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4 Tips for Students to Disagree

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1.छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree),छात्र-छात्राओं द्वारा विरोध प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips to Protest by Students):

  • छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree) के आधार पर वे अपनी जायज बातों को ठीक प्रकार से रख सकेंगे।प्रत्येक व्यक्ति का अंतःकरण मन,बुद्धि,अहंकार और चित्त से निर्मित होता है।जब छात्र-छात्राओं के अहम को चोट पहुंचती है तो वे विरोध प्रकट करते हैं।कई बार यह विरोध अनुशासनहीनता,क्रोध,तोड़फोड़,विध्वंस जैसी नकारात्मक प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट होता है।इस प्रकार से विरोध प्रकट करना अनुचित हो जाता है भले ही उनका पक्ष सही हो,उनकी मांग जायज हो।
  • छात्र-छात्राओं में जोश तो होता है परंतु होश की कमी होती है।यदि वे जोश के साथ होश भी रखें तो अपनी युवाशक्ति का प्रयोग विकास,उन्नति तथा आत्मोन्नति में कर सकते हैं।
  • हर व्यक्ति अपने आपको बुद्धिमान समझता है और समझना भी चाहिए।इसी प्रकार छात्र-छात्राएं भी अपने आपको बुद्धिमान समझते हैं।परंतु यहां वे यह भूल कर बैठते हैं कि वे दूसरों को मूर्ख समझने लगते हैं।यदि सभी व्यक्ति अपने आपको बुद्धिहीन,मूर्ख समझने लगे तो दुनिया में इतने आविष्कार,खोजें तथा नई-नई तकनीक कैसे संभव हो पाएगी?
  • यदि हर छात्र-छात्रा यह समझे कि इस दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति अद्वितीय है तथा प्रत्येक का दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न होता है।किसी भी मामले में हर व्यक्ति का भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण होता है याकि हो सकता है।अतः किसी भी मामले में दूसरे के दृष्टिकोण को भी अहमियत देनी चाहिए,दूसरे के दृष्टिकोण को भी समझना चाहिए।
  • छात्र-छात्राओं का विरोध कई बातों को लेकर हो सकता है।जैसे शिक्षक द्वारा ठीक से न पढ़ाना,शिक्षा संस्थानों में पानी,शौचालय इत्यादि आवश्यक सुविधाओं का अभाव होना,छात्र-छात्राओं से ट्यूशन फीस वसूलने में मनमानी करना,किसी विषय के अध्यापक की अनुपस्थिति,छात्र-छात्राओं को पढ़ाने में भेदभाव करना इत्यादि अथवा अन्य ओर भी कारण हो सकते हैं।
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2.अपना विरोध अनुशासित तरीके से करें (Protest in a disciplined manner):

  • छात्र-छात्राओं को चाहिए कि अपनी असहमति,विरोध अनुशासन तथा संयत होकर करें। यानि अपनी सीमाओं तथा मर्यादाओं का ध्यान रखें।हालांकि छात्र-छात्राओं में इतना विवेक नहीं होता है कि वे भले-बुरे की पहचान कर सकें।परन्तु विद्यार्थी काल ही तो ऐसा समय होता है जिसमें उनमें विवेक जाग्रत हो सकता है।भले-बुरे,उचित-अनुचित,शुभ-अशुभ की पहचान करने के लिए ही शिक्षा अर्जित की जाती है।
  • किसी भी व्यक्ति पर साथ-संगति,वातावरण और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव पड़ता है।यदि छात्र-छात्राएं मूर्ख,दुर्जन,उद्दण्ड,अनुशासनहीन और अहंकारी लोगों (छात्र-छात्राओं) के संपर्क में रहेंगे तो वैसे ही बन जाएंगे।युवाकाल अपरिपक्व अवस्था होती है।इस अवस्था में जिस प्रकार के लोगों के साथ रहेंगे वैसा ही विद्यार्थी का आचरण बन जाएगा।
    यदि छात्र-छात्राएं अच्छे,नैतिक,सदाचारी,अनुशासन प्रिय लोगों के साथ रहेंगे तो वैसे ही बनने की कोशिश करेंगे।
  • वस्तुतः बहुत से छात्र-छात्राएं तर्क ज्यादा करते हैं, अपने आपको ज्ञानी और बुद्धिमान समझते हैं। बड़ों के सदुपदेश,नीति-नियम की बातों की खिल्ली उड़ाते हैं।वे अपनी जायज मांगों को भी तोड़फोड़,हड़ताल करके,उद्दण्ड तरीके से रखते हैं। इस प्रकार उनकी मांगे जायज होती हुई भी नहीं मानी जाती है।उग्र और विद्रोही तरीके से वे अपनी माँगे मनवाना चाहते हैं और इसमें असफल होने पर गलत रास्ते की तरफ भटक जाते हैं।
  • ऐसे छात्र-छात्राएं अनुशासनहीन हो जाते हैं।फिर वे चोरी करना,परीक्षा में नकल करना,परीक्षा में अनुचित तरीके अपनाना,बिना टिकट यात्रा करना,हड़ताल करना,बसे जलाना,अध्यापकों से दुर्व्यवहार करना,रैगिंग के नाम पर गुंडागर्दी करना,यौन संबंधी कार्यों में लिप्त होना इत्यादि कार्यों को जायज मानते हैं।

3.अच्छी आदतों का निर्माण करें (Build good habits):

  • अपना विरोध,अपना पक्ष तथा असहमति को शिष्टाचार से भी प्रस्तुत किया जा सकता है।यह ठीक बात है कि आधुनिक शिक्षा में चरित्र का निर्माण करना,संस्कारों का निर्माण करना,नैतिक बातें सीखना इत्यादि कार्यों का अभाव है।शिक्षा संस्थानों में पाठ्यक्रम पूर्ण कराने में जिस प्रकार रुचि ली जाती है उसी प्रकार चरित्र निर्माण में रूचि ली जाए तो छात्र-छात्राएं गलत दिशा में नहीं भटकेंगे।
  • आधुनिक शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार में अंतर है।अध्यापक छात्र-छात्राओं को कहते हैं कि उन्हें बीड़ी-सिगरेट,मद्यपान इत्यादि नहीं करना चाहिए और स्वयं वैसा ही करते हैं।छात्र-छात्राएं अध्यापकों तथा बड़ों में दुराचरण,बुरी आदतें देखते हैं वे भी वैसा ही करने का प्रयास करते हैं।
  • परंतु इसका दूसरा पक्ष भी है ऐसे कर्मठ,समर्पित,सदाचार युक्त शिक्षक भी मिल जाएंगे जिनसे छात्र-छात्राएं अच्छी बातें सीख सकते हैं।हालांकि ऐसे शिक्षक कम है परंतु हैं अवश्य।साथ ही छात्र-छात्राओं के सीखने के आधुनिक युग में अनेक स्रोत हैं।
  • माता-पिता,बड़ों तथा सदाचारयुक्त व्यक्तियों को देखकर अच्छी बातों,अच्छे संस्कारों को सीख सकते हैं।इस दुनिया में दोनों पक्ष हैं:भला और बुरा।आप जिस पक्ष को पकड़ कर चलेंगे उसी पक्ष के लोग आपसे जुड़ते जाएंगे।अब यह आप पर निर्भर है कि किस पक्ष को पकड़कर चलते हैं।
  • यदि आपको गणित शिक्षक अथवा अन्य शिक्षक ठीक से नहीं पढ़ाता है तो इसकी शिकायत आप प्रधानाध्यापक से भी कर सकते हैं।यदि प्रधानाध्यापक जी भी आपकी बात पर ध्यान नहीं देते हैं तो अपने माता-पिता,समाज के संभ्रांत,प्रतिष्ठित व्यक्तियों को कह सकते हैं।इसके अलावा शिक्षा अधिकारी,जिलाधिकारी को अपनी बात पहुंचाई जा सकती है।इनमें कोई एक भी व्यक्ति सही मिल जाएगा तो आपकी बात को गौर से सुनेगा भी,कार्यवाही भी करेगा।लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि आप अपने आपमें अच्छी आदतों का निर्माण करें,ठीक ढंग से अपनी असहमति को प्रस्तुत करना सीखे।

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4.अपने अधिकारों के साथ कर्त्तव्यों को न भूलें (Don’t forget your duties with your rights):

  • छात्र-छात्राएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं तो उन्हें अपने कर्त्तव्यों को भी नहीं भूलना चाहिए।कर्त्तव्य आपको अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने हेतु सही दिशा बताते हैं।जैसे यदि आप दीवार से निकलने का प्रयास करेंगे तो आपका सिर फूटेगा और दीवार से निकल नहीं सकेंगे।कमरे से बाहर निकलना हो अथवा कमरे के अंदर प्रवेश करना हो तो आपको दरवाजे का प्रयोग करना चाहिए।
  • छात्र-छात्राएं अपने अधिकारों के संघर्ष करने के लिए इसी प्रकार गलत रास्ते अपनाने लगते हैं।अपने अधिकारों के लिए लड़ाई-झगड़ा करना,दंगा-फसाद करना इत्यादि करने लगते हैं। आप अपने अधिकारों के लिए सजग हैं सचेत हैं तो अच्छी बात है परंतु आपको कर्त्तव्यों को भी नहीं भूलना चाहिए।
  • युवक-युवतियां विद्यालय-महाविद्यालय में नई-नई बातें सीखते हैं।उनके ज्ञान में वृद्धि होने लगती है तो उसी अनुपात में वे विरोधी भी बनते जाते हैं।ज्ञान में वृद्धि सच्चे मायने में तभी मानी जाती है जबकि उनमें अहंकार नहीं आता हो बल्कि उनमें विनम्रता आती हो।जिज्ञासु तथा लगनशील छात्र-छात्राओं में ज्ञान की वृद्धि तभी होती है जबकि उसमें विनम्रता आती हो,बड़ों का का आदर करना सीखता हो। परंतु वस्तुतः छात्र-छात्राएं शिक्षा अर्जित करते जाते हैं तो बड़ों से कटते जाते हैं।बड़ों के साथ उठना-बैठना,उनकी आज्ञा का पालन करना,उनकी अच्छी बातों पर अमल करना समाप्त होता जाता है।
  • अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने से पहले अपने कर्त्तव्यों का पालन करना सीखेंगे तो आपकी बात सुनी भी जाएगी और मानी भी जाएगी।जैसे सड़क पर चलना आपका अधिकार है तो आपका कर्त्तव्य है कि सड़क के बाईं ओर चलें।यदि आप सड़क के बीच में चलेंगे तो दूसरे के अधिकारों का हनन होगा।अर्थात् सड़क पर वाहन चलाने वालो के अधिकारों का अतिक्रमण होगा।
  • इसी प्रकार अगर शिक्षक ठीक से नहीं पढ़ाता है तो सभी छात्र-छात्राएं एकजुट होकर विनम्रतापूर्वक उन्हें कहेंगे कि आपका पढ़ाया हुआ समझ में नहीं आता है।आप ठीक से पढ़ाएं।यदि आप हो हल्ला करके,गाली-गलौज करके बात करेंगे तो शिक्षक की स्वतंत्रता का हनन होगा।आपको शिक्षक से अपनी बात को कहने का अधिकार है तो उसके साथ कर्त्तव्य जुड़ा हुआ है कि शिष्टतापूर्वक अपनी बात कहें।

5.बड़े बुजुर्ग युवाओं की भावनाओं को समझें (Understand the feelings of the elderly youth):

  • छात्र-छात्राएं बड़े-बुजुर्गों के सामने कोई अच्छा सुझाव,अच्छी बात तथा मौलिक बातें रखते हैं तो वे उन्हें डांट-डपट देते हैं।बड़े-बुजुर्गों को युवाओं की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। उनकी बातों को सुनने के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है।यदि बड़े-बुजुर्ग यह सोचते हो कि कम उम्र,कम आयु वाले अच्छी,सही तथा मौलिक बातें नहीं कर सकते हैं तब आपस में टकराव होता है और टकराव से संघर्ष पैदा होता है।बड़ों में तथा छात्र-छात्राओं में दूरियां बढ़ने लगती है।युवाओं को लगता है कि अच्छी,सही व मौलिक बात बताने पर भी उन्हें प्रशंसा,सम्मान और प्रोत्साहन मिलने के बजाय प्रताड़ना,अनादर मिलता है तो उनका उत्साह व आशाएं खत्म हो जाती है।फिर वे गलत तरीके अपनाने लगते हैं।अपनी बात मनवाने के लिए चीखना,चिल्लाना,विरोध करना प्रारंभ कर देते हैं।
  • अगर बड़े-बुजुर्ग सावधानी,समझदारी और विवेक से काम लेकर युवाओं के साथ बर्ताव करें तो छात्र-छात्राएं सही रास्ते पर चलते हैं।छात्र छात्राओं को बिगाड़ने,गलत रास्ते पर बड़े भी कहीं न कहीं तथा कुछ न कुछ जिम्मेदार होते हैं।छात्र-छात्राएं बहुत सी बातें माता-पिता,शिक्षक,बड़े-बुजुर्गो,नेताओं तथा वरिष्ठजनों से सीखते हैं।
  • माता पिता चाहते हैं कि छात्र-छात्राएं सब कुछ जल्दी से जल्दी सीख जाए और उन पर दबाव डालते हैं।वे छात्र-छात्राओं की क्षमता व योग्यता को जांचे-परखे बिना दबाव डालते हैं तो बालक-बालिकाओं में आत्महीनता,क्रोध,घृणा,भय तथा विरोध के भाव पनपने लगते हैं।
  • बड़े-बुजुर्ग छात्र-छात्राओं के हर काम में हस्तक्षेप करने लगते हैं जिससे उनमें कई प्रकार की मानसिक विकृतियां उत्पन्न हो जाती है।ये मानसिक विकृतियां ही उनमें विद्रोही,उच्छृंखल,उद्दण्ड,अनुशासनहीन बना देती है।
  • कई बार बालक-बालिकाओं में शीघ्रता से विकास चाहने के कारण बालक-बालिकाएं ऐसे-ऐसे प्रश्न करने लगते हैं जिनका उत्तर देने में बड़े अक्षम हो जाते हैं।जैसे एक किलो रुई और एक किलो लोहे में लोहे से ही चोट अधिक लग क्यों लगती है? हवा में ऑक्सीजन होती है तो हवा में आग क्यों नहीं लगती?
  • होना तो यह चाहिए कि बालक-बालिका यदि कोई जिज्ञासा प्रकट करते हैं तो यदि वे उनका जवाब नहीं दे सके तो उन्हें ऐसी पुस्तकें उपलब्ध करानी चाहिए जिससे उनकी जिज्ञासा शांत हो सके।उन पर झुँझलाना,डाँटना-डपटना ठीक नहीं है।
  • बालक-बालिकाओं को प्रेम से समझाया जाए तो वे बड़ों के लिए सब कुछ करने को तैयार हो सकते हैं।युवा मन बहुत संवेदनशील होता है।अतः बड़ों को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे उनके मन को चोट लगे।
  • कभी-कभी सहशिक्षा तथा विपरीत लिंगीय आकर्षण के कारण युवक-युवतियां भटकने लगते हैं।इसमें बाधा पहुँचाने वाला उन्हें बुरा लगता है।ऐसी स्थिति में उन्हें सौम्य व्यवहार से समझाना चाहिए।उन्हें कहना चाहिए कि यह उम्र पढ़ने-लिखने तथा विद्या ग्रहण करने की है।सेक्स वगैरह की बातें करने की उम्र अभी नहीं है।परिपक्व अवस्था तक धैर्य रखना चाहिए।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree),छात्र-छात्राओं द्वारा विरोध प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips to Protest by Students) के बारे में बताया गया है।

6.गणित के पेपर में अंक देने का तरीका (हास्य-व्यंग्य) (How to Give Marks in Mathematics Paper) (Humour-Satire):

4 Tips for Students to Disagree

4 Tips for Students to Disagree

  • रमेश (गणित अध्यापक से):सर (sir) मेरा गणित का पेपर इतना खराब नहीं हुआ था कि आप मुझे जीरो नंबर देते।मैंने काॅपी में गणित के सवालों के बारे में कुछ न कुछ तो लिखा ही है।
  • गणित अध्यापक (रमेश से):यह तो मैं भली प्रकार जानता हूं कि तुम्हें जीरो नंबर नहीं दिया जाना चाहिए था।परंतु जीरो नम्बर से कम नंबर देने का नियम नहीं है वरना तुम्हें जीरो नम्बर से कम नम्बर दिया जाना चाहिए था।

7.छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree),छात्र-छात्राओं द्वारा विरोध प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips to Protest by Students) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.बालक बालिकाओं में लोभ-लालच कैसे पैदा होता है? (How greed arise in boys and girls?):

उत्तर:जब बड़े बालक-बालिकाओं से कोई काम करवाने के लिए रुपए अथवा कोई चीज देने का प्रलोभन देते हैं तो उनमें लोभ-लालच पैदा हो जाता है।जैसे बालक-बालिकाओं को यह कहा जाए कि तुम यदि परीक्षा में 80-90% अंक लाओगे तो तुम्हें मोबाइल फोन दिलाया जाएगा।तुम यदि गणित में अच्छे अंक प्राप्त करोगे अथवा रोजाना गणित को हल करोगे तो तुम्हें नई ड्रेस दिलाई जाएगी।इस प्रकार बालक-बालिकाओं की मानसिकता इस प्रकार की बन जाती है कि वे प्रत्येक कार्य के लिए कोई न कोई चीज प्राप्त करना चाहते हैं।धीरे-धीरे उनमें लोभ-लालच पैदा हो जाता है।ऐसे बालक-बालिकाएं यदि किसी ऊँचे पद पर नियुक्त हो जाते हैं तो भ्रष्टाचार करने लगते हैं।

प्रश्न:2.बड़ों को अपनी बात मनवाने के लिए दबाव क्यों नहीं डालना चाहिए? (Why shouldn’t adults be pressured to get their point across?):

उत्तर:बड़े-बुजुर्गों की सोच तथा युवाओं की सोच में अंतर होता है।बड़े-बुजुर्गों की मान्यताएं,आकांक्षाएं,नियम तथा युवाओं की मान्यताओं,आकांक्षाओं,नियमों में अंतर होता है। जैसे बड़े बुजुर्ग अमेरिका का नाम सुनते हैं तो युवावर्ग अमेरिका में पढ़ने की मानसिकता रखता है।यदि बड़े-बुजुर्ग अपनी बात मनवाने के लिए कोई तरीका अपनाएंगे तो युवावर्ग सोचता है कि वे उसकी विवशता का लाभ उठाना चाहते हैं,शोषण करना चाहते हैं।इस प्रकार युवाओं में विरोध पनपने लगता है।

प्रश्न:3.युवा वर्ग को सही रास्ते पर लाने के लिए क्या करना चाहिए? (What to do to put the youth on the right track?):

उत्तर:जैसे यदि कोई युवक-युवती की क्षमता व योग्यता साइंस मैथमेटिक्स लेने की नहीं है परंतु वह अपनी आकांक्षा को पूरी करने या साथियों की देखा-देखी साइंस मैथ सब्जेक्ट ले लेता है तो उसे समझाना चाहिए कि वह गलत दिशा में जा रहा है।यदि तुम नहीं समझोगे तो इसके गलत परिणाम तुम्हें ही भोगने होंगे।ऐसा करने से शायद वह समझ जाए।दाब-दबाव डालना उचित नहीं है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree),छात्र-छात्राओं द्वारा विरोध प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips to Protest by Students) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

4 Tips for Students to Disagree

छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स
(4 Tips for Students to Disagree)

4 Tips for Students to Disagree

छात्र-छात्राओं द्वारा असहमति प्रकट करने की 4 टिप्स (4 Tips for Students to Disagree) के
आधार पर वे अपनी जायज बातों को ठीक प्रकार से रख सकेंगे।
प्रत्येक व्यक्ति का अंतःकरण मन,बुद्धि,अहंकार और चित्त से निर्मित होता है।
जब छात्र-छात्राओं के अहम को चोट पहुंचती है तो वे विरोध प्रकट करते हैं।
कई बार यह विरोध अनुशासनहीनता,क्रोध,तोड़फोड़,विध्वंस जैसी नकारात्मक
प्रवृत्तियों के रूप में प्रकट होता है।इस प्रकार से विरोध प्रकट करना
अनुचित हो जाता है भले ही उनका पक्ष सही हो,उनकी मांग जायज हो।

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