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5 Best Tips for Refining Talent

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1.प्रतिभा को परिष्कृत करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Refining Talent),प्रतिभा को उभारने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Unleash Talent):

  • प्रतिभा को परिष्कृत करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Refining Talent) के आधार पर आप अपनी प्रतिभा में लगी हुई जंग को दूर कर सकते हैं।अपनी प्रतिभा को बदरंग करने वाली अवांछनीयताएँ,कूड़ा-करकट और गंदगी जमी हुई है उसको दूर करना जरूरी है ताकि आप अपनी पूर्ण क्षमता के साथ काम करें।
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2.हमारे अंदर शक्ति का भंडार (A reservoir of power within us):

  • एक कहावत है कि “भगवान मात्र उनकी सहायता करता है,जो अपनी सहायता आप करते हैं।” गीता में भी कहा गया है कि “मनुष्य अपना शत्रु आप है और स्वयं अपना मित्र भी।” यह उसकी इच्छा पर निर्भर है की अस्तव्यस्तता अपना कर अपने को दुर्गति के गर्त में धकेले अथवा चुस्त दुरुस्त रहकर प्रगति के शिखर पर निर्बाध गति से आगे बढ़ता चला जाए।प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को अपने को उठाने में लगाना चाहिए,गिराते चलने की धृष्टता नहीं करनी चाहिए।
  • प्रगति का इतिहास सुनियोजित तन्मयता और तत्परता के आधार पर ही बन पड़ा है।इसके अभाव में किसी को पूर्वजों की कमाई या सुविधाजनक परिस्थिति का अम्बार ही हाथ क्यों न लग जाए,वह सारे वैभव को फुलझड़ी की तरह जलाकर क्षण भर का मनोरंजन कर लेगा और फिर सदा-सर्वदा पश्चाताप से सिर धुनता रहेगा,भले उसके पास वैभव की मात्रा कितनी ही बढ़ी-चढ़ी क्यों ना हो।
  • शरीर का भारी,लंबा-तगड़ा होना एक बात है और हिम्मत का होना सर्वथा दूसरी।तगड़ापन कुछ अच्छा और आश्चर्यजनक तो लगता है,पर उसमें इच्छाशक्ति,संकल्पशक्ति,हिम्मत और प्राण ऊर्जा की कमी हो (सोई पड़ी हो),तो उसे कायरता और भीरुता के कारण चिंतित,शंकाग्रस्त,खिन्न,उद्विग्न ही देखा जाएगा।तनिक-सी कठिनाई आ जाने पर राई को पर्वत की तरह बखानेगा और किसी प्रकार बचने-बचाने की ही कामना छाई रहेगी।वह यह समझ ही नहीं सकता की कठिनाइयां कागज के बने हाथी की तरह बड़ी और डरावनी तो होती है,पर मनस्वी के प्रतिरोध की एक ठोकर खाने की भी उसमें सामर्थ्य नहीं होती।इसके ठीक विपरीत यह भी देखा गया है कि चींटी,दीमक आदि अपने लघु कलेवर के होते हुए इस स्तर के सुविधा-साधन जुटा लेते हैं कि आनंद भरा जीवन जिया जा सके।
  • हर रेत के कण के छोटे परमाणु में अजस्र शक्ति भरी होती है।यदि उसके विस्फोट का नियोजन किया जा सके,तो प्रतीत होगा,न कुछ देखने वाला सब कुछ स्तर की सशक्तता से भरा हुआ है,आवश्यकता मात्र प्रसुप्ति के जागरण भर की है।औसत आदमी का मात्र इतना ही नगण्य-सा स्तर जाग्रत रहता है,जिसमें कि वह पेट,परिवार की किसी प्रकार गाड़ी तो धकेलता रहे,पर जिनके अंतराल में सुनियोजित उच्च स्तर की महत्वाकांक्षाएं अपना ताना-बाना बुनती रहती हैं,वे इतने बड़े कार्य संपन्न कर लेते हैं,जिन्हें देखकर साथियों को आश्चर्यचकित रह जाना पड़े।बाह्यदृष्टि से एक जैसे लगने वाले व्यक्तियों के बीच भी जमीन-आसमान जितना अंतर पाया जाता है।यह अंतर कहीं बाहर से आ धमका हुआ नहीं होता,वरन व्यक्ति ने उसकी संरचना अपने हाथों से स्वयं ही की होती है।

3.अपने आपको परिष्कृत करें (Refine Yourself):

  • यदि स्वयं के निर्माण में जुटा जा सके,बुरी आदतों को कूड़ा-करकट की तरह बुहारा जा सके,दृष्टिकोण में मानवी गरिमा के अनुरूप मान्यताओं की स्थापना की जा सके,तो समझना चाहिए की साधारण मनुष्य (साधारण छात्र-छात्रा) के महामानव में बदल जाने जैसा कायाकल्प उपलब्ध होगा।यह शत प्रतिशत अपने हाथ की बात है।जो दूसरों को सुधारने और काबू में लाने की डींग हाँकते हैं,यदि वे अपनी कुटेबों तक को कड़ाई के साथ न धकेल सकें,तो समझना चाहिए कि मनुष्य की आकृति में ढला कोई गोबर का खिलौना मात्र ही अपने अस्तित्व का परिचय दे रहा है।स्वयं का निरीक्षण,स्वयं का सुधार,स्वयं का निर्माण,स्वयं का विकास का उपक्रम (प्रयास) अपनाए रहने पर वह आज नहीं तो कल-परसों अपनी सफलता घोषित ही करके रहेगा।
  • सेनापति भी आरम्भ में मामूली सिपाही की तरह भर्ती होता है,पर अधिकारी देखते रहते हैं कि इनमें से किन में व्यवस्था बुद्धि है।वह अनुपात,जिनमें जितना बढ़ा-चढ़ा पाया जाता है,वह उतनी ही भारी जिम्मेदारियां उठाता है और अपने कौशल के बल पर असंभव को संभव करके दिखा देता है।विजयी सेनाध्यक्षों में से प्रत्येक को इसी कसौटी पर खरा सिद्ध होना पड़ा है।वे गोरांवित इसी आधार पर होते रहते हैं।मिलों,फैक्ट्रियों,कारखानों,उद्योगों की प्राणशक्ति कुशल प्रबंधन संचालकों पर केंद्रित रहती है।उन्हीं की दूरदर्शिता से छोटे कारोबार बढ़कर आशातीत प्रगति का श्रेय पाते और अपने कौशल से हर किसी को अचम्भे में डालते हैं,शानदार संस्थाओं और आंदोलनों को छोटे शुभारंभ से आगे बढ़ाते हुए आशातीत सफलता अर्जित करके दिखाते हैं।वस्तुतः वे ही हैं,जो संपदा,यशस्विता,वरिष्ठता और सफलता के ढेर जमा करते हैं और दूसरों को यह बताते हैं कि यदि ऐसी ही प्रबंधशक्ति अर्जित की जा सके,तो अभावों और कठिनाइयों के बीच भी बहुत कुछ किया जा सकता है।
  • कंपनियों,विभिन्न विभागों,बैंकों (सरकारी तथा गैर सरकारी) में प्रबंधक का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है।अपनी इसी विशेषता (प्रबंधन) के कारण इंजीनियर बड़े-बड़े निर्माण कार्य संपन्न करते हैं।व्यवसायी छोटा-सा उद्योग खड़ा करके देखते-देखते धन कुबेर बनते हैं।विकृतियों से जूझने वाले और प्रगति के महत्त्वपूर्ण आधार खड़े करने में जो भी सफल हुए हैं,वे अपनी निजी साहसिकता और सुसम्बद्ध प्रबंधशक्ति का विकास करके ही ऐसा कुछ कर सके हैं,जिसे सराहनीय,अनुकरणीय,अभिनंदनीय कहा जा सके।
  • शक्ति,शक्ति है,उसे भले काम की तरह बुरे काम में भी लगाया जा सकता है।हिस्ट्रीशीटर,डकैत,आततायी,आतंकवादी और अनाचारी तक इसी विशेषता के आधार पर रोमांच खड़े कर सकने वाले दुष्कर्म कर सके हैं।अनीति का आचरण करते हुए भी अपने आतंक से दूर-दूर तक विपन्नता खड़े कर देने वाले अपराधी,तस्कर,लुटेरे और साइबर क्राइम करने वाले तक आप अपनी सफलता का ढिंढोरा पीटते समय कारण एक ही बताते हैं कि उन्होंने अपने आप को अपने ढांचे में अपने हाथों ढाला और व्यवस्था क्षेत्र में ऐसा कौशल दिखाया कि शांति और सुरक्षा के मजबूत आधारों को लड़खड़ा कर रख दिया।दुर्बल व्यक्तित्व और व्यवस्था बुद्धि से रहित मस्तिष्क तो मात्र अनुचर रहकर ही अपना श्रम बेचकर किसी प्रकार रोटी कमाते हैं।
  • महामानवों में से अधिकांश की जीवनगाथा यही बताती है कि अपनी प्रामाणिकता और प्रखरता के बल पर हर दिशा में संग्रह करते हुए न जाने कहां से चलकर कहां जा पहुंचे।मात्र अपने प्रभाव से दूसरों द्वारा ऐसे-ऐसे कृत्य करा लेने में सफल हुए,जिन्हें वे कदाचित स्वयं हाथ में लेते,तो न कर पाते।दिव्य क्षमताओं को अर्जित कर लेना और उनसे अनेकों की अस्तव्यस्तता को सुयोग्यता में बदल देना,यही महान कार्य है।स्वयं की सहायता की तरह दूसरों की सहायता करना भी नेक कार्य माना जाना चाहिए।साहसिकता और सुव्यवस्था के ही दो गुणों से जिस किसी को भी अभ्यस्त-अनुशासित किया जाए,समझना चाहिए कि उसकी सर्वतोमुखी प्रगति का द्वार किसी ने खोल दिया।भले उस अविज्ञात शक्तिपुंज का जय-जयकार,प्रशंसा कहीं ना होता हो।

4.कठिनाइयाँ हमें तराशने आती हैं (Difficulties come to carve us out):

  • मनुष्यों में से अधिकांश की आकृति-प्रकृति लगभग मिलती-जुलती है।उनका खाना-पीना,सोना-जागना आदि भी एक-सा ही होता है,फिर भी कोई जहां का तहाँ पड़ा रहता है,उल्टा गुणों की दृष्टि से घिसता-घटता देखा जाता है,किंतु साथ ही यह भी देखा गया है कि किसी की प्रतिभा उन्हीं साधन-अवसरों के रहते चौगुना-सौगुना अभिवृद्धि करती रही।वह उनका यश,प्रभाव और कौशल इतना बढ़ा देती है कि देखने वाले तक आश्चर्यचकित रह जाते हैं,साथ ही सहयोगियों की सेना भी अनायास ही खिंचती-घिसटती चली आती है।
  • वानर जाति के लोगों,वनवासियों को भगवान राम ने,ग्वाल-बालों को भगवान कृष्ण ने,भिक्षु-परिव्राजकों को महात्मा गौतम बुद्ध ने,सत्याग्रहियों की टोलियों को महात्मा गांधी ने संगठित,नियंत्रित और गठन करके आततायी,महाबलशाली रावण,कंस,जरासंध,कालयवन और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे।फूलों पर तितलियां और मधु-मक्खियां न जाने कहां-कहां से दौड़ती चली आती हैं।महामानवों के असुविधा भरे जीवन भी ऐसे ही आकर्षक होते हैं।उसी कष्टसाध्य परिपाटी को अपनाने के लिए अनेकानेक आतुर होते और कदम-से-कदम मिलाते आदर्शवादी संरचना के लिए प्रयास करते देखे गए हैं।
  • समय को देखते हुए अगणित पतन-पराभवों के निमित्त कारण आलस्य,विलासिता,अनुत्साह जैसे दुर्गुणों को प्रधानता दी जाती रही है।सौभाग्य के चमकते तारे की तरह निर्धारित कार्यक्रमों में तत्परता-तन्मयता के साथ जुट पड़ने की प्रवृत्ति भविष्य बिना हस्तरेखा देखे या ग्रह-गणित किए निस्संदेह उज्ज्वल होना घोषित किया जा सकता है।यह किसी के भी भाग्योदय की प्रथम किरण है।
  • दूसरा सोपान यह है कि उसकी व्यवस्था बुद्धि काम करे,अपने समय,श्रम,चिंतन एवं कौशल को उपयोगी कार्य में निरन्तर लगाए रहे,तो कहा जा सकता है कि रुग्णता और दरिद्रता में से एक भी उसके पास फटकने ना पाएगा।दीर्घजीवी प्रायः वही हुए हैं,जिन्होंने अपने आपको प्रचंड पुरुषार्थ के साथ सर्वदा नियोजित रखा।आलसी और प्रमादी तो जीवित रहते हुए भी मृतकों में गिने जाते हैं।
  • संसार में जितनी भव्यताएं दीख पड़ती हैं,वे मात्र साधनों के सहारे खड़ी नहीं हो गई,उनके पीछे किन्ही सर्जनशिल्पियों की मेधा ने ऐसा जादू-चमत्कार दिखाया कि प्रकट होने से पहले ही उसकी योजना बनाकर ढांचा खड़ा किया,उसमें प्रयुक्त होने वाले तारतम्य को बिठाया और फिर स्वप्नों को साकार बनाने में अपने आप को पूरी तरह खपा दिया।इसी प्रक्रिया का नाम सफलता है।उसे वरन करने के लिए किन्हीं दूसरों की मनुहार करने की जरूरत नहीं है।
  • यदि व्यक्ति अपनी समझ को क्रमशः तेज करता चले,क्रमशः अधिक बड़ी जिम्मेदारियां कंधों पर उठाता और उन्हें पूरी करता चले,तो समझना चाहिए कि इसी विकसित प्रबंध शक्ति के आधार पर वह जहां भी जाएगा,सरताज बनकर रहेगा।
    इतिहास साक्षी है,जिस किसी ने भी समय और समाज के प्रवाह को मोड़ा है,उन सबने अपने अंदर की पराक्रमजन्य प्रतिभा को जगाया और जन-जन के मन-मन में चिंगारी से ज्वाल-माल बन जाने की प्राण प्रेरणा भर दी है।ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं परंतु हमारी प्रतिभा में निखार तो तब आएगा जब हम स्वयं उठ खड़े होंगे और अपनी प्रतिभा को तराशने का काम करेंगे।

5.छात्र जीवन उठकर जागने का समय (Student Life:Time to Stand Up and Wake Up):

  • उठकर जागने का यह अद्भुत मंत्र है।छात्र जीवन पूरे जीवन काल की नींव होती है।इस मंत्र में छात्र जीवन को उठकर जागने के लिए क्यों कहा जा रहा है जरा इसे समझें।यों आमतौर पर छात्र-जीवन के अलावा अन्य जीवन काल या सामान्यतया हम सभी को यह कहा जाता है या यह सुना जाता है अथवा हम उपयोग करते हैं कि जागो फिर उठो।यानी जागने के बाद ही उठा जाता है।परंतु यहां छात्र जीवन के लिए यह मंत्र पहले उठने और फिर जागने के लिए विशिष्ट अर्थ में कहा जा रहा है।
  • इस मंत्र में जागने की जो बात कही जा रही है वह शारीरिक नींद से जागने वाला नहीं है।शारीरिक रूप से जागना तो एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसलिए जो कोई भी सोता है वह जागता भी है,खुद-ब-खुद ही जाग जाता है।
  • छात्र जीवन के इस मंत्र में उठने के बाद जागने की जो बात इसलिए कही जा रही है कि उठ जाने के बाद होश में आओ,विवेकपूर्वक जागो,दिवा स्वप्न में न रहो,जागकर भी सोए ना रहो,सोए-सोए काम मत करो,विवेकपूर्वक करो,होशपूर्वक करो और हितकारी ढंग से करो।एक सतर्कता (awareness) सदा बनी रहे,एक बोध सदा बना रहे और विवेक जागृत रहे यह मतलब है उठने के बाद जागने का।
  • छात्र जीवन के लिए यह बात कही जा रही है कि उठ खड़े होने का वक्त आ गया है,इस संदर्भ में यह महत्त्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य हो जाता है कि छात्र-छात्राएं न सिर्फ उठ खड़े हो बल्कि उठने के बाद जागें (होश) भी,होश भी संभाले ताकि हमारी प्रतिभा में निखार आ सके,प्रतिभा में लगी हुई जंग हट सके,सुप्त प्रतिभा जाग सके ताकि छात्र-छात्राएं प्रगति,उन्नति और विकास न केवल खुद का कर सकें,बल्कि दूसरों का,समाज का,परिवार का,देश का भी कर सकें।वरना सिर्फ उठ खड़े होने से भला होने वाला नहीं है।
  • सामान्य जीवनचर्या तो सभी लोग जीते हैं,परंतु छात्र जीवन ही ऐसा जीवन होता है जिसमें अपनी प्रतिभा को चमकाने,उभारने,तराशने,निखारने का समय होता है।छात्र-जीवन के बाद तो हम घर-गृहस्थी और सांसारिक प्रपंचों में इस तरह उलझ जाते हैं कि इस बारे में हमें सोचने की फुर्सत ही नहीं होती।परंतु नींव (छात्र-जीवन) सुदृढ़ हो,प्रतिभा जगी हुई हो तो पूरे जीवन हम जागी हुई,होशपूर्वक,बोधपूर्वक,सतर्कतापूर्वक बुद्धि से काम करने के अभ्यस्त हो जाते हैं।
  • यों आमतौर पर छात्र-छात्राओं में जोश तो अधिक होता है,होश या तो होता नहीं है या होश कम होता है फलतः युवावर्ग कोई भी कदम जोश से उठाते हैं और कुछ समय बाद ही उस कदम के अनुसार चल नहीं पाते हैं।कारण स्पष्ट है कि जोश के साथ होश नहीं है,जोश के साथ होशपूर्वक कदम नहीं उठाया गया था।छात्र जीवन को हम अक्सर होशपूर्वक नहीं मदहोश में होकर गुजारते हैं और उसका दंड पूरे जीवन भर भुगतते हैं।कोई भी कष्ट,कठिनाईयां आती है तो सहन नहीं कर पाते हैं,तीव्र प्रतिक्रिया देते हैं।साधारण जीवन जीते हैं,असाधारण जीवन नहीं जीते हैं।जब साधारण जीवन जीते हैं तो ऐसा असाधारण कार्य करने का तो प्रश्न ही नहीं उठता।इस गफलत को,इस मदहोशी को तोड़े और उठकर जागें।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रतिभा को परिष्कृत करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Refining Talent),प्रतिभा को उभारने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Unleash Talent) के बारे में बताया गया है।

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6.गणित में गणना कैसे करते हैं? (हास्य-व्यंग्य) (How Do You Do Calculations in Mathematics?) (Humour-Satire):

  • गणित शिक्षक:मनोज बताओ,गणित में गणना कैसे करते हैं?
  • मनोज:इसमें कौन-सी बड़ी बात है,किसी संख्या में कुछ भी जोड़ दो,घटा दो,गुणा कर दो,भाग दे दो,कुछ तो उत्तर आएगा ही।

7.प्रतिभा को परिष्कृत करने की 5 बेहतरीन टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 5 Best Tips for Refining Talent),प्रतिभा को उभारने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Unleash Talent) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.प्रतिभावान छात्रों की क्या विशेषताएँ हैं? (What are the characteristics of talented students?):

उत्तर:प्रतिभावान छात्र-छात्राएं कष्ट-कठिनाइयों से भरा जीवन जीते हैं।वे सुख-सुविधा की बात कभी नहीं सोचते और अंतिम सांस तक अपनी प्रतिभा को परिष्कृत करने की सोचते हैं ताकि उनका जीवन खुद के लिए,औरों के लिए,समाज के लिए व देश के लिए काम आ सके।महान गणितज्ञ महावीराचार्य,ब्रह्मगुप्त,आर्किमिडीज,आइंस्टीन,न्यूटन आदि कोई भी हों,सदा मानवता के कल्याण के लिए जिए और हमें अपनी बहुमूल्य विरासत सौंपकर विदा हुए,ताकि आने वाली पीढ़ी उस धरोहर से अभीष्ट प्रकाश,प्रेरणा ग्रहण कर उनके पद चिन्हों पर चल सके और उन्हीं के समान इतिहास के पन्नों में अमिट-अमर बन जाएं।

प्रश्न:2.युवाओं के लिए क्या संदेश है? (What is your message to young people?):

उत्तर:पर इसे क्या कहें,अपनी मूर्च्छना? समय का प्रतिकूल प्रवाह? दुर्भाग्य? या उस मिट्टी को दोष दें,जिसने संरचना तो गढ़ी,पर इतनी अनगढ़,जो आसन्न संकट में उठ जागने का सम्बल नहीं जुटा पा रही।कुछ भी हो हमें इस सन्निपात की स्थिति को त्याग कर आपत्तिकालीन घड़ी में किसी न किसी प्रकार जागना ही पड़ेगा जिससे हम स्वयं धन्य बन सके और अपनी पीढ़ी को भी निहाल बना सकें,ताकि आने वाली पीढियां हम पर यह लांछन न लगा सके कि हमने काहिली की जिंदगी जी।

प्रश्न:3.छात्र अपनी प्रतिभा को कैसे तराशे? (How do students hone their talents?):

उत्तर:उपाय एक ही है कि हम अपनी रुचि को जानें,प्रच्छन्न प्रतिभा को पहचानें और उसे तराश-खरादकर सुंदर-सुगढ़ बना लें,जिससे देखने-सुनने वालों का मन हुलसने लगे एवं संपर्क में आने वालों की भी इच्छा वैसा ही बनने की जग पड़े।आज जो प्रतिभाशाली हैं,वे कल तक मिट्टी में सने सोने की भांति थे।उन्होंने अपने को पहचाना,चमकाया तभी वे कसौटी पर सौ टंच खरे साबित हो सकें।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रतिभा को परिष्कृत करने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Refining Talent),प्रतिभा को उभारने की 5 बेहतरीन टिप्स (5 Best Tips for Unleash Talent) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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