4 Best Techniques to Avoid Stress
- तनाव से बचने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques to Avoid Stress) से आप जान पाएंगे कि तनाव के क्या-क्या कारण है और उनसे कैसे बचें? वैसे तनाव पर दो-तीन आर्टिकल पूर्व में भी लिखे जा चुके हैं।इस आर्टिकल में कुछ अतिरिक्त विषयवस्तु प्रस्तुत है जिसे पढ़ने पर आपके न केवल ज्ञान में वृद्धि होगी बल्कि इन बातों का पालन करने से तनाव से मुक्ति भी हो सकेगी।
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- छात्र-छात्राएँ सिलेबस पूर्ण नहीं होता है,कोई विषय समझ में नहीं आता है,परीक्षा में अच्छे अंक अर्जित नहीं कर पा रहे हैं आदि कारणों से तनाग्रस्त हो जाते हैं।एक बार तनाव की गिरफ्त में आने पर विद्यार्थी का ध्यान अध्ययन से हट जाता है तथा तनावग्रस्त होने पर चिन्ता,हताशा,बोरियत,ऊब,निराशा आदि के चंगुल में फंस जाता है।
- प्रसिद्ध मनोविज्ञानवेत्ता एवं कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेम्स सी. रोलमैन ने एक स्थान पर लिखा है कि “17वीं शताब्दी को पुनर्जागरण-काल कहा जाता है,अठारहवीं शताब्दी को बौद्धिकता का काल कहा जाता है,19वीं शताब्दी को प्रगति का काल कहा जाता है तथा 20वीं शताब्दी को चिताओं का काल एवं 21वीं शताब्दी को गलाकाट प्रतिस्पर्धा के रूप में जाना जाता है।
- 20वीं शताब्दी भौतिकवाद एवं अर्थवाद की शताब्दी है।अतः इसमें मनुष्य के जीवन में अभावों का होना स्वाभाविक है।अभाव के फलस्वरूप व्यक्ति चिंता-संकुल एवं तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है।यही कारण है कि मानसिक तनाव तथा तज्जन्य समस्याएं-अनिद्रा,विक्षिप्तता,आत्महत्या का होना स्वाभाविक है।वर्तमान समय में अत्यधिक गतिशील जीवन को हम दौड़ती-भागती जिंदगी भी कह सकते हैं।इस दौड़ती-भागती जिंदगी में मानसिक तनाव हमारे जीवन का आवश्यक अंग बन गया है।संत्रास,कुंठा,नैराश्य,ऊब,आलस्य आदि के रूप में तनाव की अभिव्यक्ति होती है।
- घर,बाहर,समाज,कार्यालय,दफ्तर,पास-पड़ौस आदि प्रत्येक स्थान पर तनाव के अवसर आते रहते हैं।जहां भी और जब भी मनोनुकूल कार्य नहीं हो पाता हैं,वहीं अभाव का अनुभव होना स्वाभाविक है।बस,इसी के साथ हम तनावग्रस्त हो जाते हैं।
हर अवस्था वाले व्यक्ति के तनाव के अपने कारण होते हैं,बच्चों के तनाव,युवकों के तनाव,वृद्धों के तनाव,पुरुषों के तनाव,नारियों के तनाव एक-दूसरे से भिन्न होते हैं,उनके कारण भी भिन्न होते हैं।बच्चों के तनाव के मुख्य कारण होते हैं:माता-पिता का,विशेषकर माता का प्यार न मिलना,अनावश्यक रूप से बात पीछे डाँटा जाना,उनको मनपसंद वस्तुओं से वंचित रखना,बच्चों में आपस में भेदभाव करना,उनके सामने अन्य बच्चों की प्रशंसा करना अथवा अन्य बच्चों के साथ उनकी तुलना करना आदि। - हमें यह समझ लेना चाहिए कि तनावग्रस्त बालक का व्यवहार सर्वथा अस्वाभाविक हो जाता है।कालांतर में वह उच्छृंखल बन जाता है।युवावर्ग के तनाव के कारण के पीछे प्रायः आर्थिक कारण होता है,अथवा काम-कुंठाएं रहती है।रोजगार का अभाव भी तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण बन जाता है।तनावग्रस्त ये युवक-युवतियाँ मादक द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं।विषम स्थिति उत्पन्न होने पर आत्महत्या कर लेते हैं।इसी प्रकार वृद्धजन के तनाव के मूल में प्रायः आर्थिक अभाव अथवा संतान द्वारा दी जाने वाली अवमानना रहती है।वृद्धावस्था में अकेला रहने की त्रासदी,शारीरिक अक्षमता,संतान का अयोग्य अथवा कुमार्गी होना वृद्धजन को गहरे तनाव का शिकार बना देता है।
- आजकल मशीनें भी तनाव का बहुत बड़ा कारण बन गई हैं।वे इतना शोर करती हैं कि वातावरण प्रदूषित होकर हमको तनावग्रस्त बना देता है।ट्रैफिक जाम भी तनाव को जन्म देता है।आए दिन होने वाली दुर्घटनाएं भी जीवन को तनावपूर्ण बनाती रहती हैं।तनाव के कारण व्यक्ति भाँति-भाँति की बीमारियों का शिकार हो जाता है।तनाव के कारण दिल का दौरा पड़ जाना तो एक सामान्य घटना बन गई है।
- कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्तिगत,पारिवारिक,आर्थिक,सामाजिक,उपयुक्त वातावरण का अभाव आदि अनेक ऐसे कारण हैं जो मनुष्य के जीवन को अस्वाभाविक एवं अमानवीय बना रहे हैं।यहां तक की प्यार और स्नेह भी औपचारिक और दिखावटी बन गए हैं।तनावग्रस्त हमारा जीवन क्रमशः नारकीय बनता जा रहा है और हम उससे छुटकारा पाने की इच्छा होते हुए भी उससे छुटकारा पाने में असमर्थ हैं।हम वस्तुतः वह जीवन-पद्धति अपनाना ही नहीं चाहते हैं जो हमको तनाव तथा तनाव से उत्पन्न अभिशापों से मुक्ति प्रदान कर दे।सादा-जीवन जीवन को हम रूढ़िवाद और पिछड़ेपन की पहचान मानते हैं।अतएव हमारी स्थिति बालू में भुनने वाले उस चने के समान हो गई है जो बालू से छुटकारा पाने के लिए ऊपर की ओर उछलता है,परंतु फिर उसी में वापस आ जाता है।
- तनाव से ग्रस्त विद्यार्थी का मन अध्ययन में नहीं लगता है,उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है।मन इधर-उधर भटकता रहता है।विभिन्न कल्पनाओं में खोया रहता है परंतु कल्पनाओं को साकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।धैर्यहीन,निराश,कुंठाग्रस्त,हताश आदि कई मनोविकारों से ग्रस्त हो जाता है।अधिकांश युवा पीढ़ी तनाव से ग्रस्त दिखाई देते है।कई छात्र-छात्राएं तो तनाव से मुक्ति पाने के लिए मादक द्रव्यों और,ड्रग्स,नशीली गोलियों,अफीम,गांजा,चरस,एलएसडी आदि का सेवन करके तनाव-मुक्त होना चाहते हैं।
- परंतु यह समस्या को और बढ़ा देता है उसके मादक द्रव्यों एवं नशीली दवाईयों की लत लग जाती है जिससे कई बीमारियां गले लग जाती हैं।
- कई विद्यार्थी अध्ययन में असफल होने पर अपराध जगत की ओर कदम बढ़ा देते हैं।वे अपहरण,चोरी,डकैती,हत्या,लूटपाट,साइबर क्राइम जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त हो जाते हैं।कहने का तात्पर्य यह है कि तनाव का सही समाधान न करके गलत समाधान करने से उनका जीवन बर्बाद हो जाता है।एक बार गलत कार्यों की गिरफ्त में आने के बाद उससे छुटकारा मिलना मुश्किल हो जाता है।वह चाहकर भी गलत कार्यों के दलदल से नहीं निकल पाता है।
दरअसल छात्र-छात्राओं के सामने अध्ययन में चुनौतियां आती ही हैं,हर किसी के सामने जीवन में,जॉब करने में चुनौतियाँ आती ही है परंतु हम अपरिपक्वता के कारण चुनौतियों को समस्या बना लेते हैं और चुनौतियां विकट हो जाती हैं।
- न्याय पद्धति का यह एक सामान्य सिद्धांत है कि ‘There is remedy for every wrongs’ अर्थात् प्रत्येक दोष का उपचार है।तनाव से मुक्ति के लिए उस वातावरण एवं मानसिकता से मुक्ति अपेक्षित है जिसके कारण तनाव उत्पन्न होता है।तनाव का कारण प्रायः अभावमय जीवन होता है।हमको चाहिए कि तनाव की स्थिति में हम यह सोचने लगें कि हमारी स्थिति कितने व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक संतोषजनक है।हम देखेंगे कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में हमको ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जो हमारी अपेक्षा अधिक अभावग्रस्त एवं त्रस्त हैं।
- यदि हम अपनी अपेक्षा निम्नस्तरीय व्यक्ति की सहायता करने की योजना बनाने में लग जाएं,तो हमारा तनाव एकदम शिथिल पड़ जाएगा।और हम एक नए व्यक्ति की भाँति आचरण करने लग जाएंगे,क्योंकि उन क्षणों में हम अपने को श्रेष्ठतर स्तर श्रेणी वाले व्यक्तियों के मध्य स्थित पाएंगे।चिंता केवल उन व्यक्तियों को सताती है जो केवल अपना ध्यान रखते हैं।जो व्यक्ति हर समय अन्य व्यक्तियों की भलाई का ध्यान रखता है,उसके पास अपने बारे में चिंता करके तनावग्रस्त होने का अवसर ही नहीं रह जाता है।
- प्राचीनकाल में महाराणा प्रताप अभावमय जीवन जीने वालों में अग्रगण्य थे,परंतु वह अपने और परिवार के सुख-सुविधा के बारे में ना सोचकर सदैव मेवाड़ की स्वतंत्रता के बारे में सोचा करते थे।यही कारण था कि घास से बनी रोटियां खाकर भी वे अपने को न अभावग्रस्त समझते थे और न कभी तनावग्रस्त होते थे।
- आधुनिक काल में डॉक्टर नेल्सन मंडेला इस बात के उदाहरण है कि विषमतम परिस्थितियों में भी तनावमुक्त एवं तज्जन्य रोग एवं विकार मुक्त किस प्रकार रहा जा सकता है।27 वर्षों की दीर्घ अवधि तक जेल में बंद रहने के उपरान्त जब वे बाहर आए थे,तब भी उनके मुख पर आत्मसंतोष की दीप्ति थी तथा होठों पर सहज मुस्कान खेल रही थी।
- लोकमान्य तिलक से लेकर वीर भगत सिंह और पंडित नेहरू आदि अनेक स्वतंत्रता सेनानी इतने लंबे समय तक संघर्ष नहीं कर सकते थे,यदि वे स्वार्थबद्ध एवं आत्मकेंद्रित बनकर अपने को अभावग्रस्त समझते रहते।देशप्रेम के अक्षय भंडार ने उनके मन को कभी भी रिक्तता एवं अभाव की अनुभूति नहीं होने दी थी।वे तालाब बनकर नहीं बल्कि नदी की प्रवाहमान धारा बनकर जिए।तात्पर्य यह है कि राह ही हारी सदा,राही कभी हारा नहीं है।
- अभावों,दुःखों से क्या घबराना? सुख-दुःख तो जीवन में धूप-छांव की तरह आते जाते रहते हैं।कालिदास के यक्ष ने ठीक ही कहा था कि ‘चक्रवत प्रवर्तन्ते दुखानि च सुखानि च;अथवा काहू पै दुःख सदा न रह्यो,न रह्यो नित काहू के सुख अगारी चक्र-निधि जिमि दोई फिरें तर-ऊपर आपनी-आपनी बारी।तनाव एवं कुण्ठाग्रस्त व्यक्तियों को सोचना यह है कि तनाव से सिर्फ नुकसान के होता भी क्या है?
- विद्यार्थियों को प्रातःकाल योग-साधना,ध्यान,मन को एकाग्र करने का अभ्यास करना चाहिए।अध्ययन में चुनौतियों को समस्या न समझकर अवसर समझें।इससे दिमाग मजबूत होता है।ध्यान और धैर्य रखने से धीरे-धीरे जीवन की हर गुत्थी सुलझ जाती है,हर समस्या का समाधान निकल जाता है।सुबह मन को एकाग्र करने के अलावा दिन में अध्ययन पूर्ण एकाग्रचित्त होकर करें,यदि मन इधर-उधर भटकता है तो उसको अध्ययन पर केंद्रित करें।गलत कार्यों को कंपनी न दें।क्योंकि सुबह एक घंटे-आधे घंटे से ही एकाग्रता नहीं सध सकती है।उससे फर्क तो पड़ता है।परंतु दिनभर जो भी कार्य करें उसे पूर्ण एकाग्रचित्त होकर करें।विवेक,धैर्य और साहस का साथ कभी न छोड़ें।चुनौतियों का डटकर मुकाबला करें।इस प्रकार इन उपायों से आप तनाव को दूर भगा सकेंगे।
- उपर्युक्त आर्टिकल में तनाव से बचने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques to Avoid Stress),तनाव से बचने की 4 रणनीतियाँ (4 Strategies to Avoid Stress) के बारे में बताया गया है।
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5.प्रिंसिपल के बैड पर सोना (हास्य-व्यंग्य) (Sleep on Principal’s Bed) (Humour-Satire):
- गांव से एक छात्र पब्लिक स्कूल में प्रवेश करने हेतु शहर गया।वह जाते-जाते थक गया और रेस्ट रूप में एक बेड पर सो गया।
- तभी वहां चपरासी आया और बोला ‘उठो-उठो’ यह प्रिंसिपल का बैड है।
- यह सुनकर ग्रामीण छात्र बोला:ठीक है यार,मैं कहां ज्यादा देर तक सोने वाला हूं।ज्योंही प्रिंसिपल साहब आएंगे;मैं उठ जाऊंगा।
उत्तर:विद्यार्थी सत्साहित्य का अध्ययन करें।सकारात्मक विचारधारा रखें।तनाव से एकदम से मुक्त नहीं हो पाएंगे। अतः धैर्य धारण करें।सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ ध्यान,एकाग्रता का अभ्यास करें।अच्छे लोगों,विद्यार्थियों के साथ सत्संग करें।
उत्तर:प्रकृति में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका समाधान नहीं है।हां यह अवश्य है कि तनाव मुक्ति में समय लग सकता है परंतु तनाव से मुक्त होना,बचना संभव है।
उत्तर:आजकल की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में,आर्थिक युग में जब विद्यार्थी तथा लोग धन कमाने के पीछे पागल हो जाते हैं जो तनाव का कारण बनती हैं।अतः दूसरों के देखा-देखी,विलासिता की चीजों को जुटाने में लगना तनाव का कारण बन जाती है।अतः अपनी हैसियत के अनुसार ही साधन सुविधाएं जुटाएँ।अपने आप से प्रतियोगिता करें,दूसरों से नहीं।
- उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा तनाव से बचने की 4 बेहतरीन तकनीक (4 Best Techniques to Avoid Stress),तनाव से बचने की 4 रणनीतियाँ (4 Strategies to Avoid Stress) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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