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4Tips for Student to Speak Sweet Words

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1.छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4Tips for Student to Speak Sweet Words),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4 Tips for Speaking Sweet Words for Mathematics Students):

  • छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4Tips for Student to Speak Sweet Words) के आधार पर वे अपने जीवन को सुखी,समृद्ध एवं उन्नत कर सकेंगे।दूसरों को अपना बनाने के लिए छल-कपट से रहित मधुर वाणी ही सबसे उत्तम मार्ग तथा सशक्त उपाय है।इसी के माध्यम से हम लोगों को अपना बना सकते हैं और अपनेपन का विस्तार कर सकते हैं।
  • लेकिन मधुर वचन बोलना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि उसके अनुसार व्यवहार करना भी आवश्यक है।यदि मधुर वाणी के अनुरूप उचित व्यवहार नहीं करते हैं तो हमारी प्रमाणिकता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है।ऐसी वाणी प्रभावशाली नहीं होती है।इसलिए समाज में वचन,प्रतिज्ञा का बहुत महत्त्व व संकल्प का बहुत महत्त्व है।
  • लेकिन कठोर वचन,मर्मभेदी वाणी पत्थर की तरह कठोर होते हैं जो दूसरों के दिलों में अपनी जगह नहीं बना पाते हैं लेकिन अपने प्रहार से उनके अंतर्मन में ऐसे घाव अवश्य छोड़ देते हैं जिन्हें भर पाना संभव नहीं है।कठोर वचन के बजाय मधुर वाणी को श्रेष्ठ गया है भले ही मधुर वाणी के अनुसार व्यवहार न किया जाए।कहा भी गया है कि किसी को गुड़ न दे तो गुड़ जैसी बात तो करें।
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2.मधुर वाणी बोलें (Speak Sweet Words):

  • मधुर वाणी का उपयोग करके विद्यार्थी न केवल सुख-समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं बल्कि प्रगति और विकास भी कर सकते हैं।यदि आपको गणित में कोई सवाल व समस्या समझ में नहीं आ रहा है,कोई प्रश्न व थ्योरी समझ में नहीं आ रही है तो मधुर वाणी बोलने से आपके साथी व मित्र आपको बताने के लिए तत्काल तैयार हो जाते हैं।
  • जैसे:मित्र मुझे यह सवाल समझ में नहीं आ रहा है,जल्दी से मुझे सवाल व समस्याओं को समझा दो।मधुर वचन:मित्र आपने प्रश्नावली के सवाल हल कर लिए हों और आपके पास समय है तो तनिक मुझे भी समझा दो।
  • कौवा और कोयल के रूप-रंग में कोई फर्क नहीं होता है परंतु कोयल का बोलना सबको अच्छा लगता है जबकि कौवे की कांव-कांव कोई भी सुनना पसंद नहीं करता है।न कौवा किसी को कुछ दे देता है,न कोयल किसी को कुछ सौंप देती है।अप्रिय वाणी बोलने वाले फटकारने के लिए भी कहा जाता है कि जब देखो तब कांव-कांव बोलता रहता है।
  • प्रिय,हितकर तथा मीठी बोली सबको अच्छी लगती है।प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए सहयोग-समर्थन चाहता है और सहानुभूति की भी अपेक्षा करता है।हम भले किसी की सहयोग-सहायता न कर सकें परंतु सहानुभूति तो प्रकट कर ही सकते हैं।
  • प्रिय,हितकारी तथा मितभाषी वचन को वाणी का तप कहा गया है।प्रिय वचन बोलने का अर्थ न तो हाँ में हाँ मिलाना है और न चाटुकारिता अथवा चापलूसी ही है।चापलूसी तो अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए की जाती है और वह प्रायः असत्य बोलना या मिथ्या बोलने की सीमा में आ जाता है।स्वार्थ सिद्धि के लिए किसी की झूठी प्रशंसा करना वाणी का तप नहीं बल्कि वाग्जाल है।
  • वाणी में केवल जानकारी का आदान-प्रदान ही नहीं होता है,व्यक्तित्त्वों की विशेषताओं का भी परस्पर परिवर्तन होता है।सद्भाव-संपन्न व्यक्ति भले ही किसी को उपदेश न दें,उनके साधारण शब्दोच्चारण में भी जो मिठास,सौजन्य और सदुद्देश्य घुला रहता है,वह ऐसा हृदयस्पर्शी होता है कि उससे बहुत कुछ प्राप्त करते जाते हैं और वह ऐसा होता है जिससे उद्वेगों के समाधान में भारी योगदान मिलता है।श्रीमद्भगवद्गीता गीता के 17 वें अध्याय में कहा गया है:
  • “अनुद्वेगकरं वाक्यं सत्यं प्रियहितं च यत्।
    स्वाध्यायाभ्सनं चैव वाङ्मयं तप उच्यते”।।
  • अर्थात् जो सत्य वचन सुनने वाले प्राणियों के लिए क्लेश कर न होता हुआ,सुनने के समय में मिठास तथा परिणाम में सुखप्रद है,इस प्रकार के दूसरों को दुःख न देने वाले,सत्य,प्रिय और हितकारी वचनों का बोलना,वेदाभ्यास अथवा पुण्य स्त्रोतों का पाठ करना यह सब वाणी का तप कहा जाता है।
  • मधुर वाणी के द्वारा हम अपने विचारों व भावों को व्यक्त करते हैं।यदि प्रकट की गई मीठी बोली में विचार के लिए कोई भाव न जुड़ा हो तो उसका प्रभाव केवल बौद्धिक स्तर तक ही होता है।जैसे:गणित,विज्ञान इत्यादि के पाठ्यक्रमों को पढ़ने के लिए जो भी प्रयास किया जाता है वह विचारपरक होता है लेकिन यदि विचार के साथ भाव जुड़ा हो तो वह दिल की गहराइयों तक पहुंचता है।
  • रिश्तो का आधार बौद्धिक स्तर पर कम और भावनात्मक स्तर पर अधिक होता है।मधुर वाणी में जितना ही मिठास होता है तो हमारे संबंधों की नींव भी उतनी ही मजबूत व गहरी होती है और ऐसी स्थिति में रिश्तों में हम अपनापन महसूस करते हैं।लेकिन भाव यदि सकारात्मक के बजाय नकारात्मक हों,उनमें छल-कपट हो,झूठ,ईर्ष्या-द्वेष भरा हो तो ऐसे रिश्ते बनते तो हैं लेकिन उनमें शीघ्र ही दरार पड़ जाती है और उन्हें लंबे समय तक निभाना कठिन हो जाता है।

3.कड़वी वाणी के स्वरूप और प्रभाव (Nature and Effects of Bitter Speech):

  • कुछ विद्यार्थी तथा व्यक्ति खरी व कठोर बात कहकर निश्छल और स्पष्टवादी होने का दावा करते हैं।हमारे विचार से इस प्रकार का दावा मिथ्या आडम्बर है जो वास्तविकता के अज्ञान से उत्पन्न होता है।जब तक मन में कटुता नहीं होगी तब तक कटु अथवा अप्रिय वाणी बोलने वाले लोग सबके मन से उतरे रहते हैं।
  • वाणी मन का प्रतिबिम्ब होती है।अपने मन को निर्मल रखने के लिए अथवा मन की निर्मलता प्रमाणित करने के लिए हमें अपनी वाणी को निर्मल एवं प्रिय रखना ही पड़ेगा।
  • सब कार्य वाणी द्वारा नियंत्रित होते हैं।वाणी उनका मूल है।वाणी से उनकी उत्पत्ति होती है।जो व्यक्ति वाणी से ईमानदार नहीं,वह सब कामों में बेईमान होता है।वास्तविकता यही है कि अशिष्ट अथवा अशुभ वचन बोलना वाणी का दुरुपयोग है और वाणी का दुरुपयोग व्यक्ति के पराभव एवं पतन का कारण बन जाता है।
  • यह एक कठोर सत्य है कि कही हुई अप्रिय बात की चोट बहुत गहरी और स्थायी होती है।जिव्हा का घाव तलवार के घाव से अधिक बुरा होता है।तलवार शरीर पर चोट करती है और जिव्हा हृदय अथवा आत्मा पर।तलवार का घाव भर जाता है परंतु जीभ द्वारा किया गया घाव हमेशा हरा बना रहता है।कटु वाणी से बाणों की वर्षा करने के समान है।महाभारत-युद्ध के मूल में युवराज दुर्योधन को द्रौपदी द्वारा कहे गए कटु वचन “अन्धों के पुत्र अन्धे ही होते हैं” ही थे।इस कटु वचन व मर्मभेदी वाणी ने दुर्योधन को आहत कर दिया तथा उसके कारण वह प्रतिशोध व अपमान की ज्वाला में जलता रहा।
  • कटुवचन बोलना वाणी का दुरुपयोग है।वाणी का दुरुपयोग वस्तुतः पतन का कारण बनता है।अप्रिय वाणी बोलने वाला व्यक्ति प्रायः विवेक की स्थिति में अपने कृत्य पर पश्चाताप करता है और आत्म-ग्लानि में जलता रहता है।अपनी क्षति होने पर वह यही सोचता रहता है कि मैंने अमुक बात क्यों कह दी?
  • वाणी पर संयम न रखने से मनुष्य अपमान और तिरस्कार का पात्र बनता है।इस दुनिया में अधिकतर क्लेश-कलह व झगड़ों का कारण व्यक्ति की कटु वाणी है।क्रोध के समय वाणी का स्वर तेज व आक्रोश भरा होता है।

4.मधुर वाणी बोलने के उपाय (Ways to Speak Sweet Words):

  • विद्यार्थी तथा व्यक्ति की वाणी का स्वर कर्कश,कटु,चुभनेवाला हो सकता है लेकिन इन स्वरों को हितकारी बनाने के लिए साधना की जाती है और वह है मौन की साधना।मौन वाणी का संयम है।वाणी पर संयम करने के लिए शांत भाव से रहने की आवश्यकता है ताकि हम अपने कहे हुए शब्दों पर विचार करें,जो कहने वाले हैं उस पर सोचें और जो कह रहे हैं उसे भी सोच-समझकर कहने के लिए प्रस्तुत हों क्योंकि एक बार जो कह दिया है,उसे वापस नहीं लिया जा सकता है और उसका प्रभाव पड़ता है।
  • भाव सकारात्मक या नकारात्मक ये आते हमारे अन्दर से ही हैं और इन्हें समझकर तथा अपनी वाणी को सुधारकर हम अपने रिश्तों को टूटने से बचा सकते हैं।वाणी स्वयं की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है और इस अभिव्यक्ति से हम लोगों के दिलों पर आतंक या दहशत भी फैला सकते हैं।निर्णय हमें करना है कि हम क्या चाहते हैं? अच्छे मार्ग का चयन करना चाहते हैं या फिर ऐसे मार्ग पर जिस पर चलने से अंधकार के सिवा ओर कुछ हासिल नहीं हो सकता।अतः उचित यही है कि अपनी वाणी पर संयम रखें,गलती होने पर क्षमा-याचना करें और प्रतिकूल परिस्थितियों में मौन रहें,सहनशील बनें।
  • वचन और प्रतिज्ञा की जाती है उसे पूर्ण करने का प्रयास करें।वचन अर्थात् जो कह दिया है,जिसे निभाना पड़ता है इसलिए महत्त्वपूर्ण कार्यों,रस्मों आदि में वचन दिए जाते हैं ताकि मनुष्य उन्हें याद रखें और उन्हें निभाए।इसी तरह प्रतिज्ञा भी एक बंधन है,जिसमें बंधकर व्यक्ति जो भी करता है,वह करना ही है।संकल्प वह है,जिसे व्यक्ति स्वेच्छा से करने के लिए कटिबद्ध होता है।
  • वचन हमेशा दूसरों को दिया जाता है,प्रतिज्ञा स्वयं के लिए की जाती है और संकल्प किसी कार्य को पूरा करने के लिए लिए जाते हैं।
  • जैसे दशरथ ने कैकयी को दो वचन दिए थे।पितामह भीष्म ने आजीवन विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी और राज्य सिंहासन की सुरक्षा का दायित्व लिया था।तपस्वी भागीरथ ने गंगा को धरती पर लाने का संकल्प लिया था,जो अपना प्राणपण लगाकर पूरा किया था।
  • अपनी वाणी को तराशना,निखारना,सुधारना बहुत जरूरी है अन्यथा इसके इस्तेमाल से मनुष्य के मन को इतनी चोटें लगती है कि उसके घावों को पोंछना,ठीक करना मुश्किल हो जाता है।
  • इस बात पर विचार चिंतन करें कि ‘कटु-कर्कश शब्दों के साथ जुड़ी हुई दुर्भावना सबसे पहले बोलने वाले की हानि ही करती है।उग्र मनःस्थिति शरीर का सारा ढाँचा लड़खड़ाकर रख देती है।क्रोधी,ईर्ष्यालु,निंदक,छिद्रान्वेषी,निराश एवं पलायनवादी प्रकृति के मनुष्य दूसरों को भी चोट पहुंचाते हैं और खिन्न उद्विग्न करते हैं,पर सबसे अधिक हानि वे अपनी ही करते हैं।दुर्भावग्रस्त मनःस्थिति वाले व्यक्ति को देर-सबेर में शारीरिक और मानसिक रोगों का शिकार बनना ही पड़ता है।कहना न होगा कि व्यक्ति अपने और अपने समीपवर्ती लोगों के लिए अभिशाप ही सिद्ध होता है।

5.मधुर वाणी का दृष्टांत (An Example of Sweet Speech):

  • कटुवाणी बोलने वालों को अन्ततः धिक्कार एवं लानत ही सहनी पड़ती है।गणित का एक विद्यार्थी था वह गणित में कमजोर था।उसने कॉलेज के गणित विद्यार्थी से कहा कि मैं आपके साथ पढ़ना चाहता हूं।मुझे कोई समस्या आई तो आपसे पूछ लूंगा।
  • काॅलेज विद्यार्थी ने कहा कि खुशी से आजाइए और अध्ययन कीजिए।आपके लिए यह टेबल-स्टूल है।मैं परीक्षा की तैयारी में उलझा हुआ हूँ।अतः याद रखिए कोई कड़वी वाणी मुँह से मत निकालिए।
  • विद्यार्थी एक-दो दिन तो मन लगाकर पढ़ता रहा परन्तु दो दिन बाद ही उसे पढ़ने में बोरियत होने लगी।उसने बोरियत दूर करने के लिए काॅलेज विद्यार्थी के हालचाल पूछे तथा बातचीत करने के उपक्रम से काॅलेज विद्यार्थी को अपने पास बिठा लिया।
  • विद्यार्थी ने कहा कि आप अकेले ही पढ़ते हैं।आपको भी गणित में कठिन सवालों और समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा।पर कदाचित आपसे जो सवाल व समस्याएँ हल नहीं होती हैं वे ही परीक्षा में आ गई और आप परीक्षा में असफल हो गए तो आप पर क्या बीतेगी? विद्यार्थी अपनी आदत से मजबूर था,उसे अशुभ वाणी बोलें बिना चैन कैसे मिलता?
  • कॉलेज विद्यार्थी ने उस विद्यार्थी से कहा कि मेरे पर तो गुजरेगी वह मैं भुगत लूँगा पर तुम इसी समय अपनी पुस्तकें लेकर यहाँ से विदा हो जाओ।
  • सुबह का समय था विद्यार्थी के बाल अस्त-व्यस्त थे।कपड़े भी ठीक से नहीं पहन रखे थे।किताबें भी बेतरतीब थी।उसने किताबों को बिना समेटे ही हाथ में लेकर और चल पड़ा।बाहर रास्ते में उसके साथी मिले।उन्होंने उसकी यह हालत (बिगड़ी हुई) देखकर पूछा।ऐसे कैसे,अस्त-व्यस्त तरीके से जा रहे हो।बालों में कंघी नहीं कर रखी,कपड़े ठीक से पहने हुए नहीं है।किताबों को भी सही से समेटकर,व्यवस्थित नहीं कर रखा है।
  • विद्यार्थी ने कहा यह मेरी अशुभ और कटु वाणी का फल है,जिसकी वजह से मैं बिगड़ी हुई दशा में,अस्त-व्यस्त दशा में जा रहा हूं।मेरी हालत ही मेरी वाणी को बताने के लिए पर्याप्त है।
  • जिव्हा को मौन एवं उपवास के अभ्यास से संयमित किया जाता है।उपवास का प्रभाव शरीर पर तथा मौन का मन पर पड़ता है।इससे शरीरबल,मनोबल दोनों समर्थ बनते हैं।जिव्हा के बाद जननेन्द्रियों को दस इन्द्रियों में प्रमुख माना गया है।इसका मनोगत लिप्सा से सीधा सम्बन्ध है।ब्रह्मचर्य का पालन करके जीवनी शक्ति के भण्डार की रक्षा की जाती है।जननेन्द्रियों के दुरुपयोग के माध्यम से मानसिक उत्तेजना का परिचय भर मिलता है जो कामुकता के रूप में मन में जन्म लेती है।ब्रह्मचर्य की महत्ता इसलिए बताई गई है ताकि शरीरगत जीवनी शक्ति और मनोगत प्रतिभा शक्ति का क्षय बचाया जा सके।यह पूँजी व्यक्तित्त्व को भौतिक और आत्मिक जगत में समान रूप से सुविकसित बनाने में सहायक सिद्ध होती है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4Tips for Student to Speak Sweet Words),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4 Tips for Speaking Sweet Words for Mathematics Students) के बारे में बताया गया है।

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6.शरारती गणित का छात्र (हास्य-व्यंग्य) (Naughty Math Student) (Humour-Satire):

  • शरारती गणित का छात्र (पिताजी से):जब मैं गणित की क्लास अटेंड करने जाता हूं तो मुझे देखकर छात्र-छात्राएं एवं गणित अध्यापक जी खड़े हो जाते हैं।
  • पिताजी:ऐसा क्यों?
  • शरारती गणित का छात्र:छात्र-छात्राएं मेरी शिकायत करने के लिए और गणित अध्यापक जी मुझे पीटने के लिए।

7.छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4Tips for Student to Speak Sweet Words),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4 Tips for Speaking Sweet Words for Mathematics Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मितभाषी से क्या तात्पर्य है? (What Does It Mean to Be Reticent?):

उत्तर:कम से कम बोलना।अपने विचारों को कम से कम शब्दों में प्रकट कर देना।इसका सबसे अच्छा उदाहरण है संस्कृत भाषा।संस्कृत व वेदों में मंत्रों व श्लोकों को पढ़ने वालों को यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि ऋषियों ने बहुत ही गूढ़ व विस्तृत ज्ञान को अपने संक्षिप्त मंत्र व श्लोकों में समेटकर प्रस्तुत कर दिया है।

प्रश्न:2.मृदुभाषी का क्या तात्पर्य है? (What Does Soft-spoken Mean?):

उत्तर:सरल व प्रिय बोलना।जो दूसरों को आसानी से समझ में आ जाए और कानों को सुनने में अच्छा लगे।

प्रश्न:2.मृदुभाषी का क्या तात्पर्य है? (What Does Soft-spoken Mean?):

उत्तर:सरल व प्रिय बोलना।जो दूसरों को आसानी से समझ में आ जाए और कानों को सुनने में अच्छा लगे।
प्रश्न:3.हितभाषी का क्या तात्पर्य है? (What Does It Mean to Be Interested?):
उत्तर:ऐसी वाणी बोलना जिससे किसी भी व्यक्ति का अहित न हो।इसका उदाहरण गौतम बुद्ध की वाणी है।महात्मा बुद्ध ने कभी भी किसी के लिए अप्रिय शब्दावली का प्रयोग नहीं किया।उनकी वाणी सदैव करुणा से ओतप्रोत रही।उन्होंने मानवता के हित के लिए समाज को उपदेश दिए,जो कि आज भी उपलब्ध है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4Tips for Student to Speak Sweet Words),गणित के छात्र-छात्राओं के लिए मधुर वाणी बोलने की 4 टिप्स (4 Tips for Speaking Sweet Words for Mathematics Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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