5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise
1.व्यवहारकुशल कैसे बने के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise),छात्र-छात्राएँ व्यवहारकुशल कैसे बनें के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Formulas for Students to Be Tactful in Dealings):
- व्यवहारकुशल कैसे बने के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise) न केवल आपके लिए इंटरव्यू व छात्र जीवन में उपयोगी हैं बल्कि इन सूत्रों की मदद से जाॅब व व्यावहारिक जीवन को भी पूरी कुशलता के साथ निर्वहन कर सकते हैं।व्यावहारिक कुशलता के ये टिप्स स्वयं प्रयास करके ही विकसित कर सकते हैं।
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2.व्यावहारिकता के अनमोल मोती (Priceless pearls of practicality):
- (1.)गलत कार्यों का बीज बचपन में अर्थात् छात्र जीवन में पड़ जाता है,युवावस्था में बढ़ता है और फिर व्यक्तिगत जीवन में परिपक्व होकर फलता-फूलता रहता है।
- (2.)जितने भी गलत,बुरे व्यसन हैं जैसे शराब,ड्रग्स का सेवन,अय्याशी करना,धूम्रपान करना आदि व्यक्ति को नाकारा बना देते हैं।
- (3.)भोग-विलास में अति करना,भोग-विलास का चिंतन करने वाले व्यक्ति को कल का ज्ञान नहीं होता।
- (4.)मन के विकार काम,क्रोध,लोभ आदि मनुष्य को पतन के मार्ग पर ले जाने वाले हैं।
- (5.)किसी भी कार्य को करने के बारे में चिंतन-मनन भी करना चाहिए।केवल चिंतन-मनन अथवा केवल कर्म करते रहने से हमारी कार्यक्षमता का सही उपयोग नहीं होता है।
- (6.)पूर्णतावादी का कोई कार्य पूरा नहीं होता क्योंकि कोई भी कार्य उसकी निगाह में सर्वगुण संपन्न नहीं होता।जोखिम उठाने के बजाय वह उसे टालता रहता है।जो खतरे उठा सकता है,खतरों से खेलता है वही आगे बढ़ता है।
- (7.)हममें से बहुत से लोग बहुत ज्यादा उपलब्धियां प्राप्त कर लेते,यदि हममें गलतियां स्वीकार करने की ईमानदारी होती और गलतियों में सुधार करते रहते तथा अपनी सीमाएं स्वीकार करने की सच्चाई होती।
- (8.)आप दूसरे लोगों को तभी जान सकेंगे तथा जुड़ सकेंगे,जब उनसे प्यार करेंगे।प्यार में निःस्वार्थ और निश्छल त्याग करना होता है,बदले में कुछ चाहने की चाहना नहीं होती।प्यार करने पर कुछ घाटा और तकलीफ उठानी तो पड़ती ही है।विश्वास प्रेम की पहली सीढ़ी है।
- (9.)अपनी भावनाओं को,अपने मन को मंदिर,हृदय को उदार बनाओ क्योंकि इन्हीं से आपका चेहरा,आपका शरीर सुंदर बन सकता है,उतना किसी अन्य उपचार से नहीं,बाहरी सजावट से नहीं।
- (10.)आत्म-सम्मान,आत्मज्ञान,आत्मसंयम-ये तीनों आपको पूर्णतया शक्ति-संपन्न बनाते हैं।आपका असली परिचय इन्हीं से मिलता है।इनके द्वारा आप अपनी खूबियों,योग्यताओं,अपनी छिपी हुई प्रतिभा को पहचान पाते हो।
- (11.)चरित्र कोई ऐसी वस्तु नहीं,जो शून्य अथवा एकांत में विकसित होती हो और सफलता कोई ऐसा फल नहीं,जो पेड़ पर लटकता हो या मदारी के फूल की तरह हाथ पर उगता हो।
- (12.)अपने से वरिष्ठ व्यक्तियों से कुछ भी मांगना शिष्टाचार के विपरीत है,अतः वरिष्ठजनों से जब भेंट करने जाएं तो यह भलीभाँति सुनिश्चित कर लें कि आपकी जरूरत की सभी चीजें आपके पास हैं।
- (13.)महान् व्यक्तियों,महामानवों का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए।यदि उनसे मार्गदर्शन मिल सके तो यह और भी उत्तम है।
- (14.)जब किसी आदरयोग्य व्यक्ति को अपने पास बुलाना हो तो यह कहने के बजाय कि…… यहां आ जाएं,यह कहना अधिक उचित है कि……हम आपको याद कर रहे हैं।
- (15.)बच्चों के लिए समय जरूर निकालें और उनके क्रियाकलापों पर क्रोधित होने तथा झल्लाने के बजाय संयम से काम लें।उनकी समस्याओं,जरूरतों,परेशानियों को समझने तथा उन्हें हल करने की कोशिश करें।
- (16.)अपने गुण-कर्म-स्वभाव से मिलते हुए व्यक्तियों से दोस्ती करें।दोस्तों को जाने समझे।माता-पिता को बच्चों को अपने दोस्तों-सहेलियों को घर बुलाने और स्वस्थ मित्रता रखने के लिए प्रेरित करें।
3.व्यावहारिकता के स्वर्ण सूत्र (The Golden Formulas of Pragmatism):
- (17.)बार-बार किसी एक ही बात को दोहराने की आदत ठीक नहीं।इससे बुरा प्रभाव पड़ता है।जिस बात को दोहराना आवश्यक है जैसे पाठ को बोलकर बार-बार याद करना,पुनरावृत्ति करना वही करें।
- (18.)अक्सर लोग किसी शब्द या वाक्य को ‘तकिया कलाम’ (कोई भी बात कहते समय वाक्य या शब्द विशेष का बोलना) बना लेते हैं।इस आदत से उबरने का प्रयास करें।
- (19.)पहले किसी बात को सोचो,समझो फिर कहो।हम जैसी बात कहेंगे,वैसी बातें विभिन्न व्यक्ति,विभिन्न अवसरों पर हमारे बारे में कहेंगे और उसी आधार पर हमारी एक सामूहिक छवि निर्मित हो जाती है।
- (20.)किसी के सामने हाथ पसारने से मांगनेवाले की आत्मा और जमीर,दोनों मर जाते हैं।उसका स्वाभिमान खत्म हो जाता है।याचना के लिए मुंह खोलने की अपेक्षा मन की इच्छाओं को रोकना श्रेयस्कर है।
- (21.)अपनी आवश्यकताओं का मूल्यांकन करें।जब कोई चीज अत्यंत आवश्यक लगे तभी उसे पाने का प्रयास करें।
- (22.)धन से कृपणता पर,शांति से क्रोध पर और सत्य से असत्य पर विजय प्राप्त करें।यही सत्मार्ग है।
(23.)सोच-समझकर बोले क्योंकि मुंह से निकली बोली और बंदूक से निकली गोली कभी वापस नहीं आती। - (24.)किसी भी व्यक्ति के पीठ पीछे,उसकी निंदा-चुगली नहीं करनी चाहिए।कहनी हो तो उसके सामने कहे और उसे ही कहें जो बुरा न मानता हो।
- (25.)बातचीत करने के दौरान चिकनी-चुपड़ी,चापलूसीपूर्ण,लच्छेदार व गोल-गोल मीठी-मीठी बातें करने वाले लोगों से सावधान रहें।
- (26.)किसी भी व्यक्ति का अपमान,तिरस्कार न करें क्योंकि बदले में लौटकर हमें ब्याज सहित वही मिलता है।अर्थात् किसी का अनादर करने से आप स्वयं अपना अनादर करते हैं।
- (27.)क्या आप अपने परिवार वालों से भी वैसा ही व्यवहार करते हैं,जैसा अपने मालिक या अफसर के साथ?
- (28.)सदैव ध्यान रखें कि आपके व्यवहार से,आपके आचरण से,आपके कर्म से अर्थात् आपके कारण किसी को दुःख,कष्ट,तकलीफ ना हो।
- (29.)मजाक उसी सीमा तक शोभा देता है,जब तक किसी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे।हंसना और हँसाना तो ठीक है परंतु हंसी उड़ाना ठीक नहीं हैं।द्रौपदी ने दुर्योधन को अंधे के अंधे पैदा होते हैं,कहकर चुहलबाजी की थी परन्तु उसके कारण महाभारत का युद्ध हो गया।
- (30.)अपने से छोटों की भावनाओं का ख्याल रखें।
- (31.)यदि आप तीसरे दृष्टिकोण के अलावा सबका सकारात्मक उत्तर देते हैं या व्यवहार करते हैं तो इससे आप,निःसंदेह दूसरों द्वारा सराहे जाएंगे।
- (32.)सदैव हंसमुख व्यवहार करें।यदि मन में कोई बात है भी तो एक-दूसरे के समक्ष आदान-प्रदान कर गलतफहमियों का निराकरण कर दें।तथा जाने-अनजाने कोई भूल हो जाए तो उसे अनदेखा कर देना चाहिए।गलती करना मानवीय स्वभाव है।
- (33.)अच्छे कार्यों की सराहना कीजिए।मनमाफिक ना होने पर उखड़िए मत।चुप रहना स्वयं में कई समस्याओं का उपचार है।
- (34.)हमें प्रतिदिन कुछ ना कुछ नया अवश्य सीखना चाहिए।हम रात को वैसे ही न सोने जाएं,जैसे सुबह जगे थे।
- (35.)समय अमूल्य है जिसे किसी भी कीमत पर वापस प्राप्त नहीं किया जा सकता है।समय अपनी रफ्तार से अबाध बढ़ता रहता है,इसे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता।अतः हमें न तो अपना समय बर्बाद करना चाहिए और न ही किसी अन्य का।जो समय चिंता में बीता,समझो कूड़ेदान में गया।जो समय चिंतन में गया,वह समझो तिजोरी में सुरक्षित हो गया।
- (36.)जो उत्तम कार्य करना है,वह आज ही कर डालें।मृत्यु इस बात की प्रतीक्षा नहीं करती कि आपने कोई कार्य पूरा किया है अथवा नहीं।
- (37.)किसी को भेंट,उपहार देने के बाद जगह-जगह उसका ढिंढोरा न पीटते फिरें,विज्ञापन न करते फिरें।
- (38.)दिए गए उपहार,भेंट अथवा संदेश का कभी ताना ना दें।
4.व्यवहारकुशलता के दिव्य सूत्र (The Divine Formulas of Behavioral Efficiency):
- (39.)दूसरों को देने की ही बात सोचें,यह अपेक्षा ना करें कि बदले में वे भी आपको कोई चीज क्यों नहीं देते।कुछ देने के बदले,कुछ लेना तो व्यापार है,सौदा है।
- (40.)प्रत्येक कार्य को श्रेषठतम रूप में करने का प्रयत्न करें,जिससे आपको अधिकाधिक काम मिले।साथ ही कार्य को करने से आपको आत्म-संतुष्टि हो।बेहतरीन कार्यकर्ता के पास काम की कमी नहीं रहती है और उसे पुरस्कार के रूप में और अधिक कार्य प्राप्त होता है।
- (41.)कुछ कहने-सुनने से पूर्व उसके द्वारा उत्पन्न प्रभाव पर विचार कर लें।संगत के प्रभाववश अपने सिद्धांतों तथा उसूलों से समझौता न करें।अपने मस्तिष्क में किसी व्यर्थ अथवा आंशिक विचार को स्थान न दें।यह कार्य बहुत कठिन है।इसके लिए सावधानीपूर्वक अभ्यास करना होगा।
- (42.)अपने मित्र की आलोचना किसी अन्य व्यक्ति से नहीं करनी चाहिए अन्यथा दूसरे व्यक्ति उससे अनुचित लाभ उठा सकते हैं।जो भी बात हो,उसका निराकरण परस्पर विचार-विमर्श से ही करें।
- (43.)पुरुष-महिला को चाहिए कि अपने कार्यालय में महिला व पुरुष सहकर्मी से मर्यादित व संयमित भाषा में ही व्यवहार करें।ज्यादा हँसी-मजाक संदेह को जन्म देता है।अतः इससे सतर्क रहें।
- (44.)दुष्ट,मूर्ख तथा बहके हुए व्यक्ति को समझ पाना और समझा पाना दोनों कार्य ही बहुत कठिन हैं।अतः इनसे बहस न करें।
- (45.)फूल अपने लिए नहीं दूसरों के लिए खिलता है। आप भी अपने हृदय रूपी पुष्प को दूसरों के लिए पल्लवित करें।
- (46.)सुपर फास्ट रफ्तार से भागती इस तनावयुक्त जिंदगी में आपस में बातचीत,हंसी-मजाक नहीं करेंगे तो जीवन में सरसता व मधुरता नहीं रहेगी।
- (47.)मित्रों व सहपाठियों के साथ व्यवहार करते समय किसी बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाएं।जीवन में समझौतावादी नजरिया रखें।
- (48.)यदि जीवन में उन्नति करना चाहते हैं तो बाहरी आडम्बरों,दिखावे,शान-शौकत से दूर रहें और ईमानदारी से आत्मशोधन करें।
- (49.)साहसी व्यक्ति कभी असत्य नहीं बोलता।साथ ही दूसरों के साथ व स्वयं के साथ निष्कपट व्यवहार करता है।सभी छलों में अपने साथ किया हुआ छल निकृष्टतम होता है।
- (50.)सामान्यतः कोई भी व्यक्ति सीधे-सीधे हमें यह नहीं कहता कि वह हमें नापसंद करता है।हमें यह पढ़ना (जानना) आना चाहिए कि हमें कौन,कब पसंद कर रहा है और कब नापसंद।
- (51.)हंसी-मजाक बहुत हद तक हमारे हृदय के भावों को प्रदर्शित करते हैं।मन में भीतर जो बुदबुदा रहा होता है,वह अनुकूल परिस्थितियों में प्रकट हो जाता है।अतः हँसी-मजाक करते वक्त सतर्क रहें।
- (52.)जैसी हमारी मनोवृत्ति होगी,उसी के अनुसार हमें प्राप्ति होती है।अतः हमें अपनी मनोवृत्ति सदैव अच्छी ही रखनी चाहिए।
- (53.)भगवान भी उन्हीं की सहायता करता है,जो अपनी सहायता स्वयं करना जानते हैं अर्थात् पुरुषार्थ करते हैं।
- (54.)जिसका जो व्यवहार है,वह उसे अवश्य करता है।जैसे नदी का पानी नीचे की ओर ही बहता है या बिच्छू से कितना भी प्रेम करो वह डंक मारना नहीं छोड़ता।
- (55.)सदाचार मनुष्य की रुचि से पैदा नहीं होता।उसे पैदा करती है उसकी धरती,जिस पर वह पैदा होता है।इस धरती के गुण और स्वभावानुसार हमारा स्वभाव निर्मित होता है।
- (56.)निष्काम काम करने वाला अर्थात् फल में आसक्ति न रखने वाला कभी दुखी नहीं रहता।
- (57.)स्वाधीनता सद्गुणों को जगाती है और पराधीनता दुर्गुणों को।
- (58.)परमात्मा प्रेम का भूखा है,प्रार्थना हमें परमात्मा के निकट पहुंचाती है।
- (59.)कटुता,द्वेष,वैरभाव का छोटा-सा बीज अवचेतन मन में पहुंचकर कभी-कभी भयंकर रूप धारण कर लेता है।
- (60.)न्यायसंगत,उचित और अच्छी बात को कहने और सुनने के लिए हर समय उपयुक्त होता है।
- (61.)हजारों-लाखों लोग प्रतिदिन काल के गाल में समा जाते हैं परंतु बचे हुए लोग जीवित रहना चाहते हैं,इससे बढ़कर आश्चर्य और क्या हो सकता है?
- (62.)दुःख बांटने पर मन का बोझ हल्का हो जाता है और सुख बंटता है तो दोगुना हो जाता है।
5.व्यवहारकुशल होने के भव्य विचार (Grand Ideas of Being Tactful):
- (63.)सौजन्य प्राकृतिक गुण है,जिनमें कोई परिवर्तन नहीं हो सकता।स्वभाव एक उपार्जित गुण है,उसमें शिक्षा और सत्संग से सुधार हो सकता है।
- (64.)मनुष्य अपने धर्म का पालन अवश्य करें लेकिन दूसरों को अपमानित करके नहीं।दूसरों को अपमानित करने से वह दूसरों से सम्मान का अधिकारी नहीं रह जाता।
- (65.)न कोई किसी का मित्र होता है और ना कोई किसी का शत्रु।मित्रता-शत्रुता तो प्रायः स्वार्थवश ही होती है।
- (66.)अपने प्रयोजन के लिए तो शैतान भी धर्मग्रंथ का हवाला दे सकता है।
- (67.)इस संसार में सबसे बड़ा जादूगर स्नेह है।
- (68.)विचार और कार्य की स्वतंत्रता ही जीवन,उन्नति और कुशलक्षेम का एकमेव साधन है।
- (69.)दुःख जीवन का सबसे बड़ा रस है जिसे जीवन में दुःख नहीं मिला,उसे सुख की अनुभूति ही नहीं होती।जो स्वयं दुःख का अनुभव करता है,वही दूसरे के दुख को बेहतर ढंग से पहचान व समझ सकता है।दुःख तो मानने का है।मानो तो दुःख का अंत नहीं और मानो तो मौत भी सुखदायी है।दुःख सभी को होता है,लेकिन जो उसे सहने की शक्ति रखते हैं,उनके लिए दुःख ही सुख हो जाता है।
- (70.)व्याधि के प्रतिकार की प्रधान औषधि प्रणय है। नहीं तो हृदय की व्याधि को कौन शांत कर सकता है।
- (71.)लोकहित भव्यतम प्रेरणा है।
- (72.)हीनता हिंसा से भी हीन है।
- (73.)प्रशंसा की ठंडी आग पत्थर को भी पिघला देती है।
- (74.)हीनता के बजाय सद्गुणों का विकास करें।
- (75.)स्वभाव से ही सबकी उत्पत्ति होती है,स्वभाव से ही अहंकार तथा यह जगत प्रकट हुआ है।
- (76.)पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं:जल,अन्न और मृदुवचन।मूर्ख लोग ही पत्थर के टुकड़ों को रत्न का नाम देते हैं।
- (77.)अधिक धन संपन्न होने पर भी जो असंतुष्ट रहता है,वह सदा निर्धन है।धन से रहित होने पर भी जो संतुष्ट है,वही धनी है।
- (78.)सत्व,रज और तम-ये तीनों मानसिक गुण हैं।इन गुणों का सम अवस्था में रहना मानसिक स्वस्थता का लक्षण है।
- (79.)इस संसार में किसी प्रेम करने वाले हृदय को खो देना सबसे बड़ी हानि है।
- (80.)हमें जितना अधिकार अपनी बात कहने का है, दूसरे को भी अपनी बात कहने का उतना ही अधिकार है।
- (81.)सामंजस्य एक कला है,पर उसकी साधना बेहद कठिन है।दो व्यक्ति साथ में रहे और परस्पर सामंजस्य करें,यह मानसिक शक्ति का सूत्र है।
- (82.)हम रहन-सहन को ही ऊंचा नहीं करें बल्कि दूसरों के रहन-सहन के ऊंचे होने में भी सहायक बनें।दूसरों के साथ प्रेम व्यवहार से उनके हीन भावों को दूर करने का प्रयत्न करें।
- (83.)नम्रता पत्थर को भी मोम बना देती है।नम्रता का असर दूर तक जाता है और उसमें कुछ भी खर्च नहीं होता।नम्रता सारे सद्गुणों का दृढ़ स्तंभ है।वास्तविक महान पुरुष की पहली पहचान उसकी नम्रता है।अभिमान की अपेक्षा नम्रता से अधिक लाभ होता है।विनम्रता का अर्थ है,दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना जैसा आप अपने साथ किया जाना पसंद करते हैं।तब हम महानता के निकटतम होते हैं,जब हम नम्रता में महान होते हैं।जिनमें नम्रता नहीं वे विद्या का पूरा सदुपयोग नहीं कर सकते।नम्रता का अर्थ है अहंभाव का आत्यंतिक भय।गर्ववश देवता दानव बन जाते हैं और नम्रता से मानव देवता।अपनी नम्रता का गर्व करने से अधिक निंदनीय और कुछ नहीं।कष्ट और क्षति सहने के पश्चात मनुष्य अधिक विनम्र और ज्ञानी हो जाता है।उड़ने की अपेक्षा जब हम झुकते हैं तब विवेक के ज्यादा निकट होते हैं।जहां नम्रता से काम निकल आए वहाँ उग्रता नहीं दिखानी चाहिए।भगवान के सम्मुख दान सहस्रों पापों को भी ढक लेता है।मानव के सम्मुख नम्रता बुराइयों को छिपा लेती है।बड़ों के प्रति नम्रता कर्त्तव्य है तो हम उम्र के प्रति विनय की सूचक,अनुजों के प्रति कुलीनता की द्योतक एवं सबके प्रति सुरक्षा है।आत्मसम्मान की भावना ही नम्रता की औषधि है।
- (84.)प्रशंसा अच्छे गुणों की छाया है,परंतु जिन गुणों की वह छाया है उन्हीं के अनुसार उसकी योग्यता भी होती है।मानव की सर्वोत्कृष्ट लालसा प्रशंसा प्राप्त करने की होती है।हर इंसान प्रशंसा चाहता है।प्रशंसा प्रार्थना से अधिक दिव्य है।प्रार्थना स्वर्ग की राह दर्शाती है,प्रशंसा वहाँ पहले से ही मौजूद रहती है।मानव के अंदर जो कुछ सर्वोत्तम है उसका विकास प्रशंसा तथा प्रोत्साहन के द्वारा किया जा सकता है।किसी के गुणों की प्रशंसा करने में समय न गंवाएं,उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करें।प्रतिद्वंदी द्वारा की गई प्रशंसा सर्वोत्तम कीर्ति है।इससे ज्यादा कोई प्रशंसा क्या करेगा जो यह कहे कि तुम ही तुम हो।हम प्रशंसा,आशा और समय से जीते हैं।प्रशंसा वहां आरंभ होती है जहां परिचय समाप्त होता है।आप हर इंसान का चरित्र बता सकते हैं,यदि आप देखें कि वह प्रशंसा से किस प्रकार प्रभावित होता है।अयोग्य व्यक्तियों की प्रशंसा छिपे हुए व्यंग्य के समान होती है।लोक-प्रशंसा प्रायः सभी को प्रिय होती है।सोने और हीरे के समान,प्रशंसा का मूल्य सिर्फ उसके दुर्लभपन में ही होता है।यदि आप चाहते हैं कि दूसरे आपकी प्रशंसा करें तो पहले आप दूसरों की प्रशंसा करना सीखें।प्रशंसा वह हथियार है जिससे शत्रु भी मित्र बनाया जा सकता है।
उपर्युक्त आर्टिकल में व्यवहारकुशल कैसे बने के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise),छात्र-छात्राएँ व्यवहारकुशल कैसे बनें के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Formulas for Students to Be Tactful in Dealings) के बारे में बताया गया है।
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6.छात्रा के पिता की आय (हास्य व्यंग्य) (Student’s Father’s Income) (Humour-Satire):
- मां:देखो मीना,टीचर अगर तुम्हारे पिताजी की आय पूछे तो दस हजार ही बताना।
- टीचरःबेटी तुम्हारे पिताजी की आय कितनी है?
- मीना:अभी तो दस हजार है,फीस माफ करने के तत्काल बाद पचास हजार मासिक हो जाएगी।
7.व्यवहारकुशल कैसे बने के 5 स्वर्णिम सूत्र (Frequently Asked Questions Related to 5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise),छात्र-छात्राएँ व्यवहारकुशल कैसे बनें के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Formulas for Students to Be Tactful in Dealings) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.व्यक्ति के स्वाभाविक मित्र कौन हैं? (Who are the natural friends of the person?):
उत्तर:विद्या,शूरवीरता,दक्षता,बल और धैर्य मनुष्य के स्वाभाविक मित्र हैं।बुद्धिमान लोग इनका साथ कभी नहीं छूटने देते।जो इनको साथ रखता है वह बड़ी से बड़ी विपत्ति को भी पार कर जाता है।
प्रश्न:2.भलाई करते समय क्या ध्यान रखें? (What to keep in mind when doing good?):
उत्तर:भलाई करना कर्त्तव्य नहीं आनंद है क्योंकि वह आपके स्वास्थ्य और सुख की वृद्धि करता है।परंतु दुर्जनों के साथ भलाई करना सज्जनों के साथ बुराई करने के समान है।
प्रश्न:3.लक्ष्य कैसे प्राप्त करें? (How to achieve the goal?):
उत्तर:कर्मशक्ति तथा इच्छाशक्ति जुटाकर कठोर परिश्रम करें,निश्चित ही लक्ष्य पर पहुंच जाएंगे।हमारा ध्येय सत्य होना चाहिए,न कि सुख।लक्ष्य की सिद्धि अन्याय तथा अनीति से नहीं,सत्य और धर्म से ही हो सकती है।महान ध्येय का सृजन मौन से ही होता है।ध्येयहीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान है।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा व्यवहारकुशल कैसे बने के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Tips on How to Be Wordly Wise),छात्र-छात्राएँ व्यवहारकुशल कैसे बनें के 5 स्वर्णिम सूत्र (5 Golden Formulas for Students to Be Tactful in Dealings) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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