5 Techniques of Class Teaching of Math
1.गणित हेतु कक्षा शिक्षण की 5 तकनीक (5 Techniques of Class Teaching of Math),कक्षा शिक्षण विधि के लाभ एवं दोष (Merits and Demerits of Classroom Teaching Method):
- गणित हेतु कक्षा शिक्षण की 5 तकनीक (5 Techniques of Class Teaching of Math) के आधार पर आप जान सकेंगे कि कक्षा शिक्षण गणित शिक्षण हेतु किस प्रकार उपयोगी है।समय-समय पर विशेषकर आधुनिक युग में छात्र-छात्राओं को श्रेष्ठ तरीके से शिक्षण प्रदान किया जाए,इसके लिए शिक्षण की विभिन्न विधियों का विकास हुआ।हर शिक्षण विधि में कुछ दोष भी होते हैं तो उसमें गुण भी होते हैं।
- आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके।यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए।आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।
Also Read This Article:Laboratory Method in Mathematics
2.गणित शिक्षा हेतु कक्षा शिक्षण (Classroom teaching for mathematics):
- सभ्यता के आरंभ में वैयक्तिक शिक्षण पद्धति से शिक्षण कराया जाता था परंतु समय के साथ समूह शिक्षण की की आवश्यकता महसूस हुई।गुरुकुल में छात्र-छात्राओं को सामूहिक और वैयक्तिक रूप से शिक्षण कराया जाता था।आधुनिक युग में अनेक शिक्षण विधियों का विकास हुआ है।
- कक्षा शिक्षण में बहुत से बच्चों को एक साथ बिठाकर अध्यापक द्वारा उन्हें व्याख्यान विधि,प्रयोगशाला विधि आदि द्वारा शिक्षण कराया जाता है।कक्षा शिक्षण में विभिन्न स्तर के छात्र-छात्राएं एक साथ बैठकर शिक्षा अर्जित करते हैं।लोकतांत्रिक भावनाओं का विकास होने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को शिक्षण प्रदान करने के प्रति रुझान विकसित हुआ है।
- अभिभावक,माता-पिता,सरकारें तथा विभिन्न संगठन भी इस बात पर बल देते हैं कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया जाए तथा सभी (बालको,प्रौढ़ों और वृद्धों) को शिक्षित किया जाए ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत रूप से शिक्षित करना संभव नहीं होता है,अतः कक्षा शिक्षण के द्वारा इस उद्देश्य की पूर्ति की जाती है।
- प्राचीन काल में जो विद्या दी जाती थी,आधुनिक काल में उसका स्वरूप ही बदल गया है।विद्या अब चरित्र का निर्माण करने वाली नहीं रही,बल्कि आजीविका का साधन बन गई है और उसे (शिक्षा को) प्राप्त करने के लिए कोई सद्गुण होना जरूरी नहीं।इसलिए अब कक्षा शिक्षण विधि हो या अन्य शिक्षण विधि,इसमें न पहले जैसी विद्या है और न पहले जैसे विद्यार्थी।विद्या का ज्ञान व आचरण से संबंध नहीं रहा।
- कक्षा शिक्षण में छात्र-छात्राएं एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं।गणित जैसे कठिन विषय को हरेक छात्र-छात्रा स्वयं नहीं पढ़ सकता,सवालों को हल नहीं कर सकता है।प्रतिभाशाली विद्यार्थी की अलग बात है,वह तो किसी भी विषय को इशारे से ही समझ लेता और पढ़ लेता है।परंतु सामान्य छात्र-छात्राओं व कमजोर छात्र-छात्राओं को गणित जैसे विषय को पढ़ने के लिए सहायता-सहयोग व मार्गदर्शन की बराबर आवश्यकता महसूस होती है।कक्षा शिक्षण में विभिन्न स्तर के छात्र-छात्राएं साथ में बैठते हैं।अतः कोई बात समझ में नहीं आती,कोई सवाल समझ में नहीं आता तो वे एक-दूसरे से चर्चा करके,विचार-विमर्श करके अपनी समस्याओं का हल कर सकते हैं।
- हरेक कठिनाई को शिक्षक से पूछना न तो संभव है और न ही शिक्षक प्रत्येक छात्र की समस्या का समाधान कर सकता है।यों भी छात्र-छात्राएं बहुत-सी बातें अपने मित्रों व सहपाठियों से सीखने में सहजता अनुभव करते हैं।शर्त यही है कि छात्र-छात्रा की पढ़ने में रुचि हो,गणित व अन्य विषयों को पढ़ने की तीव्र उत्कंठा हो तो कक्षा शिक्षण का बेहतरीन लाभ उठाया जा सकता है और गणित की अनेक समस्याओं का हल प्राप्त कर सकता है।
3.कक्षा शिक्षण के दोष (Defects of Classroom Teaching):
- (1.)कक्षा-शिक्षण में सबसे बड़ा दोष यह है कि वह बाल-केंद्रित नहीं है।यह विश्वास किया जाता है कि बालकों में व्यक्तिगत विभिन्नता होती है अतः कक्षा शिक्षण में व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखकर शिक्षण नहीं कराया जाता है।
- (2.)एक कक्षा के सब विद्यार्थियों का मानसिक विकास एक-समान नहीं होता,न उनकी शारीरिक क्षमताओं में ही समानता होती है।उनके सीखने की गति में भी विभिन्नता होती है।अतएव उनको शिक्षण देने में न समान विधि अपनाई जा सकती है,न समान पाठ्य-विषय का ही उपयोग किया जा सकता है।यह बात विशेष रूप से गणित व विज्ञान विषयों पर अधिक सही बैठती है।
- (3.)कक्षा शिक्षण में बहुत से विद्यार्थी होते हैं।एक शिक्षक के लिए यह संभव नहीं कि कक्षा के प्रत्येक छात्र की ओर व्यक्तिगत रूप में ध्यान दिया जाए।अधिकांश छात्र-छात्राएं अपनी कठिनाइयों का समाधान एक-दूसरे छात्र-छात्रा से प्राप्त करने की बजाय वे आपस में फालतू की बातें करना पसंद करते हैं और अपने समय को गप्पे हाँकने,बातें करने में व्यतीत कर देते हैं।उनमें विद्या प्राप्ति की तीव्र उत्कण्ठा नहीं रहती है।
- (4.)कक्षा में समान विधि से किसी भी विषय के प्रसंग को सब छात्रों को एक समय में पढ़ाया जाता है।शिक्षक आशा करता है कि जितनी पाठ्य-वस्तु उसने पढ़ाई है,वह सब छात्रों द्वारा सीख ली जाए।परंतु बहुधा उसकी यह आशा निराशा में बदल जाती है,क्योंकि प्रत्येक छात्र उस प्रसंग में समान रूप से रुचि नहीं लेता।फलतः विद्यार्थियों की समस्याएं,सवाल हल नहीं हो पाते हैं और वे गणित में कमजोर होते चले जाते हैं।
- (5.)कक्षा-शिक्षण में बालक को समय-चक्र के अनुसार पढ़ना पड़ता है।जैसे घंटा समाप्त हो जाता है उसे जो विषय पढ़ रहा होता है,छोड़कर नया विषय पढ़ना पड़ता है।यदि एक बालक गणित पढ़ रहा है और उसे उसके प्रश्न करने में आनंद आ रहा है,फिर भी जैसे ही गणित का घंटा समाप्त होता है,उसे गणित के प्रश्नों को छोड़कर दूसरा विषय पढ़ना पड़ता है।इस प्रकार के शिक्षण में दो प्रमुख दोष हैं:
- (क)बालक की लगन एवं अवधान (ध्यान) केंद्रित करने की क्षमता में समय के अनुसार कमी आ जाती है।जो कार्य वह उस समय कर रहा है और जिसमें उसे आनंद आ रहा है,जब वह नहीं कर पाता तो उसका मन उस विषय के सीखने की ओर हट जाता है और दूसरे विषय की ओर उसका अवधान देर में केंद्रित होता है तथा उसमें अवधान को शीघ्र तोड़ने की आदत पड़ जाती है एवं
- (ख)दूसरा विषय जिसे उसे पढ़ने को बाध्य किया जाता है,उसमें वह कोई भी रुचि नहीं लेता और इस प्रकार उस विषय को सीखने में असमर्थ रहता है।
- (6.)यदि कोई छात्र अस्वस्थ होने के कारण या अन्य किसी कारण से विद्यालय में नहीं आ पाता है तो वह जिन दिनों अनुपस्थित रहता है,उन दिनों में पढ़ाये जाने वाले पाठों में पिछड़ जाता है।दरअसल आजकल की शिक्षा में स्वास्थ्य शिक्षा,खेल आदि पर ध्यान नहीं दिया जाता है।छात्र-छात्राएं न तो घर पर व्यायाम,योगासन-प्राणायाम आदि करते हैं न स्कूलों में व्यायाम कराया जाता है इसलिए वे बीमार पड़ जाते हैं।बीमारी या आकस्मिक दुर्घटना अथवा अन्य किसी कारण से अनुपस्थित रहने पर छात्र को न पढ़े हुए पाठों को पढ़ाने की कोई व्यवस्था नहीं की जाती फलतः वह पिछड़ता चला जाता है।
- (7.)कक्षा-शिक्षण का सबसे बड़ा दोष जिनके संबंध में ऊपर संकेत कर चुके हैं यही है कि कक्षा में दिया जाने वाला शिक्षण औसत बालक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर दिया जाता है।यह न तो प्रतिभावान बालक की आवश्यकताओं की ओर सचेत होता है और न पिछड़े बालकों की ओर।
4.कक्षा शिक्षण में गुण (Qualities in Classroom Teaching):
- कक्षा-व्यवस्था के प्रचलन का ठोस आधार आर्थिक है। कोई भी देश इतना धनी नहीं है कि कक्षा-व्यवस्था को हटाकर व्यक्तिगत शिक्षण को अपना लें।यदि हम व्यक्तिगत शिक्षण के दृष्टिकोण को अपने सामने रखें तो इसका अर्थ होगा कि प्रत्येक विद्यार्थी के लिए एक शिक्षक की आवश्यकता है।जितने विद्यार्थी होंगे,उतने ही शिक्षकों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए देश के अधिकतर नागरिकों को शिक्षण का उत्तरदायित्व उठाना होगा।
- (2.)कुछ विशेष विषयों में कक्षा-शिक्षण का महत्त्व व्यक्तिगत शिक्षण से कहीं अधिक है।कविता,संगीत,कला,इतिहास,वाचन तथा कहानी कहना इत्यादि विषयों में जहां प्रेरणात्मक भावना प्रमुख रहती है,उनके शिक्षण में कक्षा-पद्धति को अपनाना ही सबसे उत्तम है।
- (3.)कक्षा-शिक्षण में ‘संख्या की सहानुभूति’ नामक प्रवृत्ति सक्रिय हो जाती है।इससे तात्पर्य है कि बालक कक्षा के दूसरे छात्रों को कुछ करते हुए देखकर स्वयं भी वैसा ही कार्य करने लगते हैं।यदि होशियार छात्र-छात्राएँ गणित के सवालों को हल करते हैं तो सामान्य छात्र-छात्राएं और कमजोर छात्र-छात्राएं भी सवालों को हल करने के लिए प्रेरित होते हैं,वे भी सवालों को हल करने का प्रयास करते हैं।यदि खुद हल नहीं कर सकते हैं,तो होशियार छात्र-छात्राओं की मदद से हल करने की कोशिश करते हैं।
- (4.)कक्षा-शिक्षण द्वारा सामूहिक कार्य करने की प्रेरणा बालकों को मिल जाती है।बालक शिक्षक तथा अच्छे छात्रों का अनुसरण करके बहुत कुछ सीख जाता है।बालकों में उत्साह का संचार कक्षा-शिक्षण द्वारा ही सरलता से किया जा सकता है।
- (5.)विद्यार्थियों में प्रतियोगिता की भावना का विकास होता है प्रत्येक विद्यार्थी दूसरे से अच्छा कार्य करने की चेष्टा करने लगता है और इस प्रकार बहुत से विद्यार्थी प्रगति की ओर अग्रसर होते हैं।
- (6.)शिक्षक,कक्षा शिक्षण में सक्रिय रहता है।वह पाठ को अच्छी तरह से तैयार करके ही कक्षा में पढ़ाने जाता है और सदैव इस बात के लिए सचेत रहता है कि बालक उसकी कोई त्रुटि न पकड़ लें।इससे न केवल छात्र-छात्रा का विकास होता है बल्कि शिक्षक भी छात्र-छात्राओं से सीखता है और उसका भी विकास होने लगता है।
- (7.)शिक्षक उस प्रसंग को जो वह पढ़ रहा है,ठीक से बालकों के मन में बैठाने के लिए भिन्न-भिन्न रूप में बालकों के समक्ष प्रस्तुत करता है।उसकी चेष्टा यह रहती है कि प्रत्येक बालक उसे समझ जाय,इसलिए वह प्रत्येक विद्यार्थी को समझने के दृष्टिकोण को सामने रखकर उस प्रसंग को विभिन्न रूप में रखता है।इस प्रकार संपूर्ण कक्षा को एक ही प्रसंग को विभिन्न पहलुओं से समझने के अवसर प्राप्त हो जाते हैं जिससे प्रत्येक विद्यार्थी को लाभ होता है।
- (8.)कक्षा में बालक समूह के रूप में रहते हैं।इस कारण उनमें सहानुभूति,सहिष्णुता,सहयोग,स्पर्द्धा,संघर्ष,क्षमता तथा नेतृत्व आदि के गुणों का विकास होता है।ये गुण भविष्य में आने वाले उनके सामाजिक जीवन में अत्यंत लाभदायक सिद्ध होते हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं की कक्षा-शिक्षण में अनेक गुण है।अतः इन गुणों के होते हुए ऐसा विचार करना गलत होगा कि कक्षा-शिक्षण की मौत की घंटी बज चुकी है।इस समय इस बात का मतभेद हो सकता है कि कक्षा में कितने विद्यार्थी हों या कक्षा में पढ़ाई किस प्रकार की जाय परंतु कक्षा-शिक्षण का अंत नहीं किया जा सकता।
5.कक्षा-शिक्षण का निष्कर्ष (Conclusion of Classroom Teaching):
- वस्तुतः कोई भी गणित शिक्षण विधि पूर्णतः दोषों से रहित नहीं है।इसी प्रकार कक्षा-शिक्षण में भी दोष हैं।देखा जाए तो शिक्षण विधि को जीवंत,सक्रिय,दोषों से रहित करने का काम शिक्षकों,छात्र-छात्राओं,अभिभावकों व माता-पिता का ही होता है याकि हो सकता है।
- यदि शिक्षक निष्क्रिय होकर,बेजान तरीके से पढ़ायेगा तो कितनी भी श्रेष्ठ शिक्षण विधि हो उसमें दोष दीखने लगते हैं।यदि शिक्षक सक्रिय होकर पढ़ाएगा,छात्र-छात्राओं को प्रेरित करते हुए पढ़ाएगा तो कक्षा-शिक्षण को रुचिकर व जीवन्त बनाया जा सकता है।यदि गणित शिक्षक थ्योरी व सवाल समझा रहा है तो छात्र-छात्राओं को भी बीच-बीच में कुछ सवालों को हल करवाया जाए जिससे छात्र-छात्राएं सक्रिय रहेंगे।सवालों को हल करने में रुचि लेंगे,सवालों को हल करने के अभ्यस्त होंगे।यदि अन्य विषय पढ़ाया जा रहा हो,तो उन्हें सक्रिय करने के लिए बीच-बीच में सवाल (प्रश्न) पूछते रहना चाहिए।
- आज कक्षा-शिक्षण से भी आगे बढ़कर ऑनलाइन शिक्षण की तरफ विश्व बढ़ रहा है परन्तु ऑनलाइन शिक्षण भी कक्षा-शिक्षण का विकल्प नहीं हो सकता है।कक्षा-शिक्षण में बच्चे शिक्षक के प्रत्यक्ष रूप में आमने-सामने होते हैं।बच्चों की कोई भी जिज्ञासा हो,कोई भी समस्या हो,कोई भी सवाल हल ना हो रहा हो तो तत्काल शिक्षक से पूछ सकते हैं।
- यदि कक्षा में छात्र-छात्राओं की संख्या अधिक हो तो एक ही कक्षा में दो शिक्षक या तीन शिक्षकों को लगाया जा सकता है।इस प्रकार उनकी (छात्र-छात्राओं की) अधिक से अधिक व्यक्तिगत समस्याओं को हल किया जा सकता है।
- कक्षा के होशियार छात्र-छात्राएं भी कक्षा में बैठते हैं।जो होशियार छात्र-छात्रा होता है उसके आस-पास के छात्र-छात्राएं उसे अपने टीम लीडर के रूप में देखते हैं और कोई समस्या होती है तो होशियार छात्र-छात्रा से पूछकर अपना समाधान प्राप्त कर लेते हैं।जब होशियार छात्र-छात्रा कमजोर छात्र-छात्राओं की समस्याओं को हल करें तो शिक्षक को होशियार छात्र-छात्रा की प्रशंसा करके उसे प्रोत्साहित करना चाहिए।
- इसके अतिरिक्त पाक्षिक व मासिक तथा रैंकिंग टेस्ट के आधार पर शिक्षक पता लगाए कि कौनसे छात्र-छात्राएं कक्षा शिक्षण में पिछड़ रहे हैं? जो छात्र-छात्राएं पिछड़ रहे हों उनको अतिरिक्त कालांश (पीरियड) में पढ़ाया जाना चाहिए और उनकी कमजोरी को दूर करना चाहिए।तात्पर्य यह है कि शिक्षक खुद सजग व सक्रिय रहकर,होशियार छात्र-छात्राओं की मदद से,अतिरिक्त कालांश लेकर,प्रश्नोत्तर पूछकर,छात्र-छात्राओं से सवाल हल करवाकर,मॉडल,चार्ट,रेखाचित्र आदि के द्वारा कक्षा-शिक्षण को प्रभावी,रोचक और आनंददायक बना सकता है।आधुनिक शिक्षण में शिक्षक व संस्था के प्रधान की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- माता-पिता व अभिभावक आधुनिक जीवन शैली में कितने ही व्यस्त हों लेकिन फिर भी बच्चों का विकास करने के लिए थोड़ा-बहुत समय निकालकर रोजाना उनके साथ व्यतीत करना चाहिए।उनकी प्रगति की जानकारी बच्चों व शिक्षकों से मिलकर जानना चाहिए।यदि कहीं भी कोई कमजोरी नजर आती है तो कमजोरी का कारण जानकर उसे दूर करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।केवल शिक्षा संस्थान के भरोसे ही बच्चों को नहीं छोड़ना चाहिए।प्रतिदिन घण्टा-दो घण्टा उनके साथ बैठना चाहिए।स्वयं भी पढ़ना चाहिए।यदि स्वयं पढ़े-लिखे हैं तो बच्चों को पढ़ाना चाहिए।बच्चों को अध्ययन करने के लिए प्रेरक प्रसंग सुनाने चाहिए।इस प्रकार माता-पिता व अभिभावक भी कक्षा-शिक्षण को रोचक,आनंददायक बनाने में अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दे सकते हैं।
- उपर्युक्त आर्टिकल में गणित हेतु कक्षा शिक्षण की 5 तकनीक (5 Techniques of Class Teaching of Math),कक्षा शिक्षण विधि के लाभ एवं दोष (Merits and Demerits of Classroom Teaching Method) के बारे में बताया गया है।
Also Read This Article:Lecture Method in Mathematics
6.सवाल हल करने की जल्दी (हास्य-व्यंग्य) (Hurry to Solve Questions) (Humour-Satire):
- एक छात्र खड़ा-खड़ा जल्दी-जल्दी सवाल हल कर रहा था।
- बुजुर्ग:अरे बेटा,खड़े-खड़े सवाल हल क्यों कर रहे हो,कहीं बैठकर इत्मीनान से सवाल हल कर लो।
- छात्र:मैं जल्दी में हूं,परीक्षा होने वाली है,मरने तक की फुर्सत नहीं है,इसलिए जरा जल्दी में इन सवालों को हल कर रहा हूं,बैठने की फुर्सत नहीं है।
7.गणित हेतु कक्षा शिक्षण की 5 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5 Techniques of Class Teaching of Math),कक्षा शिक्षण विधि के लाभ एवं दोष (Merits and Demerits of Classroom Teaching Method) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.कक्षा शिक्षण से सीखने में अरुचि कब होती है? (When does classroom teaching lead to disinterest in learning?):
उत्तर:जब छात्र-छात्राओं या शिक्षक की मनःस्थिति बिगड़ी हुई हो,जब वे पढ़ने-पढ़ाने को बोझ समझते हों,जब उन्हें सक्रिय नहीं रखा जाता हो,जब शिक्षक केवल वेतन मिलने के दृष्टिकोण से पढ़ाता हो,जब छात्र-छात्राएं केवल उत्तीर्ण होने के दृष्टिकोण से पढ़ते हों तो कक्षा-शिक्षण अरुचिकर और उबाऊ महसूस होने लगता है।
प्रश्न:2.सच्चा शिक्षक का गुण क्या है? (What is the quality of a true teacher?):
उत्तर:सच्चा,श्रेष्ठ व महान शिक्षक वही है जो छात्र-छात्राओं को प्रेरित करता है,उनमें प्राण फूंक देता हो,उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचा देता हो।जैसे आग में डालने से सोना काला नहीं पड़ता वैसे ही जिस शिक्षक के सिखाने में किसी प्रकार की भूल ना दिखाई पड़े उसे ही सच्ची शिक्षा व शिक्षक कहेंगे।
प्रश्न:3.शिक्षण से क्या आशय है? (What do you mean by teaching?):
उत्तर:शिक्षण का कार्य कोई स्वतंत्र तत्त्व उत्पन्न करना नहीं है;बल्कि छात्र-छात्राओं की सुप्त प्रतिभा को जागृत करना है।परंतु शिक्षण दंड है,यह गुलामी की भावना ही आज विद्यार्थियों में प्रचलित है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा गणित हेतु कक्षा शिक्षण की 5 तकनीक (5 Techniques of Class Teaching of Math),कक्षा शिक्षण विधि के लाभ एवं दोष (Merits and Demerits of Classroom Teaching Method) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
No. | Social Media | Url |
---|---|---|
1. | click here | |
2. | you tube | click here |
3. | click here | |
4. | click here | |
5. | Facebook Page | click here |
6. | click here |
Related Posts
About Author
Satyam
About my self I am owner of Mathematics Satyam website.I am satya narain kumawat from manoharpur district-jaipur (Rajasthan) India pin code-303104.My qualification -B.SC. B.ed. I have read about m.sc. books,psychology,philosophy,spiritual, vedic,religious,yoga,health and different many knowledgeable books.I have about 15 years teaching experience upto M.sc. ,M.com.,English and science.