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5 Techniques How to Reduce Screen Time

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1.स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 तकनीक (5 Techniques How to Reduce Screen Time),मोबाइल के आदी बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 टिप्स (5 Tips to Reduce Screen Time Mobile-addicted Children):

  • स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 तकनीक (5 Techniques How to Reduce Screen Time) के आधार पर आप जान सकेंगे कि किस युक्ति से स्क्रीन टाइम को कम किया जाए।दरअसल आधुनिक जीवन शैली में गैजेट्स पर काम करते समय वर्चुअल दुनिया में इस कदर खो जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि कितना समय गुजर चुका है।
  • हालांकि आजकल आधुनिक गैजेट्स में ऐसा नोटिफिकेशन आ जाता है कि आप द्वारा निर्धारित समय से अधिक मोबाइल का प्रयोग करते ही वह अलर्ट कर देता है परंतु हम उस नोटिफिकेशन की परवाह नहीं करते।
  • जो लोग पेशेवर हैं उनका गैजेट्स का कई घंटों तक कार्य करना उनकी मजबूरी है परंतु जिनकी ऐसी मजबूरी नहीं है वे स्क्रीन टाइम को कैसे निर्धारित करें,यही इस लेख में बताया गया है।खासकर युवावर्ग इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं।मोबाइल तथा गैजेट्स के अनेक फायदे हैं,आपकी जीवन शैली को सुविधाजनक बनाता है तो इसके अत्यधिक प्रयोग से नुकसान भी हैं अतः इसी अति से बचने के उपाय प्रस्तुत हैं।
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2.मोबाइल मेनिया के दृश्य (Visuals of Mobile Mania):

  • दृश्य एक:कोटा शहर के अनंतपुरा तालाब बस्ती निवासी सातवीं कक्षा की छात्रा अर्चना बैरवा (उम्र 14 वर्ष) ने एक जुलाई 2024 सोमवार को मोबाइल पर गेम खेलने पर टोकने की बात पर जान दे दी।अर्चना के पिता राधेश्याम बैरवा नल फिटिंग का कार्य करते हैं।
  • माँ रात 8:00 बजे सब्जी लेकर आई तो अर्चना ऊपर कमरे में मोबाइल में गेम खेल रही थी (मां के मोबाइल से)।मां ने नीचे से आवाज लगाई (तीन-चार बार) परंतु वह नीचे नहीं आई।तब माँ ने ऊपर जाकर अर्चना को डांट लगाई की इतनी देर से गेम खेल रही है,मंगलवार (2 जुलाई) से स्कूल जाना है,बैग को जमा ले और कुछ पढ़ाई कर ले और मोबाइल छीन कर नीचे आ गई।नीचे मां के जाते ही उसने (अर्चना ने) कमरा बंद करके जान दे दी।
  • दृश्य दो:सोमवार (5 अगस्त 2024) को चित्तौड़गढ़ स्थित मेनाल में पिकनिक मनाने पहुंचे दो दोस्त कान्हा और अक्षित पानी के बहाव में रील बना रहे थे।तभी कान्हा का पैर फिसलने से बह गया जबकि अक्षित को किसी तरह लोगों ने बचा लिया।
  • दृश्य तीन:एक स्टडी में जाहिर हुआ है की मां-बाप छोटे-छोटे बच्चों (दो-तीन वर्ष से लेकर सात-आठ वर्ष तक) को रोने से चुप कराने के लिए मोबाइल पर कोई बच्चों से सम्बन्धित वीडियो या गेम चलकर उनके हाथ में थमा देते हैं।बच्चा भी मोबाइल हाथ में आते ही उसमें व्यस्त हो जाता है।कई-कई घंटे गुजरने के बावजूद उससे मोबाइल नहीं छूटता।छोटे-छोटे बच्चे मां-बाप से मोबाइल के लिए जिद करने लगते हैं।माता-पिता घर का काम निपटाने,जरूरी काम करने के चक्कर में अनजाने में ही मोबाइल देकर उनके लत लगा देते हैं।धीरे-धीरे जब बच्चे किशोर व युवा होते हैं तो इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर क्लिक का दौर चलता रहता है।रील्स दर रील्स में कितना समय निकाल दिया पता ही नहीं चलता।लगातार रील्स (वीडियो) देखने से बच्चों में कंप्यूटर विजन सिंड्रोम नामक रोग पैदा हो जाता है।नेशनल सेंटर ऑफ बायोटेक्नोलॉजी इनफॉरमेशन (एनसीबीआई) की रिपोर्ट के अनुसार 66% बच्चे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम एंड डिजिटल आई स्ट्रेन के शिकार हो रहे हैं।कोरोना के समय से शुरू हुई मोबाइल स्क्रीन की लत बच्चों की दूरदृष्टि पर बुरा असर डाल रही है।
  • दृश्य चार:जयपुर के एक मामले में युवती की शादी को एक साल हुआ था।कामकाजी दंपति सात-आठ घंटे दफ्तर में व्यतीत करते थे।घर आने के बाद युवक का ध्यान फोन पर ही रहता था।वह सोशल मीडिया पर व्यस्त रहता या गेम खेलता।पत्नी ने कई बार टोका पर फर्क नहीं पड़ा।उसकी यह शिकायत रहती थी कि वह बहुत अकेला महसूस करती है।उसकी बातों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।इस कारण लड़ाई-झगड़े भी बढ़ते रहे और उन्होंने अलग होने का फैसला कर लिया।

3.वर्चुअल दुनिया में खोने का असर (The Impact of Getting Lost in the Virtual World):

  • मोबाइल पर स्क्रीन समय बढ़ने का असर सेहत पर ही नहीं,पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ रहा है।इसका सर्वाधिक नुकसान वैवाहिक जीवन पर हो रहा है।एक रिपोर्ट के अनुसार 67 फीसदी लोग पार्टनर के साथ रहते हुए और बात करते समय फोन स्क्राॅल करते हैं।इससे उनकी निजी जिंदगी और भावनात्मक जुड़ाव प्रभावित हो रहे हैं और तलाक तक की नौबत आ रही है।जिनकी नोकझोंक स्क्रीन समय से शुरू होकर कई बड़े मुद्दों तक पहुंच जाती है।इंस्टीट्यूट ऑफ फैमिली स्टडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार कई लोग 8-9 घंटे दफ्तर में व्यतीत करते हैं।घर आने के बाद फोन का इस्तेमाल करते हैं।खाने की टेबल पर भी एक-दूसरे से संवाद नहीं कर फोन देखते हैं।पारिवारिक न्यायालय जयपुर में इस तरह के एक महीने में 10-15 मामले आ रहे हैं।
  • हाल ही टैक्सास यूनिवर्सिटी के अध्ययन के निष्कर्षों में सामने आया कि माँ स्मार्टफोन का इस्तेमाल करती है तो अपने बच्चों से कम बात करती है।अस्पतालों के आउटडोर जयपुर में रोजाना डेढ़ से तीन वर्ष के आयु के करीब 10 लोग इस तरह की परेशानी के साथ पहुंच रहे हैं।जर्नल चाइल्ड डेवलपमेंट में प्रकाशित शोध में नई माँओं और शिशुओं को शामिल किया।इस दौरान शिशुओं ने छोटे ऑडियो रिकॉर्डर पहने थे,जबकि उनकी माँओं के फोन इस्तेमाल पर निगरानी स्मार्टफोन लाॅग के जरिए की गई।टीम 16000 मिनट के सिंक्रोनाइज्ड डेटा विश्लेषण से नतीजे निकाले कि माँ अगर एक मिनट फोन में व्यस्त रहती है तो बच्चे से 16% तक कम शब्द बोल पाती है।जैसे-जैसे यह अवधि बढ़ती है,माँ से बच्चों की बातचीत कम होती जाती है।
  • इस विश्लेषण का औसत देखें तो करीब मां और नवजात शिशुओं की बातचीत में 26 फीसदी तक की कमी दर्ज हुई।
    वर्किंग पेरेंट्स जिनका अपना बिजनेस है दिनभर बच्चों के साथ ऑनलाइन काम देखते हैं,जिसके कारण डिजिटल और मोबाइल पर लगातार काम करना पड़ता है।काम में व्यस्त रहने के कारण माता-पिता का बच्चों से संवाद नहीं होता।इस कारण बच्चा समय पर बोलना नहीं सीख पाता और सिर्फ इशारे ही समझ पाता है।
  • अमूमन किशोर और युवा परिपक्व ना होने के कारण रील्स बनाने के दौरान जोखिम भरा कदम उठा लेते हैं।युवाओं में एक-दूसरे को देखकर भी जोखिम भरी रील बनाने की होड़ जिसे ‘कॉपीकैट फेनोमेना’ कहा जाता है।
    सोशल मीडिया पर रील्स के जरिए लोग लोकप्रिय होने,दूसरों को प्रभावित करने,लाइक्स और कमेंट्स के चलते भी दोस्तों और फॉलोअर्स के दबाव (पीयर प्रेशर) में आकर युवा अपने आपको जोखिम में डाल रहे हैं।कई बार खतरनाक स्टंट्स के दौरान हाथ-पैर तुड़वा बैठते हैं या जिंदगी ही दाँव पर लगा देते हैं।ऐसा करना घातक हो सकता है।
  • बच्चा म्यूजिक बैंड की तेज धुन सुनने का आदी है।वो ज्यादातर समय हेडफोन,ईयरफोन या ईयर बड्स लगाकर बीट्स या धुनों में खोया रहता है।जब तक वो नहीं सुने तब तक खुद को रिलैक्स महसूस नहीं करता या फिर उसका मूड नहीं बदलता है।यानी उसमें बेचैनी होने लगती है।ये डिजिटल ड्रग के लक्षण है।लोग मानसिक शांति के लिए यूट्यूब समेत कई एंटरटेनमेंट प्लेटफार्म पर बाइनॉरल बीट्स,डार्क म्यूजिक या म्यूजिक बैंड की धुने सुनकर एक्टिव हो रहे हैं।शुरुआत में तो इन्हें रिलैक्स महसूस होता है फिर यह आदत बन जाती है।

4.स्क्रीन टाइम को कम करने के उपाय (Ways to reduce screen time):

  • छोटे बच्चों को (तीन-चार वर्ष से लेकर किशोर बच्चों तक) मोबाइल बिल्कुल भी ना दें बल्कि खिलौने वगैरह से उन्हें खेलने के लिए दें।अपने आपका भी मोबाइल पर स्क्रीन टाइम निर्धारित करें और आवश्यक होने पर ही मोबाइल का उपयोग करें।बार-बार सोशल मीडिया पर नोटिफिकेशन देखना,घंटों व्यर्थ की चैटिंग करने से बचें।यदि आपके पास खाली समय है तो उस समय सत्साहित्य पढ़ने,योगासन-प्राणायाम,कोई हाॅबी यथा लेखन,बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना-लिखाना,सत्साहित्य का अध्ययन करना,योगासन-प्राणायाम-ध्यान,भजन,नृत्य आदि में जिसमें में रुचि हो,को विकसित करें।
  • वर्चुअल लाइफ पर ज्यादा समय बिताने के बजाय वास्तविक जीवन,सामाजिक,पारिवारिक जीवन,मित्रों आदि के साथ समय बिताएँ,बच्चों को समय दें।बच्चों को समय न देने के कारण बच्चे अच्छे कार्य की बजाय अनावश्यक,फालतू की बातों में लग जाते हैं और फिर धीरे-धीरे बुरी आदतें सीख जाते हैं।
  • बच्चों,परिवार के सदस्यों से वार्तालाप करते समय,भोजन करते समय मोबाइल फोन से दूर रहें,यदि आप मोबाइल पर व्यस्त रहेंगे तो उन्हें लगेगा कि आप उनको कोई तवज्जो नहीं दे रहे हैं,इससे आपस की आत्मीयता खत्म होती है,दूरियां बढ़ती हैं और अनेक शंकाएं जन्म ले लेती हैं।मोबाइल से दूर रहकर अपने लोगों से बातचीत करेंगे तो आपको महसूस होगा कि वास्तविक जीवन,वास्तविक लोगों,अपने लोगों के साथ समय बिताना भी बहुत खूबसूरत होता है।
  • यदि एकल परिवार है और आपके पास काफी खाली समय है तो भी अपना स्क्रीन टाइम लिमिटेड रखें क्योंकि अति हर चीज की खराब होती है।अपने गुण-कर्म-स्वभाव के माफिक मित्र बनाएं और कुछ समय उनके साथ बिताएं।सुबह-शाम बगीचे में या कहीं बाहर घूमने जाएं।बच्चों को समय अवश्य दें।उनकी समस्याएं सुनें और उनको हल करने की पूरी कोशिश करें।यदि आप पढ़ाने में सक्षम हैं तो उनका होमवर्क पूरा करायें और उन्हें पढ़ायें।
  • मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए कहीं दूर पढ़ने के लिए भेजना,हॉस्टल में भर्ती कराना या रिश्तेदारों के यहां भेजने की बजाय आप खुद अपने संरक्षण में रखेंगे तो सुधार होने की संभावना ज्यादा है।ऐसे आवासीय हॉस्टल बहुत कम हैं जहाँ बच्चों को नियंत्रण में रखा जाता है,प्यार और अपनत्व मिलता है और उनके गुणों को विकसित किया जाता है।आप एक आंख दुलार की और एक आंख दंड और अनुशासन की रखेंगे तो बच्चों में,आपकी छत्रछाया में गुणों का विकास बेहतरीन तरीके से होगा।रिश्तेदारों के यहां भी अक्सर बच्चों को छोड़ने पर बिगड़ जाते हैं क्योंकि वे लाड़-प्यार में रखते हैं और अनुशासन का पालन करने की तरफ ध्यान नहीं रहता है।
  • मोबाइल पर हिंसक गेम खेलने,अश्लील कंटेंट देखने,वाहियात बातें (चैटिंग) करने से बच्चों में ड्रग्स का सेवन,अय्याशी करने,कामुक प्रवृत्ति होने की आदत पड़ जाती है।ऐसी स्थिति में बच्चा अकेला ही रहना पसंद करता है।मोबाइल को उनसे लेने पर गुस्सा जाहिर करता है।यदि बच्चा वयस्क है और ऑनलाइन कंटेंट देखने की जरूरत है तब भी बच्चों पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष निगरानी रखना जरूरी है।मोबाइल पर वाहियात,ड्रग्स,अय्याशी करने वाले कंटेंट देखने से बच्चे तो क्या बड़े भी बिगड़ जाते हैं।संगत का असर तो वर्चुअल और वास्तविक लाइफ दोनों में पड़ता है।
  • पेशेवर ब्लॉगर हैं,यूट्यूबर हैं या शौकिया तौर पर यूट्यूब,इंस्टाग्राम पर वीडियो अपलोड करते हैं,सोशल मीडिया पर फोटो या रील पोस्ट करने का शौक हो तो भी खतरनाक स्टंट करने के दौरान किसी मित्र या पेशेवर की मदद लें।कोई भी फोटो,वीडियो बनाने के लिए सुरक्षित जगह का चुनाव करें।माता-पिता को बच्चों की हर एक्टिविटी पर नजर रखनी चाहिए यथा कैसे मित्रों के साथ रहता है,उनके साथ क्या करता है,स्वयं किन गतिविधियों में रुचि लेता है,कहां जा रहा है,क्यों जा रहा है,गुमसुम तो नहीं रहता,अकेलापन तो पसंद नहीं करता,कोई गलत एक्टिविटी में संलग्न तो नहीं है आदि।शिक्षण संस्थानों में स्क्रीन टाइम,मोबाइल फोन का उपयोग करने के फायदे और नुकसान बताएं जाने चाहिए।शिक्षण संस्थानों में आपस में मिलजुल कर रहने,सांस्कृतिक प्रोग्राम तथा खेलों का आयोजन किया जाना चाहिए ताकि छात्र-छात्रा सामाजिक,समूह में रहना सीखें और आपस में एक-दूसरे से व्यवहार करने का शिष्टाचार सीखें।

5.गैजेट्स के प्रयोग से ध्यान में व्यवधान (Attention disruption due to use of gadgets):

  • स्मार्टफोन विद्यार्थियों का ध्यान भटका सकता है।एक बार ध्यान भटकने पर फिर से फोकस करने में 20 मिनट तक लग जा सकते हैं।इससे उनके सीखने-समझने पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।यूनेस्को  की वैश्विक निगरानी (जीईएम) रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मूल्यांकन से जुड़े डेटा के विश्लेषण से यह निष्कर्ष पेश किया गया।
  • रिपोर्ट के मुताबिक प्रौद्योगिकी के अत्यधिक इस्तेमाल और विद्यार्थियों के अध्ययन करने के बीच नकारात्मक संबंध नजर आता है।प्राइमरी स्तर पर यह असर थोड़ा कम,वहीं उच्च शिक्षा स्तर पर बढ़ जाता है।इसके बावजूद दुनिया के सिर्फ एक चौथाई देशों ने स्कूलों में मोबाइल के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा रखा है।रिपोर्ट में रेखांकित किया गया कि स्मार्टफोन और अन्य प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल तभी हो,जब इनसे सीखने के नतीजों पर सकारात्मक असर पड़ता हो।
  • कोरोना काल में पूरी शिक्षा प्रणाली को ऑनलाइन मोड में शुरू कर दिया गया,लेकिन डिजिटल तकनीक के खतरों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थी मूल्यांकन कार्यक्रम (पीसा) से मिल रहे डेटा के विश्लेषण के दौरान पाया गया कि पढ़ाई के दौरान अन्य गतिविधियां ध्यान भटकाती हैं।पढ़ाई के दौरान स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते समय नोटिफिकेशन आ जाए तो विद्यार्थी का ध्यान उस पर चला जाएगा।पढ़ाई पर फिर से ध्यान केंद्रित करने में समय लगेगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 तकनीक (5 Techniques How to Reduce Screen Time),मोबाइल के आदी बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 टिप्स (5 Tips to Reduce Screen Time Mobile-addicted Children) के बारे में बताया गया है।

Also Read This Article:How to Avoid Side Effects of Gadgets?

6.गणित का श्रेष्ठ कक्ष (हास्य-व्यंग्य) (Best Room in Mathematics) (Humour-Satire):

  • एक गणित का विद्यार्थी एक कोचिंग में पहुंचा।वहाँ निदेशक ने उसका स्वागत किया और उसे कोचिंग की सैर कराई।निदेशक ने कहा कि यहां तीन तरह के गणित की कक्षाएँ हैं।
  • पहली कक्षा छात्र-छात्राओं से ठसाठस भरी हुई थी और उसमें सांस लेना भी दूभर था।विद्यार्थी ने कहा कि इस कक्षा में वह नहीं रहना चाहेगा।निदेशक उसे दूसरी कक्षा में ले गया।वहाँ छात्र-छात्राओं को इतना वर्क कराया जा रहा था कि वे कर ही नहीं पा रहे थे,वर्क न करने पर शिक्षक मानसिक रूप से टॉर्चर कर रहे थे।छात्र-छात्राएं जोर-जोर से रो रहे थे।विद्यार्थी यह सब देखकर घबरा गया।
  • उसे तीसरी कक्षा (अंतिम कक्षा) में ले जाया गया।वहां छात्र-छात्राएं आराम कर रहे थे और आपस में खुशी से गुफ्तगू कर रहे थे।अन्य दो कक्षाओं की तरह वहाँ उसे कोई कष्टदायक बात दिखाई नहीं दी।विद्यार्थी ने कहा कि वह इसी कक्षा में रहना चाहता है।निदेशक ने उसी कक्षा में छोड़ दिया और चले गए।
  • वह आराम से एक बेंच पर बैठ गया।कुछ देर बाद शिक्षक ने जोरदार आवाज में कहा कि अब ब्रेक टाइम खत्म हुआ।तुमने किसी ने भी अभी तक लेसन तैयार करके नहीं सुनाया अतः डंडे खाने के लिए तैयार हो जाओ।

7.स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 तकनीक (Frequently Asked Questions Related to 5 Techniques How to Reduce Screen Time),मोबाइल के आदी बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 टिप्स (5 Tips to Reduce Screen Time Mobile-addicted Children) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.डिजिटल डिटाक्सिंग से क्या आशय है? (What do you mean by digital detoxing?):

उत्तर:किशोर और युवावर्ग स्कूल से छुट्टी के दिन हाइपरटेंशन व एंजायटी (चिंता,तनाव) से बचने के लिए खुद रोजाना या छुट्टी के दिन मोबाइल से घंटों दूर रहने की आदत डालते हैं या डिजिटल डिटाक्सिंग सेंटर पहुंचकर काउंसलर उनको योग व ध्यान का अभ्यास करवाकर डिजिटल उपवास के टिप्स देते हैं और फॉलो करवाते हैं इसे ही डिजिटल डिटॉक्सिंग कहते हैं (यानी स्क्रीन टाइम को कम करने की तकनीक)।

प्रश्न:2.डिजिटल ड्रग का शिकार होने से क्या आशय है? (What do you mean by being a victim of digital drugs?):

उत्तर:यह एक खास प्रकार का साउंड होता है,जिसमें आपको दोनों कानों में अलग-अलग फ्रीक्वेंसी की आवाजें सुनाई देती हैं।इससे दिमाग कंफ्यूज होकर दोनों साउंडस को एक बनाने की कोशिश करता है।ऐसा करके दिमाग में अपने आप ही तीसरा साउंड बन जाता है।जिसे केवल हम सुन सकते हैं।इस एक्टिविटी से लोग खुद को शांत और खोए हुए पाते हैं।

प्रश्न:3.वर्चुअल ऑटिज्म क्या है? (What is Virtual Autism?):

उत्तर:यह एक ऐसी समस्या है जिसमें बच्चों की ठीक से परवरिश न करने और माता-पिता मोबाइल पर ही व्यस्त रहते हैं तो बच्चा संवाद करना नहीं सीखता।दो से पाँच वर्ष की आयु में लक्षण सामने आने लगते हैं कि बच्चा बोल क्यों नहीं रहा इशारा ही क्यों करता है? अभिभावक वर्चुअल दुनिया से हटकर बच्चों को समय दें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 तकनीक (5 Techniques How to Reduce Screen Time),मोबाइल के आदी बच्चों के स्क्रीन टाइम को कम करने की 5 टिप्स (5 Tips to Reduce Screen Time Mobile-addicted Children) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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