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4 Top Tips to Adopt Human Values

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1.मानवीय मूल्यों को धारण करने की 4 टाॅप टिप्स (4 Top Tips to Adopt Human Values),मानवीय मूल्यों को क्यों धारण करें? (Why Adopt Human Values?):

  • मानवीय मूल्यों को धारण करने की 4 टाॅप टिप्स (4 Top Tips to Adopt Human Values) के आधार पर आप जान सकेंगे कि मानवीय मूल्यों को धारण करने की महत्ता क्या है?
  • वर्तमान युग में कई युवा मानवीय मूल्यों को धारण करने को रूढ़िवादी,दकियानूसी और पुरानी (out of date),बासी कहकर त्याज समझते हैं और ऐसा कहकर अपने आपको आधुनिक और प्रगतिशील समझते हैं।
  • ऐसा करना उचित नहीं है बल्कि मानवीय मूल्यों को विवेक की कसौटी पर जाँचें और परीक्षा करके ही त्याज्य या ग्राह्य समझना चाहिए सिर्फ पूर्वाग्रह और हठवादिता के आधार पर निर्णय करना हानिकारक है।
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2.मानवता की पहचान (Identifying Humanity):

  • “येषां न विद्या न तपो न दानं
    न चापिशीलं न गुणो न धर्मः
    ते मर्त्यलोके भूविभारभूता
    मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।”(चाणक्य नीति)
  • अर्थात् जिन मनुष्यों के पास न विद्या है,न तप है,न दानशीलता है,न शील है,न गुण हैं,न धर्म है,ऐसे मनुष्य इस पृथ्वी पर भार-रूप पशु ही है जो मनुष्य के रूप में विचारा करते हैं। (अर्थात् उनका मनुष्य होना व्यर्थ रहता है।)
  • और भी कहा है कि:
    “धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोअपि न विद्यते।
    जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलं।। (चाणक्य नीति)
  • अर्थात् जिस मनुष्य ने अपने जीवनकाल में धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में से एक को भी आचरण करके प्राप्त नहीं किया उसने बार-बार मनुष्य योनि में जन्म लेकर सिर्फ मरने का ही काम किया अन्य कोई लाभ न लिया।
  • मनु का वंशज-मानव उनके उच्चादर्शों का मूर्तरूप,उनके जीवन मूल्यों का नूतन दृष्टिकोण,उनके शील का सागर और उनके गौरव का उच्च शिखर।यह है मानव की परिकल्पना जो मानवीय मूल्यों से अभिलषित,उद्वेलित और तरंगित हो,जिसमें संवेदनाओं की गहराई हो,जीवनादर्शों के लिए छटपटाहट हो,जिसमें करुणा की कोमल मंदाकिनी बहती हो,जिसमें प्रेम की अशेष मंगलमयी तरंगे प्रवाहित हो,जिसमें संघर्ष की अमिट अदम्य महत्वाकांक्षा हो,त्याग का बल हो,तपस्या का वैभव हो,जागतिक उद्भावनाओं का उद्घोष हो,विश्वात्मा की दिव्य किरण का अभियान-संकल्प हो।यह है मानव का मानदंड और यही है मानवता की सीमा।
  • इसके पीछे की स्थिति है पशुता,जिसमें पशु प्रवृत्ति हो,जो पेट की समस्या तक सीमित रहता हो,योनि-संगम तक क्रियाशील रहता हो,जिसमें हिंसात्मक प्रवृत्तियाँ जाग्रत हों,अमंगल का झटका आता हो,स्वार्थ की दुर्गंध बसती हो और जिसमें परवशता की भावना सोती हो,जिसमें क्रूरता की आग जलती हो,अज्ञान का दम्भ पलता हो।इसके बाद प्रारंभ होती है मानवता की राह और मानवता अपनी मंजिल की तलाश करती है।विश्व में जागरण का संदेश देती है और सारे प्राणी जगत् को अपने परिवेश में बाँधती है।
  • विशिष्ट गुणों के कारण मानव भगवान की सर्वश्रेष्ठ कृति है,जिसे मानवीय मूल्य कहा जाता है।यथा-मानवता,दया-प्रेम,धर्माचरण,परोपकार,अहिंसा,करुणा,तप-
  • त्याग,विद्या,दानशीलता,सद्विवेक,चेतना,चिंतन,राष्ट्रप्रेम,सद्भावना,सद्गुण,सच्चचरित्रता,आत्मबल तथा निर्भयता।
  • खलील जिब्रान ने ठीक ही कहा है कि-“मानवता प्रकाश की वह नदी है,जो सीमित से असीम की ओर बढ़ती है।” अर्थात् अनन्त में सांत का पर्यवसान मानवता का वास्तविक प्रमाण या उसकी वास्तविकता की पहचान है।
  • मनोविज्ञान की दृष्टि से चेतना पत्थर में सोती है,वनस्पति में जगती है,पशु में चलती है और मनुष्य में चिंतन करती है।अतः चिंतन करना मानवता की पहचान है।
  • कभी-कभी मानव अपने दुराचरण द्वारा पशु को भी पीछे छोड़ जाता है।यथा रिश्वत,चोरी,हत्या,भ्रष्टाचार और बड़े से बड़ा पाप कर्म मनुष्य में पाशविकता के लक्षण उपलब्ध रहते हैं और उनके संपर्क में रहने वाले पशुओं में मानवीय गुणों का विकास होता रहता है।इसका तात्पर्य यह है कि मानव देवत्व और पशुत्व के बीच की कड़ी है।वह पाशविक गुणों के उन्नयन द्वारा मनुष्य रूप को प्राप्त होता है और माननीय गुणों का विकास करके पूर्ण मानवता अथवा देवत्व की ओर अग्रसर होता है।

3.मानवता और पशुता में अन्तर (Difference between humanity and animality):

  • राष्ट्रीयता की भावना मनुष्य की सर्वोपरि भावना है।जिस मनुष्य में राष्ट्रप्रेम नहीं है,वह पशु नहीं तो और क्या है? तभी तो किसी ने कहा है-“जिसमें न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है,वह नर नहीं है पशु निरा है और मृतक समान है।”
  • अहिंसा भी मानवीय मूल्यों के अन्तर्गत आती है।जीवों पर दया करना मानव का परम कर्त्तव्य है।तभी तो ऋषि ने कहा है-“अहिंसा परमो धर्म:” जो मानव हिंसा करता है वह हिंसक पशु से कम नहीं है।माँसाहारी अपने शरीर को कब्रिस्तान बना लेता है।
  • धर्माचरण मानव को देवत्व प्रदान करता है।सभी धर्मों के प्रति समान प्रेम और आचरण करना मनुष्यता को प्राप्त करना है।मानव जीवन को साकार बनाने में केवल जनन और भरण-पोषण करना ही नहीं है,क्योंकि पशु भी ऐसा करता है।बल्कि मानव को ‘जीओ और जीने दो” की अवधारणा से अभिभूत होना चाहिए।उसमें परोपकार की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए।
  • किसी कवि ने कहा है कि-“वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे।”मनुष्य और पशु में यदि कोई अन्तर है तो यह है कि पशु परहित की भावना से शून्य होता है।मानव का उद्देश्य और मानव जीवन की सार्थकता केवल इसी में है कि वह अपने कल्याण के साथ दूसरों के कल्याण की भी सोचे।स्वयं उठे और दूसरों को भी उठाए।आर्त्त और दीन की करुणाभरी पुकार से,बड़ी-बड़ी आँखों में छलकते हुए आँसुओं से,अशक्त और असहाय की याचनापूर्ण करुणा की दृष्टि से,जिसका हृदय द्रवीभूत न हुआ,तृषित और भूखों को अपने भूखे पेट पर हाथ फिराते हुए देखकर जिसने अपने सामने रखा हुआ भोजन नहीं दे दिया,अपने पड़ोसी के घर में लगती हुई आग को देखकर जो उसकी रक्षा के लिए एकदम न कुद पड़ा,दमकती हुई चुनरी और सुहाग भरी चूड़ियों को उभरते और फूटते देखकर जिसका हृदय विदीर्ण ना हुआ,नदी की निष्ठुरता के कारण बहते हुए शिशुओं और रोती हुई माताओं को देखकर उनकी प्राण रक्षा के लिए जो सहसा जलराशि में न कूद पड़ा,वह नर नहीं,पशु है।
  • दया,करुणा और प्रेम से रहित व्यक्ति पशु समान है।सच्चरित्र और सद्भावना मनुष्यता को बुलावा देते हैं।सद्गुण और आत्मबल से युक्त व्यक्ति निर्भयता की ओर बढ़ता है तथा व्यक्तित्व की चोटी पर पहुंचता है।”कीर्तिर्यस्य स जीवति।”कीर्तिहीन व्यक्ति पशु समान है।अनुशासनहीनता तथा स्वछन्दता भी पशुता की श्रेणी में ही आते हैं।
  • मानवीय मूल्यों से अलग मानव की कल्पना नहीं,पशु की कल्पना है,पशुता की कल्पना है।मानव,मानव तब बनता है,जब पशुता को धो देता है।स्वयं विमल-अमल बन जाता है।मानव वह होता है जो इतिहास का अंग बनता है और इतिहास गढ़ता है।पशु मानव इतिहास का एक छोटा कंकड़ है,लेकिन मानव महानताओं का महाकाव्य है।वह सृजन का अंग है,साथ ही साथ सृष्टिकर्ता का सहयोगी भी है।
  • पशुता का कूप संकुचित रह जाता है,लेकिन मानव झील की गहराई में उतरता है।अशेष  सागर की विशालता में तैरता है और असीम आकाश में उड़ता है।मानवता की दौड़ ब्रह्मांड तक है,लेकिन पशुता की दौड़ एक संकुचित घेरेबंदी में है।मानवीय मूल्यों में प्रेम,दया,करुणा,धर्माचरण,परोपकार-
  • प्रियता,सहानुभूति,सेवा,सद्भावना,संवेग,अभिलाषा,शील,सदाचार,संघर्षशीलता,यशप्रियता,मंगलाचरण,दिव्यात्मा की खोज और नित्य नूतन आकांक्षाओं का परिकल्प,रचना का नियमन,रचनात्मकता की प्रयोग-धर्मिता,विलक्षणता और विचक्षणता आदि आते हैं।यदि मानव ने मानवता की पड़ाव में इन मूल्यों का अंगीकरण नहीं किया,तो वह मानव नहीं,उसका सीमांकन पशुता के भीतर होगा।
  • मानव ही एक ऐसा प्राणी है जो अपना सिर सीधा रखता है।अतएव मानव वह है जो कोई ऐसा काम न करें,जिससे उसका सिर नीचा हो।इसी प्रकार हाथों द्वारा स्वतंत्र रूप से कार्य करने का वरदान भी मानव को ही प्राप्त है।परोपकार द्वारा वह इस वरदान को सार्थक करे।
  • मानवीय मूल्य मानवता की प्राणवायु है उनके अभाव में मानव सर्वथा निर्जीव हो जाएगा।

4.छात्र-छात्राओं के लिए मानवीय मूल्यों का महत्त्व (Importance of human values for Students):

  • यदि छात्र-छात्राएं मानवीय मूल्यों देशभक्ति,उत्तम चरित्र,धर्म,अहिंसा,एकता,सहयोग,समन्वय,सहिष्णुता,परोपकार आदि को धारण नहीं करेंगे तो अन्ततः हमें ही नुकसान उठाना पड़ेगा।
  • छात्र-छात्राएं केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति करके आगे नहीं बढ़ सकते हैं।आज द्रुतगति से उन्नति,विकास तभी सम्भव है जब हम एक-दूसरे का सहयोग करें,आपस में भाईचारा रखें,एक-दूसरे से प्रेमभाव रखें तथा दूसरों की उन्नति देखकर ईर्ष्या-द्वेष की भावना न रखें।
  • यदि आपके सामने गणित या अन्य विषयों में कोई परेशानी आती है,समस्या आती है तो आप यह भावना रखते हैं कि हम स्कूल फीस चुकाते हैं अतः सभी समस्याएँ अथवा आनेवाली रुकावटों का समाधान बताना शिक्षक का दायित्व है।दरअसल शिक्षक हरेक छात्र-छात्रा की समस्याओं को बता नहीं सकता है।इसीलिए आप अपनी समस्याओं को मित्रों,साथियों के साथ मिल-बैठकर हल करते हैं।आप अपने सहपाठियों,मित्रों से कुछ पूछते हैं तो अपने से कमजोर छात्र-छात्राओं की समस्याओं को आपको भी हल करना होता है।
  • कदम-कदम पर छात्र-छात्राओं को आपसी सहयोग,सहिष्णुता,भाईचारा,प्रेमभाव रखकर आगे बढ़ने का रास्ता खोजते हैं।यदि आप रौब-दाब,प्रभाव तथा दाब-दबाव से दूसरों छात्र-छात्राओं से पूछते हैं और आपके डर के मारे वे बताते भी हैं तो आप अपने आगे बढ़ने का रास्ता खुद बन्द कर लेते हैं।क्योंकि आपसे भी समर्थ और शक्तिशाली दुनिया में मौजूद हैं।आप किस-किस से रौब-दाब व प्रभाव के बलबूते पर दूसरों से काम करवा सकते हैं।
  • अवरोधों,खतरों,रुकावटों को हल करने के लिए मानवीय गुणों के द्वारा ही आगे बढ़ने का रास्ता उचित,शुभ,कल्याणकारी हो।इतिहास उठाकर देख लें कि जरासंध,कंस,कालयवन,हिटलर जैसे अहंकारी व्यक्तियों का अन्त कितना बुरा हुआ है।आज उन्हें लोग उनके दुष्कर्मों के कारण याद करते हैं,न कि सत्कर्मों के कारण।फैसला हमें,आपको करना है कि हमें कौनसा मार्ग चुनना है मानवता का या पशुता का।
  • जैसा निर्णय करेंगे,जिस रास्ते पर चलेंगे,शुभ या अशुभ उसके परिणाम भी हमें ही भुगतने पड़ेंगे,हमारी एवज में कोई दूसरा परिणाम भुगतने के लिए नहीं आ सकता है।जैसे हम अनुत्तीर्ण हो जाते हैं तो माता-पिता,सम्बन्धियों तथा अन्य लोगों द्वारा निन्दा,भर्त्सना,कटुक्तियाँ हमें ही सुननी पड़ती है,हमारी एवज में कोई और सुनने नहीं आएगा।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में मानवीय मूल्यों को धारण करने की 4 टाॅप टिप्स (4 Top Tips to Adopt Human Values),मानवीय मूल्यों को क्यों धारण करें? (Why Adopt Human Values?) के बारे में बताया गया है।

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5.शिक्षक को बाहर जाने की इजाजत (हास्य-व्यंग्य) (Permission to Go out) (Humour-Satire):

  • छात्र (शिक्षक से):मैं इतना बड़ा कब होऊँगा कि कहीं बाहर जाने की इजाजत के लिए प्रिंसीपल मैम से नहीं पूछना पड़ेगा।
  • शिक्षक (छात्र से):इतना बड़ा तो मैं खुद नहीं हुआ जो प्रिंसीपल मैम से बिना पूछे बाहर जा सकता हूँ।

6.मानवीय मूल्यों को धारण करने की 4 टाॅप टिप्स (Frequently Asked Questions Related to 4 Top Tips to Adopt Human Values),मानवीय मूल्यों को क्यों धारण करें? (Why Adopt Human Values?) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.मनुष्य और पशु में क्या समानता व भिन्नता है? (What are the similarities and differences between man and beast?):

उत्तर:आहार (भूख लगना),सोना (निद्रा),डरना (भय),कामवासना (सन्तान उत्पत्ति करना) ये चारों प्रवृत्तियाँ मनुष्य और पशु में समान है।दोनों में फर्क यह है कि मनुष्य में अपने कर्त्तव्य के पालन,धर्म का पालन का विवेक होता है,पशु में नहीं होता।यदि यह फर्क न हो तो मनुष्य और पशु एक समान हैं।

प्रश्न:2.सर्वश्रेष्ठ धन क्या है? (What is the Best Money?):

उत्तर:सभी धनों में विद्या सर्वश्रेष्ठ धन है क्योंकि यह अमूल्य है,नाशहीन है और किसी के द्वारा कभी चुराई नहीं जा सकती।जो विद्या विनयशीलता प्रदान करे वही विद्या है अन्यथा अविद्या है।

प्रश्न:3.सहयोग का क्या महत्त्व है? (What is the importance of cooperation?):

उत्तर:अपने से श्रेष्ठ,उत्तम और बड़े के सहयोग,सहायता से मुश्किल और छोटा कार्य भी सिद्ध किया जा सकता है।जैसे बड़ी नदी से मिली पहाड़ी नदी भी समुद्र तक पहुँच जाती है।नेत्रों वाला मनुष्य भी अँधेरे में बिना दीपक के कुछ नहीं कर सकता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा मानवीय मूल्यों को धारण करने की 4 टाॅप टिप्स (4 Top Tips to Adopt Human Values),मानवीय मूल्यों को क्यों धारण करें? (Why Adopt Human Values?) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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