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1.परीक्षा में लेख लिखने की 5 टिप्स (5 Tips for Writing Articles in Exam),सफलता प्राप्त करने के लिए लेख लिखने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Writing Articles in Achieve Success):

  • परीक्षा में लेख लिखने की 5 टिप्स (5 Tips for Writing Articles in Exam) के आधार पर आप जान सकेंगे कि एक बेहतरीन लेख लिखने की कला कैसे विकसित की जाए।लेख लिखने के लिए व्यापक एवं गहन ज्ञान और अनुभव की जरूरत होती है।
  • परंतु थोड़े या कम ज्ञान के आधार पर भी एक उत्कृष्ट व श्रेष्ठ लेख कैसे लिखा जा सकता है,उसके लिए क्या कुछ करना जरूरी है इन सभी मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।
  • चूँकि इन सभी मुद्दों को केवल एक लेख में समाहित नहीं किया जा सकता है इसलिए इसे कुछ पार्ट में पोस्ट किया जाएगा।
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2.आधुनिक लेखन शैली (Modern Writing Style):

  • आधुनिक काल में प्रायः सभी क्षेत्र से लेखकगण उभर कर सामने आ रहे हैं।स्वतंत्रता पूर्व के वर्षों में जो लेखक सामने आए,उनमें अधिकांश या तो सामाजिक गतिविधियों से संबंधित रहे थे या फिर वे विधिक क्षेत्र से जुड़े हुए थे।लेकिन तत्कालीन एवं आधुनिक लेखन शैली में काफी कुछ बदलाव आ गया है।आधुनिक शैली काफी वैविध्यपूर्ण (Diversified) हो गयी है और इसी के अनुरूप लेखक भी विविध क्षेत्रों से आने लगे हैं।वस्तुतः आज हम जिस युग में रह रहे हैं,वह एक विशिष्टकृत युग (Specialised Era) है,जहां पर लेखक किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर अपने लेखों को आधुनिक स्वरूप देने में सफल हो रहे हैं।लेखकों को विशेषीकृत ज्ञान का सहारा लेकर अपने लेखों को परिमार्जित करने में काफी मेहनत एवं सावधानी बरतने की जरूरत पड़ रही है।
  • आधुनिक युग में किसी क्षेत्र विशेष के ज्ञान की बदौलत लेख एवं पुस्तकें लिख सकते हैं और एक सुपरिचित लेखक के रूप में अपनी पहचान बना सकते हैं।यह क्षेत्र पर्यावरण,खेल एवं स्वास्थ्य,शिक्षा,मनोविज्ञान,अर्थशास्त्र,करंट अफेयर्स आदि कोई भी हो सकता है।प्रत्येक क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करके लेख लिखने पर ही वाह-वाही,ख्याति और सम्मान पाया जा सकता है।
  • आधुनिक लेखन शैली में बढ़-चढ़ कर अथवा अधिक अलंकृत भाषा का प्रयोग करते हुए लिखने की परंपरा नहीं रही है।आधुनिक समय में वाक्य विन्यास पर ध्यान नहीं देते हुए,मात्र उसकी वास्तविकता पर ध्यान देने की परंपरा रही है।उनमें ऐसे चिर-परिचित एवं साधारण शब्दों का प्रयोग किया जाने लगा है,जो आम जनता की समझ के काफी करीब होते हैं।आधुनिक लेखन शैली में लेखक अपने संदेशों को काफी सरल भाषा में सहजतापूर्वक तथा संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करता है।आजकल लेखकों द्वारा कुछ देशी शब्दों अथवा चालू हिंदी शब्दों के प्रयोग का प्रचलन भी बढ़ने लगा है,जिससे लेखों को समझना और भी अधिक आसान होने लगा है।आधुनिक लेखन कला में हंसी-मजाक वाले शब्दों के व्यापक प्रयोग से लेखों का स्वरूप काफी हल्का-फुल्का तथा कम गंभीर किस्म का बन गया है।यही कारण है कि पत्रकारिता तथा शिक्षण से संबंधित लेखन शैलियों के बीच कोई बड़ा फर्क आज के दौर में नहीं रह गया है।
  • आधुनिक काल के सभी लेख अथवा निबंध वैचारिक दृष्टिकोण से उतने प्रभावी नहीं रह गए हैं,जितने कि वे आज से कुछ दशक पूर्व रहे थे।इस प्रवृत्ति का कारण शायद यही माना जा सकता है कि भौतिकवादी व्यवस्था ने जहां लेखकों की जीवन शैली को बदल दिया है,वहीं उनकी लेखन शैली को भी काफी हद तक प्रभावित किया है।
  • आधुनिक लेखन कला की एक दूसरी विशेषता यह है कि इसमें भ्रमात्मक शब्दों (Jargons) के प्रयोग का प्रचलन बढ़ने लगा है।इसका कारण यह है कि विशेष क्षेत्रों से संबद्ध होने के बावजूद लेखकों द्वारा अंतर्क्षेत्रीय शब्दों का प्रयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा है।यदि आप किसी खास क्षेत्र में अभिरुचि लेते हैं और उसमें अपने लेख प्रकाशित करते हैं,तो संभव है कि आप कई ऐसे शब्दों का प्रयोग करें,जो आपके उस क्षेत्र से मेल खाते हों।यद्यपि ये शब्द कुछ हद तक भ्रम पैदा करने वाले साबित हो सकते हैं,किंतु इससे एक स्वस्थ परंपरा की भी शुरुआत हुई है जिससे कोई भी क्षेत्र आज किसी दूसरे क्षेत्र से पूर्णतः अछूता नहीं रह गया है।
  • एक कुशल लेखक अपने लेखों में परिवर्तन लाकर उसे यथार्थता प्रदान कर पाने में समर्थ हो पाता है।यदि वह किसी प्रश्न का उत्तर अच्छी तरह नहीं भी जानता है,तो भी अपनी लेखन क्षमता का प्रयोग करते हुए वह उसे काफी हद तक वास्तविकता प्रदान करने में सफल हो पाता है।लेकिन इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि यदि वह किसी खास प्रश्न का उत्तर नहीं जानता है,तो भी वह उसकी व्याख्या कर पाने में सफल होगा ही। यदि वह संबद्ध प्रश्न के बारे में कम जानकारी भी रखता है,तो अपनी ठोस लेखन क्षमता तथा अन्य क्षेत्रों से संबद्ध ज्ञान के आधार पर वह उस प्रश्न का काफी हद तक सटीक उत्तर लिख पाने में सफल हो पाता है।

3.विज्ञान के अभ्यर्थी लेख कैसे लिखें? (How to write science aspirant articles?):

  • विज्ञान के अभ्यर्थियों की अक्सर यह शिकायत रहती है कि वे किसी खास विषय पर अच्छी तरह से नहीं लिख पाते हैं,क्योंकि उन्हें साहित्यिक अथवा अलंकारिक भाषा में लिखने की आदत नहीं रहती है।लेकिन यह धारणा बिल्कुल ही निराधार है।विज्ञान का छात्र होने का यह अर्थ नहीं है कि आप अच्छा नहीं लिख सकते हैं या फिर आपकी लेखन क्षमता अच्छी नहीं हो सकती है।सच तो यह है कि कई ऐसे वैज्ञानिक अथवा विज्ञान के ज्ञाता हुए हैं,जो उच्च स्तरीय लेखक भी साबित हुए हैं।इस संदर्भ में अल्बर्ट आइंस्टीन की चर्चा कर सकते हैं,जिनके पत्रों के संकलन (collection of letters) को भारत में रूपा एंड कंपनी ने प्रकाशित करवाया है।इससे आइंस्टीन की अद्वितीय लेखन क्षमता का स्वयंमेव पता चल जाता है।इसमें उन्होंने न सिर्फ विज्ञान संबंधी विचारों को व्यक्त किया है,बल्कि समाज एवं समुदाय के विभिन्न तथ्यों को उभारने की भी कोशिश की है।
  • हमारे देश के कई वैज्ञानिकों ने भी विभिन्न प्रकाशनों के लिए नियमित रूप से लिखने की परंपरा जारी रखी है।इस संदर्भ में डॉक्टर राजा रमन्ना,एम. जी. के. मेनन,डॉक्टर अब्दुल कलाम,के. कस्तूरीरंगन आदि का नाम ले सकते हैं,जिन्होंने अपने लेखों के माध्यम से जन-सामान्य के बीच विज्ञान को लोकप्रिय बनाने में अहम् भूमिका निभायी है।
  • कुशल लेखन के लिए व्यापक अध्ययन की जरूरत होती है।यदि आप अध्ययनशील रहते हैं,तो आपमें ज्ञान का विकास होता जाता है और इस ज्ञान का उपयोग आप तब करते हैं,जब आप किसी विषय पर लिखने के लिए प्रवृत्त होते हैं।अध्ययन से ही विचारों का सृजन होता है,जिससे लिखने की कला में महारत हासिल हो पाती है।
  • जहां तक लेखन क्षमता को विकसित करने का सवाल है,तो वह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आप अपने विचारों को किस रूप में कागज पर उतार पाने में सक्षम हो पाते हैं।लेकिन यदि आप किसी भी विषय पर साधिकार लिखना चाहते हैं,तो इसके लिए यह जरूरी है कि आपको उस विषय की गहन जानकारी हो,उससे संबंधित सूचनाओं का संग्रह हो,आपमें विषय की व्याख्या करने की क्षमता हो तथा विचारों को सही एवं प्रभावी स्वरूप प्रदान करने की क्षमता हो इन तमाम गुणों का सामंजस्य आपकी लेखन क्षमता के स्वरूप को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • प्रत्येक लेखक के लिखने का अपना ढंग होता है।लिखने की कला का अर्थ यह नहीं है कि सभी लेखकों की लेखन शैली किसी खास रूप में परिलक्षित हो।भीड़ से अलग हटकर भी आप अपनी लेखन क्षमता का विकास कर सकते हैं और यश एवं ख्याति प्राप्त कर सकते हैं।जिस तरह प्रत्येक व्यक्ति की अंगुली-चिन्ह (Finger print) अलग-अलग होता है,उसी प्रकार प्रत्येक लेखक की लेखन-शैली भी अलग-अलग होती है।
  • आपको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति नकल मात्र से स्वयं को कालिदास अथवा शेक्सपियर की श्रेणी में नहीं ला सकता।अतः यदि आप एक अच्छा लेखक बनना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको सप्रयास अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश करनी होगी।इसके लिए जरूरी है कि आप अपनी क्षमता को पहचानें।अपनी क्षमता की पहचान करने के लिए यह भी जरूरी है कि आप स्वयं में अधिक से अधिक लिखने की क्षमता विकसित करें।यदि आप कुछ अधिक नहीं कर सकते हैं,तो केवल अपनी भावनाओं एवं विचारों को ही कागज पर उतारने की कोशिश जरूर करें।एक बार जब आप में ऐसी प्रवृत्ति जागृत हो जाती है,तो फिर आप एक श्रेष्ठ लेखक बनने की दिशा में उन्मुख हो जाते हैं।

4.व्याकरण का कितना ज्ञान आवश्यक? (How much grammar knowledge is required?):

  • यदि कोई व्यक्ति अपनी लेखन क्षमता को सुदृढ़ करना चाहता है,तो इसके लिए कोई छोटा रास्ता नहीं हो सकता।यह भी सच है कि यह क्षमता लिखने मात्र से नहीं आ सकती है।इतना अवश्य है कि लेखन क्षमता को विकसित करने में अधिक से अधिक लिखना एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।अतः यदि आप अपनी लेखन कला को सशक्त एवं प्रभावी बनाना चाहते हैं,तो आपको निरंतर लिखने की क्षमता विकसित करनी होगी।
  • अच्छी लिखावट के लिए काफी हद तक व्याकरण (Grammer) का ज्ञान जरूरी होता है।व्याकरण का वास्तविक ज्ञान उस स्थिति में काफी सहायक होता है,जब आप अपनी मातृभाषा के अलावा किसी अन्य भाषा में लिखने की कोशिश करते हैं।कोई भी व्यक्ति जो किसी दूसरी भाषा को सीखना चाहता है अथवा उसमें लिखना चाहता है,तो उसे सबसे पहले उस भाषा विशेष के व्याकरण को सुदृढ़ करना होता है।
  • किसी भी भाषा में यदि आप सुंदर एवं अर्थपूर्ण वाक्यों की रचना करना चाहते हैं तो आपको इसके लिए व्याकरण के कतिपय नियमों का अक्षरशः पालन करना होता है।यदि आप ऐसा नहीं कर पाते हैं,तो फिर आपके लिखने का कोई खास अर्थ नहीं निकल पाता है।अतः वाक्यों की सुंदरता तथा स्पष्टता के लिए व्याकरण का ज्ञान तथा उसका प्रयोग एक आवश्यक तत्त्व माना जा सकता है।
  • जहां तक अपनी मातृभाषा (Mother tongue) को सीखने अथवा इसमें लिखने का सवाल है,तो इसके लिए आपको व्याकरण का वृहद अध्ययन करने की जरूरत नहीं होती है,क्योंकि ऐसा आप अपनी बोल-चाल एवं सहजीविता के साथ स्वतः ही कर पाने में समर्थ हो पाते हैं।यही कारण है कि आप अपनी मातृभाषा में लिखने अथवा पढ़ने में काफी सहजता एवं स्पष्टता का अनुभव करते हैं।लेकिन यह बात किसी दूसरी भाषा के लिए लागू नहीं हो पाती है।यदि आप किसी अन्य भाषा को सीखना चाहते हैं अथवा उसमें कुछ लिखना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको सतत अभ्यास एवं प्रयास करने की जरूरत होती है।ऐसी भाषा पर अधिकार प्राप्त करने के लिए आप प्राकृतिक तौर पर अथवा प्राकृतिक वातावरण पर निर्भर नहीं रह सकते हैं।आपको निरंतर अभ्यास करना ही होगा।अपने अभ्यास को पूर्णता प्रदान करने हेतु आपको भाषा विशेष के व्याकरण के प्रति सजग बनना होगा।
  • अपनी मातृभाषा में बोलने अथवा लिखने के लिए आपको विशेष सोचने की जरूरत नहीं होती है।यदि आप अपनी मातृभाषा में कुछ लिखना अथवा बोलना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको अपने मन में एक ढांचागत स्वरूप बैठाने की जरूरत नहीं पड़ती है,क्योंकि आप ऐसा बगैर किसी औपचारिक सोच के कर पाने में समर्थ होते हैं।आपके मन-मस्तिष्क में यह ढाँचा स्वतः ही कायम हो जाता है।आपकी वाणी,आपके विचार तथा आपके संभाषण उसे ढांचागत स्वरूप को अपने आप प्राप्त कर लेते हैं।लेकिन यही बात तब संभव नहीं हो पाती है,जब आप किसी दूसरी भाषा को सीखने की कोशिश करते हैं।
  • कोई भी व्यक्ति जो किसी नयी भाषा को बोलना अथवा लिखना चाहता है,इस कठिनाई को भलीभाँति समझ सकता है।ऐसी स्थिति में जब वह कुछ बोलना अथवा लिखना चाहता है,तो पहले वह उन वाक्यों को अपनी मातृभाषा के रूप में समझने की कोशिश करता है और तब उसे भाषा विशेष में अनुवाद करता है।इस प्रक्रिया में जहां अधिक समय की जरूरत होती है,वहीं वाक्यों की अशुद्धता की संभावना भी काफी बढ़ जाती है।अनुवाद करने की इस प्रक्रिया में भी व्याकरण में एक बड़ी भूमिका निभाता है।
  • व्याकरण का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना काफी कठिन होता है,क्योंकि यह काफी वृहद एवं जटिल होता है।व्याकरण को सीखने के लिए काफी धैर्य की जरूरत होती है।यदि आप व्याकरण का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं,तो आप वाक्य की संरचना का सही स्वरूप प्रदान कर सकते में समर्थ हो पाते हैं।परंतु,इसका अर्थ यह कदापि नहीं लगाया जाना चाहिए की मात्र व्याकरण के ज्ञान से ही आप सुंदर एवं आकर्षक वाक्यों की रचना कर पाने में सफल हो सकते हैं।यदि आप अपनी लेखन को सतत एवं आकर्षक स्वरूप प्रदान करना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको लगातार लिखने की आदत डालनी होगी।व्याकरण का ज्ञान आपकी लेखनी को केवल शुद्ध स्वरूप प्रदान कर सकता है।अतः यदि आप अपनी लेखन शैली को विकसित करना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको व्याकरण पर बहुत अधिक बल देने की जरूरत नहीं है,बल्कि आपको स्वयं में लिखने की प्रवृत्ति डालने की जरूरत होती है।आपको सिर्फ उस भाषा विशेष के व्याकरण की प्रारंभिक जानकारी रखने की जरूरत होती है,जिसमें कि आप साधिकार लिखना चाहते हैं अथवा बोलना चाहते हैं।

5.लेख लिखने में परिस्थितियों का प्रभाव (Influence of circumstances in article writing):

  • किसी भाषा में लिखने अथवा बोलने के लिए जरूरी है कि आप स्वयं उस भाषा के प्रति न सिर्फ जिज्ञासा रखें,बल्कि उसे अपनी दिनचर्या में भी शामिल कर लें।यहां पर आपको यह पता चल सकेगा कि किसी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने में किसी खास वातावरण (Environment) का कितना प्रभाव पड़ता है? यदि काॅन्वेंट स्कूल के छात्र अंग्रेजी बोलने अथवा लिखने में काफी समर्थ दिखते हैं,तो इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है,क्योंकि उनकी परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी होती है जिसमें कि ये सारी बातें सामान्य मानी जा सकती हैं।यदि कोई व्यक्ति,जिसे अंग्रेजी का कुछ भी ज्ञान नहीं था,दो-चार वर्षो तक ब्रिटेन में रह जाए तो उसे अनायास ही अंग्रेजी बोलना-लिखना आ जाता है।ऐसा इसलिए संभव हो पाता है,क्योंकि उस व्यक्ति पर अपने चारों ओर के वातावरण का व्यापक प्रभाव पड़ता है।
  • लेकिन हममें से प्रत्येक के लिए ऐसे वातावरण की उपलब्धता संभव नहीं हैं,जिसमें कि भाषा का ज्ञान हमें स्वयंमेव प्राप्त हो जाए।ऐसी स्थिति में हम सप्रयास कुछ हद तक ऐसे वातावरण का निर्माण अवश्य कर सकते हैं।यदि आप अंग्रेजी में बोलना अथवा लिखना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको स्वयं को अंग्रेजी भाषा को प्रमुखता प्रदान करनी होगी।इसके लिए आपको अंग्रेजी समाचार-पत्र,पत्रिकाएं तथा अन्य पुस्तकों का नियमित रूप से अध्ययन करना पड़ सकता है अथवा अंग्रेजी में आयोजित होने वाले सेमिनारों (Seminars) एवं व्याख्यानों (Lectures) में शामिल होना पड़ सकता है।
  • साथ ही,रेडियो एवं टेलीविजन पर प्रसारित होने वाले अंग्रेजी समाचारों तथा अन्य संबद्ध कार्यक्रमों को देखना-सुनना पड़ सकता है।इन सभी का आप पर यह प्रभाव पड़ता है कि आप अंग्रेजी भाषा से काफी हद तक परिचित हो जाते हैं और आपके अंदर इसके प्रति जो शंका अथवा भय बना रहता है,वह दूर हटता चला जाता है।
  • उपर्युक्त माध्यमों से आप किसी भाषा को सीख पाने में सफल हो सकते हैं,परंतु इसमें एक तरह की सीमितता (Limitation) भी होती है।इन विधियों में आप एकमात्र प्रतिभागी (Sole participant) होते हैं,जिससे आप दूसरों के समक्ष उन विषयों पर साधिकार बोलने अथवा अपना विचार प्रकट करने की स्थिति में नहीं हो पाते हैं।अतः यदि आप उन विषयों के प्रति कोई स्पष्ट धारणा बनाना चाहते हैं,तो इसके लिए आपको कई लोगों के बीच अपने विचारों को रखने की आदत डालनी होगी।
  • आपको उन विधियों एवं तरीकों को ढूंढना होगा,ताकि आप सक्रिय भागीदारी निभा सकें।इसके लिए आप अपने साथियों के साथ एक समूह का निर्माण कर सकते हैं और उसमें कुछ खास विषय पर वाद-विवाद का आयोजन कर सकते हैं।
    यदि आपके आस-पास कोई ऐसा अवसर उपस्थित होता है,जहां आपको अपने विचारों को एक खास वर्ग के समक्ष रखने का मौका मिल जाता है,तो यह आपके लिए एक सकारात्मक पहलू माना जा सकता है।कहने का तात्पर्य यह है कि यदि आपका वातावरण आपके लिए ऐसे माहौल का सृजन कर पाता है,जिससे कि आप अपनी भाषा का विकास कर सकते हैं,तो आपको स्वतः ही एक कृत्रिम वातावरण का निर्माण करना होगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में परीक्षा में लेख लिखने की 5 टिप्स (5 Tips for Writing Articles in Exam),सफलता प्राप्त करने के लिए लेख लिखने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Writing Articles in Achieve Success) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र ने सवाल बनाया (हास्य-व्यंग्य) (Student Made Up Question) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक (छात्र से):एक सरल सा गणित का सवाल बनाओं।
  • छात्र:x^{2}+y^{2}+z^{2}=1 को सरल करो।(विश्व में अभी तक किसी ने साॅल्व नहीं किया)
  • गणित शिक्षक:शाबाश,बैठ जाओ।

7.परीक्षा में लेख लिखने की 5 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Tips for Writing Articles in Exam),सफलता प्राप्त करने के लिए लेख लिखने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Writing Articles in Achieve Success) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.व्याख्या करने का उत्तर कैसे दें? (How to reply to interpretation?):

उत्तर:व्याख्या करने का सीधा अर्थ यह होता है कि दिए गए कथन को सरल बनाया जाए।अभ्यर्थियों को चाहिए वे व्याख्या करते समय दिए गए कथन के बारे में कुछ इस तरह से लिखें कि उसका सही अर्थ स्पष्ट हो जाए।इसे दूसरे शब्दों में स्पष्टीकरण भी माना जा सकता है।व्याख्या के तहत आपको सहज एवं सरल तरीके से दिए गए कथन को समझाना होता है।

प्रश्न:2.स्पष्टीकरण देने वाले प्रश्न का उत्तर कैसे दें? (How to answer an explanatory question?):

उत्तर:यह व्याख्या का ही अन्य रूप है।जिसमें अभ्यर्थियों को उल्लिखित विषय को सहज एवं सरल तरीके से दिए गए कथन को समझाना होता है।

प्रश्न:3.विस्तरीकरण करने वाले प्रश्न का उत्तर कैसे दें? (How to answer an expanding question?):

उत्तर:व्याख्या अथवा स्पष्टीकरण की तरह दिए गए कथन को एक सहज एवं संतुलित स्वरूप प्रदान करना।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा परीक्षा में लेख लिखने की 5 टिप्स (5 Tips for Writing Articles in Exam),सफलता प्राप्त करने के लिए लेख लिखने की 5 बेहतरीन तकनीक (5 Best Techniques for Writing Articles in Achieve Success) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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