5 Golden Tip to Make Good Use of Money
1.धन का सदुपयोग करने की 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tip to Make Good Use of Money),साफ-सुथरे तरीके से धन कमाने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips to Make Money Cleanly):
- धन का सदुपयोग करने की 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tip to Make Good Use of Money) के आधार पर आप जान सकेंगे कि धन की महत्ता क्या है,धन का सदुपयोग किस प्रकार किया जाए और धन का संग्रह करने में क्या सावधानी बरतें तथा धन कमाने के तरीके कैसे होने चाहिए आदि।
- बहुत से छात्र-छात्राएं युग के प्रभाव से धन को नैतिक-अनैतिक तरीके से कमाने पर विचार नहीं करते हैं।उन्हें केवल धन चाहिए चाहे वह तरीका कैसा भी हो? धन का अपव्यय करते हुए पाए जाते हैं जबकि धन का उपयोग सोच-समझकर करना चाहिए।इसे समझने के लिए कुछ दृष्टांतों का अवलोकन करते हैं।
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2.सादगी से रहने की दो नजीर (Two precedents for living in simplicity):
- दृश्य प्रथम:देश के स्वतंत्र होने के समय की बात है,जब सरदार बल्लभभाई पटेल गृहमंत्री के पद पर थे और उनकी बेटी मणिबेन थीं,जो पैबंद लगी हुई धोती पहनती थीं।उनकी इस तरह की धोती को पहने हुए देखकर एक बार महावीर त्यागी जी ने उनसे कहा:”तू चक्रवर्ती राजा की बेटी होते हुए भी पैबंद लगी हुई धोती पहनती है।”
- उस समय सरदार बल्लभभाई पटेल ने 200 से अधिक रियासतों को एक कर दिया था।उनके दृढ़ निश्चय व सही निर्णयों को देखकर लोग उन्हें ‘लौह पुरुष’ कहते थे।उनके कार्य देश के प्रति समर्पित थे,इतनी सारी रियासतों का अधिकारी होने के बावजूद भी वे बहुत सामान्य जीवन जीते थे।उनकी बेटी अपने हाथों से सूत कातकर धोती बनाती।घर के कार्यों में अत्यधिक व्यस्तता के कारण वे अधिक सूत नहीं कात पाती थीं,इसलिए जो भी धोती बनातीं,उसे अपने पिता को पहनने के लिए दे देती; क्योंकि उन्हें बड़े-बड़े कार्यो व समारोहों में सबके बीच जाना पड़ता था।
- स्वयं मणिबेन उनकी पुरानी धोती साड़ी के रूप में पहनतीं और कुर्ते का ब्लाउज बना लेतीं।महावीर त्यागी के इस व्यंग को जब सरदार पटेल ने सुना तो उन्होंने कहा-“मणिबेन चक्रवर्ती सम्राट की बेटी नहीं,गरीब किसान की बेटी है।” और ऐसा करने में उन्हें फक्र महसूस हुआ।उस समय राजनेताओं को अधिक धन नहीं दिया जाता था और ना ही वे धन के लिए देश की अस्मिता को दाँव पर लगाने के लिए तैयार होते थे।वे भी स्वयं को देश का सामान्य नागरिक समझते थे।आजादी की कीमत उन्हें पता थी और वे अपने कर्त्तव्यों का भली प्रकार से पालन करते थे।जब से धन,भ्रष्टाचार और राष्ट्रद्रोह ने राजनीति में प्रवेश किया है,तब से देश की सूरत ही बदल गई है।
- दृश्य दो:सर चिमनलाल सीतलवाड़ उन दिनों किसी उच्च पद पर थे।एक मामले में बचने के लिए एक व्यक्ति उनके पास आया और ₹100000 बतौर रिश्वत देने लगा,किंतु सर सीतलवाड़ ने उसे अस्वीकार कर दिया।
- तब वह व्यक्ति बोला:”समझ लीजिए साहब! आपको ₹100000 देने वाला और कोई दूसरा नहीं मिलेगा।”
- सर सीतलवाड़ हँसे और बोले:”नहीं भाई! देने वाले तो बहुत मिलेंगे,पर इतनी बड़ी रकम मुफ्त में लेने से इनकार करने वाला आपको कोई नहीं मिलेगा।”
3.धन की महत्ता (Importance of Money):
- नीति में कहा है कि पुत्र ना हो तो घर सूना,मित्र ना हो तो जीवन सूना,पत्नी ना हो तो गृहस्थी सूनी,मूर्ख के लिए सब दिशाएं सूनी और पैसा पास ना हो तो सब कुछ सूना-सूना लगता है।दरिद्रता और मृत्यु,इनमें दरिद्रता अधिक दुःखदायी है।मरने का दुःख तो एक ही बार और थोड़े समय के लिए होता है मगर दरिद्रता तो पूरे जीवन ही दुःख से भर देती है।धन संपदा पास हो तो वही इंद्रियां होती है पर तेज और उत्साह से युक्त होती है,वही नाम होता है पर आदर से लिया जाता है,वही वाणी होती है पर लोग उसे सुनने के लिए लालायित रहते हैं।
- पर यदि धन नष्ट हो जाए तो वही आदमी दो कौड़ी का हो जाता है।जिसके पास धन होता है वह अज्ञानी होने पर भी ज्ञानी,अकुलीन होने पर ही कुलीन,बोलना ना जानने पर भी सुवक्ता और कुरूप होने पर भी देखने योग्य माना जाता है।जिसके पास धन होता है उसकी मित्रता हर कोई चाहता है,उसी को बन्धु-बान्धव भी चाहते हैं और वही अक्लमंद माना जाता है।लोक परलोक का स्वामी भगवान है लेकिन संसार के कामकाज के लिए धन ही भगवान है क्योंकि इसी की शक्ति से संसार के सब कामकाज और व्यवहार चलते हैं।
- धनवान मनुष्य की सब जगह प्रतिष्ठा होती है,भले ही वह घोर दुराचारी हो।धन के पीछे सारे ऐब छिप जाते हैं।इतना ही नहीं,धनवान मनुष्य में अनेक गुणों का भी आरोपण कर दिया जाता है।धनहीन,गुणवान मनुष्य को कोई नहीं पूछता।
- दुनिया में ऐसा देखने में आता है कि व्याकरण के पंडित भूखे मरते हैं।कविता के रसिक मारे-मारे फिरते हैं और कवि लोग अपने कुटुंब का भरण-पोषण नहीं कर पाते।इसके विपरीत जिनके पास पैसा होता है,वे सब तरह की सुविधाएं प्राप्त कर लेते हैं।पंडित,कवि आदि सारे कलाकार उनके पीछे-पीछे घूमते रहते हैं।
- इसीलिए सब तरफ धन को,धर्म की जगह देकर धन की उपासना की जा रही है और अच्छे या बुरे किसी भी तरीके से धन प्राप्त करने के उपाय किए जा रहे हैं और अधिकांश लोग धन के पीछे पागल बने हुए हैं क्योंकि धन पास हो तो सब काम और कामनाओं की सिद्धि हो जाती है।
- परंतु इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता की पैसा बहुत कुछ हो सकता है पर सब कुछ नहीं हो सकता,पैसे से बहुत कुछ किया जा सकता है,पर सभी काम सिर्फ पैसे के बल पर नहीं किए जा सकते।
4.धन का सदुपयोग करें (Make good use of money):
- इस संसार में धन-संपदा का बहुत मूल्य है।धन-संपदा से कुछ भी खरीदा जा सकता है।वस्तुओं का मूल्य चुकाया जा सकता है।धन इस संसार की जरूरत है।धन के बिना जीवन-निर्वाह करना,सुविधाएं जुटाना मुश्किल होता है,लेकिन धन के प्रति एक अजीब-सा आकर्षण लोगों के मन में है।इसका संग्रह करके अमीर बनने का लोभ मन में है और इसी कारण अधिकांश लोग ‘निन्यानवे के फेर’ में है।अर्थात् अपने धन से संतुष्ट नहीं हैं और उसे और बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते हैं।
- धन-संपदा का यदि सार्थक उपयोग हो तो उससे बहुत सारे लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं,साधन-सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं,लोगों की सहायताएं भी की जा सकती हैं।लेकिन यदि धन को केवल स्वयं के लिए जोड़कर रखा जाए तो पता नहीं कि वह धन काम भी आएगा या नहीं ;क्योंकि धन को खाया नहीं जा सकता,इससे भूख नहीं मिटाई जा सकती,प्यास नहीं बुझाई जा सकती और यह हमें प्यार-अपनापन नहीं दे सकता।यह तो एक माध्यम मात्र है,जिससे अन्न-जल खरीदा जा सकता है और जीवन की मूलभूत आवश्यकताएं पूर्ण की जा सकती हैं,लेकिन यह व्यक्ति को अपनापन दे,सुकून-शांति दे यह संभव नहीं।
- धनवान होने के साथ-साथ विवेकवान होना भी जरूरी है।बिना विवेक के इसका दुरुपयोग होता है और इससे धन नष्ट हो जाता है।विवेक होने पर धन को अर्जित किया जा सकता है एवं इसका सार्थक उपयोग किया जा सकता है।विवेक का अर्थ बुद्धि से नहीं है; क्योंकि बुद्धिमान होने पर लोगों ने धन का अर्जन बेईमानी के साथ किया और उसका दुरुपयोग किया।जो धन देश के अनेक लोगों की आवश्यकता पूर्ति में लगता,वह तिजोरियों,बैंकों में कालेधन के नाम से बंद है और उसका कोई उपयोग नहीं।ऐसा धन किसी काम का नहीं।
- धन के प्रति अत्यधिक आसक्ति हमें लाचार बना देती है।हमारे मन को संकीर्णता से भर देती है और ऐसा होने पर अशुभ कर्म करने से भी व्यक्ति नहीं चूकता।जब से स्वार्थी सोच ने राजनीति,धर्म,पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया तब से उन क्षेत्रों में अनैतिकता,अराजकता व झूठ का प्रवेश हो गया।इन क्षेत्रों में अब ईमानदारी दृष्टिगोचर नहीं होती,पैसे के लिए लोग कार्य करते हैं,पैसे के लिए लोग पद चाहते हैं और पैसे के लिए लोग धर्म का सहारा लेते दिखाई पड़ते हैं।
- लेकिन पहले ऐसा नहीं था।पहले हमारे देश में जो राजनेता थे,जो धर्म के रक्षक थे और जो पत्रकार थे,वे अपने कर्त्तव्यों व दायित्वों को भली प्रकार समझने वाले व उन्हें निभाने के लिए कटिबद्ध थे,लेकिन आज इन्हें पूरा करना तो दूर इनके बारे में कोई सोचता भी नहीं है।कर्त्तव्यों व दायित्वों पर केवल बातें होती है,शपथ ली जाती है,लेकिन किया कुछ नहीं जाता।
- धन जिस प्रकार से अर्जित किया जाता है,उसका व्यय भी उसी रूप में होता है।ईमानदारी व परिश्रम से अर्जित धन का उपयोग लोगों को ईमानदार व परिश्रमी बनाता है और संस्कारवान बनाता है।इसी तरह बेईमानी व मुफ्तखोरी से अर्जित धन लोगों को बेईमान व भ्रष्ट बनाता है,उनमें कुसंस्कार पैदा करता है।इसलिए धन के अर्जन व उसके उपयोग,दोनों में सावधानी बरतने की जरूरत है।
- शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि धन के तीन ही उपयोग हैं:दान करना,उपभोग करना और नष्ट होना।जो व्यक्ति धन का न तो दान करता है ना उपभोग,उसका धन नष्ट हो जाता है।इसलिए हमें धन के संदर्भ में यह बातें ध्यान रखनी चाहिए कि धन ईमानदारी व परिश्रम से कमाया गया हो,भविष्य के लिए भी उसका संग्रह हो,लेकिन बहुत अधिक मात्रा में नहीं।वर्तमान समय में उसका सदुपयोग हो,जहाँ इसकी जरूरत वहां खर्च हो,लेकिन फजूलखरची में नहीं और धन के प्रति अत्यधिक आसक्ति ना हो।यदि ऐसी सोच मनुष्य के भीतर विकसित हो सकेगी तो उसके परिणाम वैयक्तिक स्तर पर ही नहीं,वरन् सामाजिक एवं राष्ट्रीय उन्नति व प्रगति के रूप में दृष्टिगोचर होंगे।
5.धन के गुण (Properties of Money):
- धन में अपने आप में न तो कोई गुण है ना कोई दोष बल्कि यह सदुपयोग से गुणवाला और दुरुपयोग से दोषवाला होता है।धन के गुण-दोष इस पर निर्भर करते हैं कि यह कैसे प्राप्त किया जाता है और कैसे खर्च किया जाता है।आवश्यकता से अधिक न तो धन प्राप्त करना अच्छा होता है और न खर्च करना क्योंकि इसके लिए बहुत दौड़धूप करनी पड़ती है बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं और जब बहुत धन मिल जाता है तो इसे चोरों से सुरक्षित रखने की चिंता में जान सूखती रहती है।
- साथ ही धन जब बहुत बढ़ जाता है तब उसके नशे में मति भ्रष्ट हो जाती है।ऐसो का कुछ धन तो चोर-बदमाश और रिश्ते-नाते वाले उड़ा लेते हैं,कुछ सरकार टैक्स के रूप में ले लेती है,कुछ यार-दोस्त हड़प जाते हैं,कुछ बीमारी और अन्य झंझटों में खर्च हो जाता है और जो बचता है वह बाद वालों के काम आता है।धन के इस तरह नष्ट होता देख ऐसे धनी को जैसा दारुण दुःख होता है इसका अनुभव भुक्तभोगी ही जानता है।
- धन का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह पराया होकर ही फल देता है यानी वह खर्च होकर ही उपयोगी सिद्ध होता है।आप ₹100 का नोट लेकर दिनभर बाजार में घूमते रहे पर उसे खर्च न करें तो उस सौ के नोट और रद्दी कागज में क्या फर्क रहा? अगर खर्च करते हैं तो सही खर्च करते हैं या फिजूल खर्च करते हैं या बुरा खर्च करते हैं इस पर ही धन का गुण या दोष निर्भर करता है।इससे सिद्ध होता है कि सिर्फ धन कमाना,विवेकपूर्वक उपयोग करना और अति संचित न करना ही महत्त्वपूर्ण है।अन्यायपूर्वक प्राप्त किया गया धन शुभफलदायी नहीं होता क्योंकि यह जिस तरह से आता है उसी तरह से खर्च भी हो जाता है।
- धन का मूल्य उसे खर्च करने में ही है,जमा करके रखने में नहीं।लेकिन बहुत लोग धन प्राप्त होने पर यह नहीं समझ पाते कि उसे किस तरह खर्च करना चाहिए।अगर धन को मौज-शौक के लिए खर्च किया जाए,तो वह ज्यादा दिन नहीं टिकता।लेकिन अगर धन को लाभकारी कामों में लगाया जाए तो कम होने के बजाय और बढ़ता है।लाभकारी काम दो तरह के हो सकते हैं:किसी उद्योग-धंधे या व्यापार में लगाना या उसे परोपकार के कामों में खर्च करना।व्यापार से होने वाला लाभ भौतिक उन्नति का साधन है,दूसरा आध्यात्मिक उन्नति का।भौतिक उन्नति से तो इसी लोक में सुख और मान-प्रतिष्ठा प्राप्त होते हैं,परन्तु आध्यात्मिक उन्नति से इस लोक (वर्तमान जीवन) और परलोक (आगामी जीवन) दोनों में ही सुख मिलता है।एक प्रेय का मार्ग है,दूसरा श्रेय का।
- उपर्युक्त आर्टिकल में धन का सदुपयोग करने की 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tip to Make Good Use of Money),साफ-सुथरे तरीके से धन कमाने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips to Make Money Cleanly) के बारे में बताया गया है।
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6.उंगली में ताकत (हास्य-व्यंग्य) (Strength in Finger) (Humour-Satire):
- गर्लफ्रेंड (ब्वायफ्रेंड से):उंगली के इशारे से ब्वायफ्रेंड को बुलाती है।
- ब्वायफ्रेंड नजदीक आकर गर्लफ्रेंड से पूछता है:क्यों,कैसे बुलाया?
- गर्लफ्रेंड:कुछ नहीं बस यह जांच कर रही थी की उंगली में कितनी ताकत है?
7.धन का सदुपयोग करने की 5 स्वर्णिम टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Golden Tip to Make Good Use of Money),साफ-सुथरे तरीके से धन कमाने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips to Make Money Cleanly) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:
प्रश्न:1.धन और ज्ञान में श्रेष्ठ कौन है? (Who is superior in wealth and wisdom?):
उत्तर:ज्ञान और धन में ज्ञान ही श्रेष्ठ है क्योंकि धन की रक्षा हमें करनी पड़ती है जबकि ज्ञान हमारी रक्षा करता है।धन खर्च करने पर घटता है जबकि ज्ञान खर्च करने पर बढ़ता है।धन उपयोगी और हितकारी भी तभी सिद्ध होता है जब ज्ञान का सदुपयोग कर इसे न्यायोचित तरीकों से खर्च किया जाए और खर्च भी बुद्धिपूर्वक किया जाए।खर्च किया हुआ धन मंगलकारी और उन्नतिकारक सिद्ध ना हो तो ऐसे धन से क्या लाभ है? यूं ज्ञान और धन अपनी-अपनी जगह दोनों ही श्रेष्ठ हैं पर दोनों में तुलना की जाए तो धन की अपेक्षा ज्ञान ही श्रेष्ठ है और ज्ञानयुक्त होकर धन का उपयोग करना श्रेष्ठतम है।
प्रश्न:2.कंजूस और निर्धन में क्या फर्क है? (What is the difference between a miser and a poor man?):
उत्तर:कंजूस और निर्धन में कोई फर्क नहीं है क्योंकि पहला धन का उपयोग नहीं करता और दूसरा कर नहीं सकता।ऐसे कंजूस का धन उसका है इसका पता तभी चलता है जब उसके धन का नाश होने पर इसके लिए शोकाकुल होकर छाती पीटता है।धन का ना होना बुरा नहीं,उसका दुरुपयोग होना बुरा है और उपयोग ही ना हो वह तो बहुत बुरा है।इस तरह यही सिद्ध होता है कि जिसका धन उपयोग में नहीं आता उसका होना,ना होना बराबर है।
प्रश्न:3.गरीब जनता को कष्ट क्यों उठाने पड़ते हैं? (Why do the poor people suffer?):
उत्तर:इसके दो मुख्य कारण हैं:
(1.)हमारे देश की सरकारें ऐसे कामों पर धन खर्च करती रहती है जिनकी तात्कालिक उपयोगिता नहीं होती।इस फिजूलखर्ची को पूरी करने के लिए घाटे की अर्थव्यवस्था अपनाई जाती है।इससे कीमती बढ़ती है और गरीब जनता को कष्ट उठाने पड़ते हैं।
(2.)हमारे देश के बहुत से व्यापारी धन कमाने के लालच में चोर बाजारी और मुनाफाखोरी करते हैं,उपभोक्ता वस्तुओं के स्टाॅक दबाकर बनावटी कमी पैदा कर देते हैं,खाने-पीने की चीजों और दवाओं तक में मिलावट करते हैं और टैक्सों की चोरी करते हैं।इससे देश को हानि होती है और जनता को कष्ट उठाने पड़ते हैं।पर उन्हें तनिक भी परवाह नहीं।
(3.)इसके अलावा प्राप्त धन को हथिया लेना (गबन करना),मूल्यवान वस्तुओं को हजम करके उनकी जगह कम मूल्य की वस्तुएं रखना,सिफारिशें करना,अपने कर्त्तव्यों की उपेक्षा करना,मूर्खता के काम करना,ऐशोआराम की जिंदगी बिताना,ये सब मंत्री के दोष होते हैं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा धन का सदुपयोग करने की 5 स्वर्णिम टिप्स (5 Golden Tip to Make Good Use of Money),साफ-सुथरे तरीके से धन कमाने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips to Make Money Cleanly) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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Satyam
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