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5 Mantras to Control Yourself

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1.स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Mantras to Control Yourself),छात्र-छात्राओं के लिए स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Spells for Students to Control Yourself):

  • स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Mantras to Control Yourself) के आधार पर आप जान सकेंगे कि स्वयं को काबू में रखने से क्या तात्पर्य है स्वयं को काबू में कैसे रखें? अपने आपको वश में रखने का तात्पर्य है कि अपनी भावनाओं,संवेगों,मन की वृत्तियों और हवाई कल्पनाओं पर नियंत्रण करना।इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें भावनाशील,संवेदनशील नहीं होना चाहिए,कल्पनाशील नहीं होना चाहिए।अति भावुक,अति संवेदनशील,कोरी व अयथार्थ कल्पनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।यानी आप में भावनात्मक व संवेदनशील परिपक्वता होनी चाहिए।
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2.अपने को काबू में रखने वाला ही शक्तिशाली (The powerful one who controls himself):

  • चरित्रवान वह है,जिसे यह मालूम है कि वह क्या चाहता है तथा जो मन के कहने में आकर भावनाओं में नहीं बह जाता,बल्कि वह हर परिस्थिति में निश्चित सिद्धांतों के अनुरूप ही व्यवहार करता है।
  • जिस समय आप पर कोई संकट आ पड़े,जब प्रत्येक वस्तु और प्रत्येक व्यक्ति आपको अपने विरुद्ध जाता दिखाई दे रहा हो,वही समय आपके चरित्र और आत्मशक्ति की परीक्षा का समय है।उस समय यदि आपका अपने मन पर पूरा नियंत्रण है और इच्छा शक्ति दृढ़ है,फौलाद जैसी दृढ़ता है,सामर्थ्य है तो संकट पड़ने पर वह स्वतः प्रकट होकर रहेगी और सभी संकटों व चिन्ताओं का चुटकियों में निवारण कर देगी।
  • यहां यह बात विशेषतौर पर उल्लेखनीय है कि शक्तिशाली मनुष्य वह नहीं जो शक्ति का प्रदर्शन करें,बल्कि शक्तिशाली वह है जो अपनी परिस्थितियों के कारण अपनी योग्यता,कार्य करने की शक्ति तथा सफलता की क्षमता को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट करके दिखा सके।शक्तिशाली वह है जो ऐसे कठिन समय में भी अपने चरित्र की कसौटी पर खरा उतरे।
  • जब आप प्रातः सोकर उठें और आपको ऐसा अनुभव हो कि आज कुछ अप्रिय घटने वाला है तो उस समय आप कमर कसकर दृढ़निश्चय करें कि चाहे कुछ भी हो,आप आज के दिन को आनंद और उल्लास का दिन बनाकर रहेंगे,तो कोई भी विघ्न बाधा आपको विचलित नहीं कर सकेगी…. कोई भी आपके दृढ़निश्चय को डगमगा नहीं पायेगा।इसका परिणाम यह होगा कि आनेवाली असफलता और संकट आपके पास नहीं आएंगे।आपका वह दिन बेकार नष्ट नहीं होगा।अब आप स्वयं देखेंगे कि इन निराशावादी विचारों के कारण निराशा में फंसकर आप जितना काम कर पाते,उससे दो-गुना काम अवश्य कर पाए हैं।
  • मनुष्य स्वभाव की क्या कहें,वह तो शुरू से ही आलसी प्राणी रहा है।इतना ही नहीं,वह न केवल बहुत जल्दी घबरा जाता है बल्कि समय पड़ने पर किसी हारे हुए सिपाही की तरह बहुत जल्दी हथियार भी डाल देता है।जब चारों ओर से उसको कठिनाईयां घेर लेती हैं तो स्वाभाविक रूप से उसके मन में यह विचार उठता है कि वह सब कुछ छोड़-छाड़कर कहीं दूर भाग जाए।उसका कोई नहीं है ना किसी से नाता न रिश्ता।वास्तव में यह उसके मन की दुर्बलता है।यह पलायणवादी मनोवृत्ति है।
  • निराशा रूपी एक दैत्य आपकी प्रसन्नता को नष्ट करने के लिए आपके पास आया है,आप उसे मारे बिना या उससे संघर्ष किए बिना भाग जाएं,यह मर्दानगी नहीं है।कठिनाईयों से हारकर न अपने काम को स्थगित करने के संबंध में सोचिए और न छोड़ने के लिए विघ्न-बाधाओं पर अपना ध्यान अधिक केंद्रित कीजिए।इन्हें मन से दूर निकाल फेंकिए।इसके विपरीत अपने प्रयत्न,परिश्रम,कार्यकुशलता और कार्य के वेग को बढ़ाइए।इस प्रकार आप विघ्न और निराशा रूपी दैत्य  को चोटी से पकड़कर जमीन पर पटक सकेंगे,उसे परास्त कर सकेंगे।इतिहास व वेद-पुराण इस बात के साक्षी हैं कि मनुष्य की संकल्प शक्ति के आगे देव और दानव सभी पराजय स्वीकार कर लेते हैं।

3.निराशावादी विचारों को पास न फटकने दें (Do not let pessimistic thoughts get you close):

  • यदि आप सफलता प्राप्त करने के लिए अपनी भावनाओं और इच्छाशक्ति को प्रबल बनाना चाहते हैं तो क्रोध,चिड़चिड़ापन,ईर्ष्या,निराशा,मानसिक खिन्नता और चिंता को अपने पास न फटकने दें।
  • 35 से 50% लोग इसलिए रोगी हो जाते हैं क्योंकि वे प्रसन्न नहीं रहते।यदि वे दिन में कुछ क्षणों के लिए अपनी बीमारी,चिन्ताएँ आदि सब भूलकर केवल हर्षपूर्ण विचारों में खो जाएं और फिर देखें कि वह कितनी जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं।
  • दृढ़निश्चय के साथ अपने मन से उक्त नकारात्मक भावों को बाहर निकाल दीजिए और अपनी इच्छाशक्ति को प्रबल बनाकर हीन भावनाओं पर विजय प्राप्त करने का पूर्ण प्रयत्न कीजिए।
  • मन की शक्तियों को नष्ट करने वाले ये नकारात्मक भाव दैत्य के समान हैं।ये केवल आपके मन को विक्षुब्ध ही नहीं करते,वरन शरीर में विषयुक्त रसायनों का उत्पादन करके उसे विषाक्त भी बनाते हैं।अंगों की कोशिकाएं शक्तिहीन होती हैं।संतुलित रक्त-संचार में बाधा पड़ती है।शरीर के अनेक अंगों में घातक विष पैदा होने लगता है।नस-नाड़ियों में तनाव उत्पन्न होकर उनमें टूटन पैदा होती है।ये दैत्यरूपी नकारात्मक विचार आपकी मनःस्थिति को इतना दूषित कर देते हैं कि दृढ़ इच्छाशक्ति और उत्साहपूर्ण संकल्प के लिए भी टिकना कठिन हो जाता है।आपकी आशाएं और आकांक्षाएं नष्ट हो जाती हैं और ऊंचे उद्देश्य धुँधले पड़ जाते हैं तथा मन का उल्लास सर्वथा मन्द हो जाता है।
  • आपको दृढ़ निश्चय कर लेना चाहिए कि आप क्रोध,चिड़चिड़ापन,ईर्ष्या,निराशा,खिन्नता और चिंता को अपना भयंकर शत्रु समझकर अपने जीवन से बाहर निकाल देंगे।जो व्यक्ति इस प्रकार इन पर विजय प्राप्त कर सकता है,अपनी इच्छाशक्ति को इतना दृढ़ बना सकता है,वह अपने सामान्य कार्य सहज में ही संपन्न कर लेता है।
  • यदि आप उदास रहते हैं,यदि आपके मन में किसी प्रकार की सनक है,यदि आपको चिन्ताओं ने घेर रखा है,यदि आप अपनी शक्तियों को व्यर्थ में नष्ट करते हैं अथवा यदि आप में अन्य कोई कमजोरी और दुर्बलता है,जिससे आपके विकास में बाधा पड़ती है तो अपनी इस मनःस्थिति पर केवल असंतोष और अफसोस करके ही न रह जाइए,बल्कि जल्दी परिवर्तन के लिए कठिन-से-कठिन परिश्रम कीजिए।केवल चिंता करते रहने से आप अपनी दुर्बल भावनाओं को ही अधिक दृढ़ करते हैं।इसके विपरीत यदि आप अपने विचारों को अपनी इच्छित दिशा की ओर मोड़ने का प्रयत्न करें तो आपकी मनोदशा में आवश्यक परिवर्तन हो सकता है।
  • जब भी बुरे या उत्साह को तोड़ने वाले विचार आपके मन पर आक्रमण करें,आपको चाहिए कि आप प्रसन्नता देने वाली किसी घटना का स्मरण करें,किसी ऐसी कलाकृति को देखें,जिसे देखकर आपको प्रसन्नता प्राप्त हो,पार्क अथवा उद्यान में चले जाएं अथवा किसी ऐसी पुस्तक का अध्ययन करना प्रारंभ करें,जिससे आपका मनोबल ऊंचा उठे,जिसमें हास्य या व्यंग्य हो अथवा जो आपके कार्य में सहायता पहुंचाने वाली हो।
  • यदि आप समय रहते इस प्रकार के उपाय आरंभ कर देंगे तो देखते-ही-देखते निराशापूर्ण घटनाएं छिन्न-भिन्न हो जाएंगी और हर्षोल्लास का प्रभाव मुस्कुराता नजर आयेगा।
  • किसी भी कारण से यदि आपका मन खिन्न हो जाए तो प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए खूब हंसिए और मुस्कुराइए।जोर-जोर से खिलखिलाकर हंसने का प्रयत्न कीजिए।हंसी-खुशी की बातें कीजिए।ऐसे लोगों से संपर्क साधिए जो न केवल स्वयं प्रसन्नचित रहते हों बल्कि ऐसी बातें करें जो दूसरों को भी प्रसन्नता प्रदान करें।आपके मन में यह दृढ़विश्वास होना चाहिए कि जब घनघोर घटा छायी होती है,घने बादल सूर्य के प्रकाश को ढक लेते हैं,तब भी सूर्य अपने प्रचण्ड तेज से चमकता ही रहता है।उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता,न ही वह अपना तेज खोता है।

4.अपने आपको प्रफुल्लित रखिए (Keep yourself cheerful):

  • आलस्य का एकमात्र इलाज काम करना है-निरंतर काम करना।स्वार्थ-भावना का इलाज है-त्याग।अविश्वास का इलाज है-दृढ़ विश्वास।कायरता का इलाज-जोखिम भरे काम का बीड़ा उठाना और तन-मन-धन से उसमें जुट जाना।
  • हम बुरी भावनाओं का प्रतिरोध मन में अच्छी भावनाएं जगाकर ही कर सकते हैं।यदि आपके मन या मस्तिष्क में अच्छी भावनाएं भर जाएंगी तो बुरी भावनाओं को वहाँ घुसने का स्थान ही नहीं मिलेगा? परंतु इसके लिए दृढ़-इच्छाशक्ति का होना बहुत आवश्यक है।दुर्गुणों को दूर करने का एकमात्र उपाय है-सद्गुणों का स्मरण करना।इन बातों का आप तब तक अभ्यास करते रहिए जब तक ये आपके स्वभाव का अंग न बन जाएं।
  • आपकी कल्पना शक्ति किसी अप्रिय विचार को हटाकर उसके स्थान पर कोई सुंदर विचार स्थापित करने में सहायक हो सकती है।आपके मन में जब भी कोई निकृष्ट विचार उत्पन्न हो,अपने मन से इस प्रकार वार्तालाप कीजिए कि जो हीनभाव तुममें पैदा हो गया है वह सत्य नहीं बल्कि झूठा है।मैं इससे बहुत ऊंचा और शिष्ट हूं।परमात्मा ने मेरा निर्माण इस प्रकार के दुष्ट विचारों से ग्रस्त होकर अपने जीवन को दूषित करने के लिए नहीं किया,बल्कि स्वस्थ विचारों को मन में धारण करके हर जटिलता पर काबू पाने के लिए किया है।
  • इस प्रकार के वार्तालाप के साथ किसी अच्छी घटना का स्मरण कीजिए।किसी प्रसन्नतादायक अनुभव की याद कीजिए और उन सुखद स्मृतियों को अपने मन में तब तक बनाए रखिए जब तक वह अवांछित विचार मन से हमेशा के लिए नहीं निकल जाए।असफलता के विचारों को दूर करने के लिए किसी पिछली कमजोरी को याद न कीजिए।यह मत सोचिए कि गत दिनों मेरे साथ ऐसी दुःखद व मनोबल को कमजोर कर देने वाली घटना घटी।
  • प्रसन्नता देने वाले विचारों का ही बार-बार मनन और चिंतन कीजिए।अपने मन में यह विश्वास सदा दृढ़ रखिए कि आपका भविष्य बहुत आशापूर्णा,उज्ज्वल और सफल है।अपने चारों ओर से प्रसन्नताप्रद विचारों को आकर्षित करने का प्रयत्न कीजिए।ऐसा प्रयत्न कीजिए कि आपके पास ऐसे व्यक्तियों का आवागमन आरंभ हो जिसके मुखमंडल पर सदा प्रसन्नता छायी रहती है।सदा यह प्रयत्न कीजिए कि आप अपने चारों ओर प्रसन्नता देने वाली वस्तुएं इकट्ठी करें।इसका परिणाम यह होगा कि जो बुरे विचार आपको संतप्त और चिंतातुर करते रहते थे,वे लुप्त होते जा रहे हैं।नकारात्मक विचार सकारात्मक विचारों के उज्जवल प्रकाश में कभी नहीं टिक पाएंगे।जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश होते ही अंधकार स्वतः नष्ट हो जाता है,उसी प्रकार हर्षोल्लास,उत्साह और संतुलित भावनाओं के सम्मुख निराशा,हतोत्साह,आलस्य और पराजय की भावनाएं नहीं ठहर पाएंगी।
  • सदा कष्टों की उपेक्षा कीजिए,उनका मजाक उड़ाइये।जब हम उनकी उपेक्षा कर देते हैं,अपने आपको उनसे पृथक कर लेते हैं,उन्हें भुला देते हैं,उनके स्थान पर अधिक महत्त्वपूर्ण कार्य और वस्तुओं में अपना मन लगा देते हैं,तब वे विचार हमारे लिए दुःखदायी नहीं रहते।जब हम उन्हें सदैव तुच्छ मानने लगते हैं,तब वे धीरे-धीरे क्षीण होकर अदृश्य हो जाते हैं।
  • इस प्रकार जब हम अपनी मनोदशा के स्वयं स्वामी नहीं बनते और अपनी मनोवृत्तियां अपने वश में नहीं करते,तब तक हम सर्वोत्तम कार्य नहीं कर सकते।जो व्यक्ति अपने मन के विचारों का गुलाम है,जो अपनी इच्छाओं को नहीं बदल सकता,उसे हम स्वतंत्र कैसे कह सकते हैं? स्वतंत्र मनुष्य वही होता है,जिसका अपने मन पर पूर्ण अधिकार और शासन होता है।जो अपने मन का गुलाम नहीं हो बल्कि मन को अपना गुलाम बनाये।जिस प्रकार एक बलिष्ठ व्यक्ति से उसके शत्रु सदा डरते रहते हैं,उसी प्रकार आप भी अपने मन को वश में करके इन मानसिक शक्तियों को परास्त कर दीजिए और उन्हें सदैव भयभीत रखिए।

5.आत्म नियंत्रण रखें (Have self-control):

  • जो मनुष्य प्रातः काल उठकर मूड की बात सोचता है,वह चाहे कितना ही कुशल कार्यकर्ता क्यों ना हो,वह बहुत अधिक अच्छा व सराहनीय कार्य कभी नहीं कर सकेगा,क्योंकि वह तो मूड का गुलाम है।जो प्रातः काल उठते ही सर्दी या गर्मी को नापने लगता है और देखने लगता है कि पारा चढ़ रहा है या उतर रहा है,वह भी गुलाम ही है।वह कभी सफलता और प्रसन्नता प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकता।इसके विपरीत जो व्यक्ति प्रातः काल उठते ही दृढ़-इच्छाशक्ति को प्रबल बनाता है,अपने विश्वास को दृढ़ रखता है,अपने उद्देश्य के प्रति एकाग्र रहता है,वह अपनी सर्वोत्तम शक्तियां,योग्यताएं और क्षमताएं उस कार्य में लगा देता है।वह ना मूड की चिंता करता है,ना परिस्थितियों को देखता है,बस एकटक अपने ध्येय के प्रति परिश्रम और काम करता रहता है।उसे तुच्छ और हीन विचार कभी नहीं घेर पाएंगे।उसकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता।
  • जिसे किसी प्रकार का कोई भय नहीं,जिसे किसी प्रकार की चिंता नहीं,केवल वही सर्वोत्तम और स्वतंत्र कार्य करता है।इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि इस प्रकार का उच्च आत्म-नियंत्रण,इस प्रकार की आत्मा की शांति,किसी शक्तिशाली व्यक्ति में ही पायी जाती है और ऐसा व्यक्ति लाखों में कोई एक ही होता है,जो हर समय अपनी चित्तवृत्तियों को अपने वश में किये रहता है,परंतु इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार का आत्म-नियंत्रण और आत्मसंयम प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति किसी भी महान कार्य को कभी पूरा नहीं कर सकता।सत्य बात तो यह है कि जो व्यक्ति आत्मा के बल को नियंत्रण में रखेगा वह जीवन में सफलता प्राप्त कर सकता है।
  • जिस व्यक्ति ने अपनी चित्तवृत्तियों को वश में कर लिया है,वही सुसंस्कृत है।महान् उपलब्धियों,अपूर्व सफलताओं और उच्च पद की प्राप्ति के लिए मन की इच्छाओं को वश में करना पहली शर्त है।सफलता इसी प्रकार प्राप्त की जा सकती है।इसमें संदेह नहीं कि इस प्रकार का आत्म-नियंत्रण प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है,परंतु सभी उपलब्ध प्रयत्न करने से इस प्रकार की शक्तियों को एक दिशा की ओर लगाया जा सकता है,उन्हें किसी अच्छे काम के प्रति नियोजित किया जा सकता है।
  • जब मनुष्य अपने मानसिक विचारों को वश में कर लेता है,तब वह उन व्यक्तियों से ईर्ष्या करना छोड़ देता है,जिनके महान कार्यों को देखकर वह पहले कभी चकित हो जाया करता था।क्योंकि तब तक उसमें भी उन सब महान और जटिल कार्यों को करने की शक्ति उत्पन्न हो जाती है अर्थात् उसमें स्वयं शक्तियों का इतना अपूर्व भंडार जमा हो जाता है कि वह शांत होकर आत्म-विश्वास से भरपूर रहता हुआ निरंतर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है।उस समय उसकी चाल में एक विशेष प्रकार का मोहक तारतम्य पैदा हो जाता है,एक विशिष्ट प्रकार की तेजस्विता उत्पन्न होकर उसके मुखमंडल को आलोकित करती है और उसे गौरव प्रदान करती है।
  • जो व्यक्ति सही ढंग से विचार करते हैं,जिन्हें कर्त्तव्य तथा अकर्त्तव्य की विवेक-बुद्धि प्राप्त हो चुकी है,जिन्होंने अपनी मन की इच्छाओं को संयत करके अपने वश में कर लिया है,दूसरे लोग भी उनके सहायक हो जाते हैं।परिस्थितियाँ भी उनके अनुकूल हो जाती हैं।ऐसे व्यक्तियों के लिए असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।दृढ़ इच्छाशक्ति वाले बनकर निसंदेह हम भी ऐसे ही बन सकते हैं।विपत्तियों में अपने मन को सुधार कर उनका मुकाबला करने की शक्ति पैदा करना एक उत्तम गुण है।जब आप जानते हैं कि आपको क्या करना चाहिए तो आपका कर्त्तव्य हो जाता है कि उसे कठिन समझते हुए भी आप अवश्य करें।
  • कहने का तात्पर्य यह है कि यदि अपने को काबू में करके दृढ़ इच्छाशक्ति से हम छोटी-मोटी बातों को निवृत्त करके कार्य करने की वृत्ति बना लें,तो हम दुनिया के सफल व महान व्यक्ति बन सकते हैं।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Mantras to Control Yourself),छात्र-छात्राओं के लिए स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Spells for Students to Control Yourself) के बारे में बताया गया है।

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6.छात्र मैडम से टकराया (हास्य-व्यंग्य) (Student Bumps into Madam) (Humour-Satire):

  • एक छात्र गणित शिक्षिका से छात्र टकरा गया।
  • गणित शिक्षिका:अन्धा है क्या,दिखाई नहीं देता?
  • छात्र:मैडम,आप गणित को पढ़ाते ही इस तरीके से हैं कि कक्षा में आते ही चक्कर आने लगते हैं,सिर घूमने लगता है।मैं अपने आपको संभालता भी कैसे?

7.स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 5 Mantras to Control Yourself),छात्र-छात्राओं के लिए स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Spells for Students to Control Yourself) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.परिस्थितियाँ अनुकूल कैसे हो सकती हैं? (How can the conditions be favorable?):

उत्तर:जो व्यक्ति सही ढंग से विचार करते हैं,जिन्हें कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य का बोध हो चुका है,जिन्होंने अपने मन की वृत्तियों को संयत करके अपने वश में कर लिया है,दूसरे लोग उसके सहायक हो जाते हैं तथा परिस्थितियां भी उनके अनुकूल हो जाती है।

प्रश्न:2.कल्पना शक्ति को सही दिशा कैसे दी जा सकती है? (How can the power of imagination be given the right direction?):

उत्तर:कल्पनाओं को,कल्पना शक्ति को सही दिशा बुद्धि के द्वारा दी जा सकती है।यदि बुद्धि और कल्पनाशक्ति में तालमेल नहीं होता तो हम अनर्गल,बेतुकी,बेसिकपैर की कल्पनाएं करने लगते हैं।फलतः असफलता हाथ लगती है।परंतु बुद्धि और कल्पनाशक्ति में उचित और सही तालमेल होता है तो सफलता का मार्ग तय हो जाता हैं।बुद्धिपूर्वक कल्पना करने से हम हवाई कल्पनाएं करने से बचे रहते हैं।हमारी क्षमताओं,योग्यताओं के अनुसार कल्पना करते हैं।

प्रश्न:3.अपने आपको जीवंत कैसे अनुभव करें? (How do you feel alive?):

उत्तर:अपने आप पर काबू रखकर आत्म-नियंत्रण और बुद्धिपूर्वक कार्य करने से जीवन्त अनुभव कर सकते हैं।अति-उत्साह,अत्यधिक जोश में आकर,अत्यधिक प्रसन्नता की हालत में,मानसिक विकारों काम,क्रोध आदि के वशीभूत ना होकर कार्य करने से जीवन्त अनुभव कर सकते हैं।अपने जीवन को जिंदादिली से जीने के लिए सबसे पहला आवश्यक कार्य है कि अपने मन को जीवंत विचारों से भर लें।बुद्धि पर आत्म-नियंत्रण,मन पर बुद्धि का नियंत्रण,मन का इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Mantras to Control Yourself),छात्र-छात्राओं के लिए स्वयं को काबू में रखने के 5 मंत्र (5 Spells for Students to Control Yourself) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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