5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment
1.अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment),अध्ययन हेतु अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Study to Control Mind with Practice and Renouncing Worldly Pleasures):
- अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 रणनीतियों (5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment) के आधार पर अध्ययन पर मन को फोकस करने में मदद मिल सकेगी।मन को वश में करना ही योग का प्रयोग है।अभ्यास और वैराग्य से क्या नहीं किया जा सकता अर्थात् विद्यार्थी के लिए अध्ययन में मन को लगाना,अध्ययन में मन को एकाग्र करना संभव है।
- मन को वश में करना है तो कठिन है क्योंकि मन की गति बहुत तीव्र है तथा यह इधर-उधर उछल-कूद करता है,एक विषय पर टिकता नहीं है।मन को केवल अभ्यास से या केवल विरक्त भाव से वश में नहीं किया जा सकता है।अभ्यास और विरक्ति भाव दोनों आवश्यक हैं।
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2.विद्यार्थी अभ्यास करें (Students Should Practice):
- गणित के छात्र-छात्राएं गणित विषय का अध्ययन करने अथवा अन्य विषयों का अध्ययन करते समय बार-बार अभ्यास करें।अभ्यास से तात्पर्य है बार-बार आवृत्ति या पुनरावृत्ति करना।कई विद्यार्थियों को एक विषय की बार-बार पुनरावृत्ति करने से बोरियत या ऊब पैदा हो जाती है।मन एक विषय को बार-बार पढ़ने से ऊब जाता है।
- हमें बोरियत ना हो या ऊब पैदा ना हो इसके लिए कुछ बातों का पालन करना और समझना होगा।हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कई कार्य हम रोजाना करते हैं परंतु बोरियत नहीं होती है जैसे खेलने-कूदने,गाना गाने या भोजन करने,स्नान करने,शौच जाने के लिए हम रोज पुनरावृत्ति करते हैं,परंतु उनसे बोरियत नहीं होती है।दरअसल अनिवार्य और आवश्यक कार्यों को करने से बोरियत नहीं होती है बल्कि आनंद की अनुभूति होती है।
- किसी भी प्रश्नावली को बार-बार हल नहीं करेंगे,किसी पाठ को बार-बार याद नहीं करेंगे तो उसमें सिद्धहस्त नहीं हो सकते हैं,उसे भूल जाएंगे।क्योंकि याद है तो आबाद है और भूल गया तो बर्बाद है।विद्यार्थियों के लिए अध्ययन करना,पाठ और प्रश्नावली की पुनरावृत्ति करना जरूरी ही नहीं है,बल्कि अनिवार्य और अपरिहार्य है।
- अभ्यास करने में उपर्युक्त बात समझने के बाद अगला कदम है कि पाठ या प्रश्नावली की पुनरावृत्ति करते समय बदलाव लाएं।जैसे किसी प्रश्नावली या गणित की पुस्तक के सवालों को हल कर लिया।पुनरावृत्ति करते समय उसके नोट्स बनाएं।इसके बाद पुनरावृत्ति करनी हो तो मॉडल पेपर्स को हल करें।मॉक टेस्ट दें।साप्ताहिक,पाक्षिक,मासिक,अर्धवार्षिक,प्री बोर्ड,रैंकिंग टेस्ट दें।इनकी तैयारी करने के लिए आपकी रुचि बनी रहेगी और आप बार-बार पुनरावृत्ति करेंगे तो बोरियत महसूस नहीं करेंगे।
- तीसरी बात यह है कि एक ही विषय लंबे समय तक न पढ़े।जैसे प्रतिदिन पाँच-छह घण्टों तक गणित का ही अध्ययन करना और अन्य विषय को न पढ़ना।2 घंटे किसी विषय को पढ़ लिया इसके बाद एक घंटा दूसरे विषय पढ़ लिया फिर 2 घंटे किसी अन्य विषय को पढ़ें।इस तरह बार-बार विषय बदलते रहने से बोरियत नहीं होगी।
- चौथी बात यह है कि अपने कोर्स की पुस्तक पढ़ने के अलावा कुछ समय अपने हाॅबी से संबंधित पुस्तकें पढ़े या अपनी हाॅबी का कार्य करें जैसे कोई खेल-कूद या योग-साधना,प्राणायाम आदि करना।योग-साधना और प्राणायाम में रुचि है तो इससे न केवल स्मरणशक्ति बढ़ती है बल्कि अध्ययन में भी आपकी रुचि बनी रहती है।
- पांचवी बात यह है कि अध्ययन करने,सवाल हल करते समय मन इधर-उधर भटक रहा हो तो मन को बार-बार खींचकर अध्ययन करने या सवाल हल करने पर फोकस करें।धैर्यपूर्वक मन को बार-बार अध्ययन पर केंद्रित करने का प्रयत्न करें।
- कई बार जटिल सवाल हल न होने के कारण भी मन उचट जाता है।अतः जटिल सवालों को पहले स्वयं हल करने का भरसक प्रयास करें।उदाहरणों की सहायता से हल करने का प्रयास करें या मित्रों या शिक्षकों की सहायता से हल करें।इस प्रकार बार-बार अभ्यास करने से अध्ययन पर मन केंद्रित हो जाएगा।यानी अध्ययन को प्रतिदिन लगातार,सतत जारी रखना होगा।आज एक घंटा पढ़ लिया,कल नहीं पढ़ा,तीसरे दिन चार घंटे पढ़ लिया,अगले 2 दिन अध्ययन नहीं किया अथवा मन ऊब गया,फिर छोड़ दिया,धैर्य नहीं रहा और अध्ययन के प्रति समर्पण,श्रद्धा नहीं रही तो अभ्यास छूट जाएगा और मन मनमानी करने लगेगा।
- अच्छे मित्रों,अच्छे लोगों के साथ सत्संग करें जो आपको अध्ययन के लिए प्रोत्साहित करते हों,अध्ययन में सहयोग करते हों।अध्ययन को बोझ समझ न करें बल्कि दिल से अध्ययन करें।अपनी वृत्तियों को बहिर्मुखी से अंतर्मुखी करें।संसार के विभिन्न कार्यों में लगी हुई वृत्तियों को अंतर्मुखी करने से मन नियंत्रित होता है और अध्ययन पर ध्यान फोकस होता है।सदैव अपने लक्ष्य अर्थात् अध्ययन कार्य से संबंधित कार्यों में अपने आपको व्यस्त रखें।
3.बुरे कार्यों से विरक्ति रखें (Keep Aversion to Evil Actions):
- अक्सर जब हमारा ध्यान केवल परीक्षा को उत्तीर्ण करना,सफलता अर्जित करने पर होता है,चाहे वह सफलता कैसे भी मिले तो मन बुरे कार्यों को करने में हिचकता नहीं है।बुरे लोगों,बुरे विद्यार्थियों के संग से भी बुरे कार्यों को करने में झिझक नहीं होती है,क्योंकि बुरे कार्य अन्य व्यक्ति करता है तो मन को यह संतुष्टि रहती है कि अन्य लोग भी यह कार्य कर रहे हैं।
- उदाहरणार्थ नकल करना,परीक्षा प्रश्न पत्र पूर्व में प्राप्त करने की जुगत भिड़ाना,परीक्षक को डरा-धमकाकर सामूहिक नकल करना,बोर्ड अंक तालिका में घूस देकर अंक बढ़वाना,लड़ाई-झगड़ा करना,नशे और मादक द्रव्यों का सेवन करना,लड़कियों से छेड़छाड़ करना,संगी-साथियों से सेक्स संबंधी बातों को करने में रुचि लेना आदि अनेक ऐसे कार्य हैं जिनको छात्र-छात्राएं अपने संगी-साथियों,फिल्मों,टीवी या इंटरनेट के माध्यम से सीखता है और करता है।
- मन जब बुरे कार्यों की ओर लग जाता है तो फिर अभ्यास नहीं सधता है।अभ्यास तभी सधता है जबकि मन में बुरे कार्यों से विरक्ति का भाव पैदा हो।अभ्यास और वैराग्य एक दूसरे के पूरक हैं,एक दूसरे के सहयोगी हैं।अभ्यास से वैराग्य बढ़ता है और वैराग्य से अभ्यास की वृद्धि होती है।
- आप उस समय की कल्पना करें जब कठिन परिश्रम,अभ्यास और उचित तरीके से सफलता प्राप्त करते हैं तो सभी आपकी प्रशंसा करते हैं।अन्य माता-पिता,छात्र-छात्राएं आपका उदाहरण देते हैं और यह सुनकर आप उत्साहित होते हैं।दूसरी और बुरे कार्य करके,बुरे कार्यों में लिप्त रहकर जैसे शराब,मादक पदार्थों का सेवन करना,सेक्स में रुचि लेना,लड़कियों को छेड़ना इत्यादि करके तथा परीक्षा में नकल करके आप उत्तीर्ण होते हैं,तो अन्य लोग व छात्र-छात्राएं आपकी निंदा करते हैं।अपने बच्चों को वैसा न करने की सलाह देते हैं।सब और आपकी भर्त्सना होती है और आप यह सब सुनकर हतोत्साहित होते हैं।
- अतः मन को अच्छे कार्यों में लगाएं और बुरे कार्यों से विरक्ति रखें।इससे आपका मन प्रफुल्लित रहेगा,अध्ययन तथा अध्ययन से संबंधित कार्य करने में उत्साहित रहेगा।वैराग्य भाव जाग्रत करने के लिए महापुरुषों,महान गणितज्ञों के जीवन चरित्र का
- अध्ययन,मनन व चिंतन करें।बुरे कार्यों,बुरे संग के परिणामों को जानकर उनसे विरक्ति भाव पैदा करें।हमेशा सत्साहित्य का अध्ययन करें।स्वाध्याय करें।अपने दोष-दुर्गुणों को पहचानकर उनको दूर करने की पूरी चेष्टा करें।अपने शयन तथा अध्ययन कक्ष में महापुरुषों व देवी-देवताओं के चित्र रखें और उनके चरित्रों का स्मरण-मनन करें।
4.अभ्यास और वैराग्य का निष्कर्ष (Conclusion of Practice and Detachment):
- मन को वश में किए बिना योग नहीं सधता है।योग साधना तो बहुत दूर की बात है छात्र-छात्राएं अध्ययन कार्य ही नहीं कर पाते हैं।अध्ययन में मिली असफलता के लिए माता-पिता द्वारा ट्यूशन या कोचिंग की व्यवस्था न करना,शिक्षकों द्वारा ठीक से न पढ़ाना,प्रश्न पत्र कठिन आना आदि कारणों को जिम्मेदार ठहराते हैं और स्वयं को निर्दोष समझते हैं।
- मन को साधने के लिए दुनिया भर में योग की बहुत चर्चा है,यहां तक कि भारत के प्रयासों से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है।चूँकि भारत देश के ऋषियों ने योग की क्रियाओं पर अनेक सूत्र तथा ग्रंथ रचे हैं,इसलिए दूसरे देश भारत को योगियों का देश समझते हैं।परंतु यह स्थिति प्राचीनकाल की है।
- आजकल इस योग का फायदा उठाने,योग को मात्र व्यवसाय बनाने के कारण भारत में अनेक गुरु तथा बाबा लोग पैदा हो गए हैं जो छात्र-छात्राओं और लोगों को योग का पाठ पढ़ाने का दावा करते हैं।ये लोग योग के नाम पर छात्र-छात्राओं और लोगों को भ्रमित करते हैं।कोई ध्यान योग सीखता है,कोई उछल-कूद में योग सीखता है और कोई भोग में योग सीखाता है।इनके चक्कर में पड़कर छात्र-छात्राएं समझने लगते हैं की मन को साधना आसान बात है।बस 10-15 मिनट शिथिल होकर ध्यान लगाओ,तो बेड़ा पार है।शरीर को शिथिल करके पड़ जाने से कुछ लाभ जरूर होता है पर जब तक मन की चंचलता दूर नहीं,चित्त एकाग्र नहीं तब तक योग की साधना नहीं हो सकती है।
- लेकिन छात्र-छात्राओं को इसका अर्थ यह नहीं लगा लेना चाहिए की मन को साधना,मन को एकाग्र करना असंभव है।यदि असंभव होता तो महर्षि पतंजलि अभ्यास का महत्त्व क्यों बताते,योगीराज श्रीकृष्ण अर्जुन को मन की चंचलता दूर करने के लिए अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मन को वश में करना कैसे बता पाते? छात्र-छात्राएं चाहें तो मन को वश में तो किया जा सकता है ही साथ ही एकाग्र मन से अध्ययन के लाभ भी प्राप्त किए जा सकते हैं।परंतु धैर्यपूर्वक,पूर्ण निष्ठा,श्रद्धा के साथ बार-बार अभ्यास और वैराग्य से मन को साधे।मन को एकाग्र करने के अन्य उपाय भी हैं जिनके बारे में एक अलग से लेख वेबसाइट पर पोस्ट किया हुआ है।अभ्यास और वैराग्य के साथ उन साधनों पर भी अमल किया जा सकता है।
- यदि हमारी नीयत सही हो तो मन को काबू में किया जा सकता है परंतु यदि बहानेबाजी करें कि क्या करें अच्छे योगियों और ऋषियों,संतों से मार्गदर्शन प्राप्त कर लिया और आजमा कर देख लिया परंतु मन वश में नहीं हो सका।यानी नीयत में खोट हो तो अच्छा काम भी अच्छा नहीं कहा जा सकता है।सच्ची नीयत से मन को नियंत्रित करने का अभ्यास करें और निरंतर करते रहें।फिर देख लें कि मन काबू में होता है या नहीं और मन को काबू में करने के कितने फायदे हैं।
5.मन की एकाग्रता का दृष्टांत (Example of Concentration of Mind):
- एक विद्यार्थी भगवान का उपासक था।उसका मन अध्ययन में नहीं लगता था।अतः एकान्त में बैठकर भगवान का ध्यान करता और यह कामना करता कि मन एकाग्र हो जाए।एक दिन एक सन्त उधर से गुजरे और विद्यार्थी से पूछा कि वह क्या कर रहा है? विद्यार्थी ने बताया कि वह मन को एकाग्र करने का अभ्यास कर रहा है और ऐसा करते हुए बहुत समय हो गया परंतु क्या करूं मन एकाग्र ही नहीं हो पा रहा है।
- संत ने पूछा कि वह अध्ययन भी करता है या नहीं।विद्यार्थी ने उत्तर दिया कि जब मन एकाग्र होगा तभी तो अध्ययन प्रारंभ करूंगा।संत ने कहा कि भगवान का ध्यान करना,मन को आज्ञा चक्र पर केंद्रित करना तो ठीक है परंतु अध्ययन नहीं करोगे,उद्यम नहीं करोगे,मन को अध्ययन पर एकाग्र करने का अभ्यास नहीं करोगे तब तक मन एकाग्र कैसे होगा।
एक जगह स्थिर रहकर कितनी देर बैठे रह सकते हो। - अतः रोजाना जो भी कार्य करो उसको तल्लीन होकर,रुचि व लगन के साथ करो।धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करते रहने से मन को साधना सरल हो जाएगा।अपने कर्त्तव्यों से मुक्त होने पर मन की साधना बहुत कठिन हैं।अतः अपने प्रत्येक काम को,प्रत्येक कर्त्तव्य को पूरी निष्ठा के साथ करते रहो,एक दिन मन एकाग्र हो जाएगा,तब तक करते रहो,सतत उद्योग करते रहो।मन एकाग्र हो जाएगा तब अध्ययन तथा कर्त्तव्यों को शुरू करोगे तो मन एकाग्र नहीं हो पाएगा।
- भगवान का कर्म विधान पर यह सिद्धांत लागू होता है।भगवान किसी भी कार्य का फल तभी देते है जब हमारे हर कार्य में समर्पण का भाव हो।हर कार्य को पूरी ईमानदारी से करें।कर्त्तव्य कर्मों को छोड़ बैठने से एकाग्रता नहीं सधती है।
भगवान ही सब कुछ कर देंगे,भगवान का ध्यान करने से ही सब कुछ हो जाएगा तो यह प्रवृत्ति पलायनवादी है,अपने कर्त्तव्यों को छोड़ना मतिभ्रम है। - युवक के संत की बात समझ में आ गई।उसने मन को एकाग्र करने के लिए भगवान का ध्यान करने के साथ-साथ अपने कर्त्तव्य अध्ययन को करना प्रारंभ कर दिया और शीघ्र ही उसका परिणाम दिखाई देने लगा।उसे अध्ययन में ही भगवान नजर आने लगे।उसने अध्ययन को ही पूजा-आराधना समझकर प्रारंभ कर दिया।
- उपर्युक्त आर्टिकल में अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment),अध्ययन हेतु अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Study to Control Mind with Practice and Renouncing Worldly Pleasures) के बारे में बताया गया है।
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6.गुण मिले बिना मित्रता नहीं (हास्य-व्यंग्य) (There is No Friendship without Virtue) (Humour-Satire):
- गणित का छात्र (गर्लफ्रेंड से):तुम्हें फ्रेंड बनाने से पहले मैं बहुत आवारागर्दी करता था,बिल्कुल नहीं पढ़ता था,क्या तुम भी ऐसा ही करती थी।
- गर्लफ्रेंड ने जवाब दिया:अब बिना गुण मिले मित्रता थोड़े ही होती है।
7.अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 रणनीतियाँ (Frequently Asked Questions Related to 5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment),अध्ययन हेतु अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Study to Control Mind with Practice and Renouncing Worldly Pleasures) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न:1.वश में हुए मन के क्या लक्षण हैं? (What Are the Characteristics of a Subdued Mind?):
उत्तर:वश में हुए मन की चंचलता दूर हो जाती है,मन इधर-उधर नहीं भटकता है।मन इंद्रियों और बुद्धि को क्षुब्ध नहीं करता है।मन को अपने लक्ष्य साधने के लिए लगाने में कठिनाई नहीं होती है अर्थात् मन किसी कार्य को करने में न तो हठ करता है और जिस कार्य में लगाते हैं उसमें सरलता से लग जाता है।मन सीधा,सरल और आज्ञाकारी हो जाता है।जहां जिस कार्य में,जितनी देर लगाएं वहां लगा रहने में आनाकानी नहीं करता है,न इंद्रियों को भोगों में फँसाता है और न अपनी इच्छा से हटता है और न अध्ययन वगैरह करने से ऊबता है और ना उपद्रव ही मचाता है।बड़ी शांति के साथ हर कार्य को तल्लीन होकर करने में लग जाता है।
प्रश्न:2.भोगों में अनासक्ति क्यों आवश्यक है? (Why is Detachment Necessary in Epicureanism?):
उत्तर:भोगों में आसक्ति होने से मन भोगों को भोगने में अति करने लगता है।अतः शरीर के निर्वाह मात्र के लिए भोगों का भोग करने के लिए अनासक्ति आवश्यक है जिससे किसी भी मामले में,किसी भी दशा में,किसी भी दिशा में अति ना कर सके।
प्रश्न:3.मन के विचलित होने के क्या कारण है? (What Are the Causes of Distractions of the Mind?):
उत्तर:मन की चंचलता (किसी एक विषय पर लगातार न ठहरना) विषयों एवं भोगों में आसक्ति,कामनाओं की पूर्ति में लगे रहना (कामनाएं अनंत है और सभी पूरी नहीं हो सकती),शारीरिक पीड़ा या बीमारी,बेहोशी,किसी के प्रति राग-द्वेष आदि बहुत से कारण हो सकते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 रणनीतियाँ (5 Strategies to Control Mind with Practice and Detachment),अध्ययन हेतु अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करने की 5 टॉप टिप्स (5 Top Tips for Study to Control Mind with Practice and Renouncing Worldly Pleasures) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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