Menu

3 Best Tips for Developing Creativity

Contents hide
1 1.सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity),सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity):

1.सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity),सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity):

  • सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity) के आधार पर गणित में नवीन ज्ञान,नए सिद्धांतों,नई विषय सामग्री की खोज कर सकते हैं।सर्जन का अर्थ होता है रचना,निर्माण।हर छात्र-छात्रा में भिन्न-भिन्न प्रकार की सृजन क्षमता हो सकती है। सृजनात्मकता का अर्थ केवल किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेना,गणित की विषय वस्तु को रट लेना,स्मरण कर लेना नहीं होता है।सृजनात्मकता नई विषय सामग्री अथवा वस्तु की रचना करना,पुरानी विषय सामग्री तथा वस्तु में परिवर्तन करके नया रूप देना,उपलब्धि तथा विशिष्ट उच्च कोटि की कुशलता प्राप्त करना होता है।
  • आपको यह जानकारी रोचक व ज्ञानवर्धक लगे तो अपने मित्रों के साथ इस गणित के आर्टिकल को शेयर करें।यदि आप इस वेबसाइट पर पहली बार आए हैं तो वेबसाइट को फॉलो करें और ईमेल सब्सक्रिप्शन को भी फॉलो करें।जिससे नए आर्टिकल का नोटिफिकेशन आपको मिल सके । यदि आर्टिकल पसन्द आए तो अपने मित्रों के साथ शेयर और लाईक करें जिससे वे भी लाभ उठाए । आपकी कोई समस्या हो या कोई सुझाव देना चाहते हैं तो कमेंट करके बताएं।इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें।

Also Read This Article:Creative Thinking in Mathematics

2.सृजनात्मकता के प्रकार (Types of Creativity):

  • सृजनात्मकता मौलिक रूप से दो प्रकार की होती है:
  • पहली आंतरिक बोध (इन्ट्यूशन पावर) वाली सृजनात्मकता।इस प्रकार की सृजनात्मकता उन छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों में होती है जिनमें विवेक होता है तथा अहम बहुत कम होता है। क्योंकि जिसमें अहम होता है अथवा अधिक अहम होता है उन्हें अहम सृजन करने ही नहीं नहीं देता है। अहम् प्रधान छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति यही समझते हैं कि उन्हें गणित विषय अथवा अन्य विषयों में जो ज्ञान है पर्याप्त है।उसे बाहर और हटकर नवीन विचार,नवीन ज्ञान की रचना का निर्माण उनके मस्तिष्क में आता ही नहीं है।अहंकारी अपने ज्ञान को,अपनी जानकारी को,अपने आप को ही श्रेष्ठ समझता है।उसे जो ज्ञात है उसे ही महान कार्य समझकर सबके सामने वर्णन करता रहता है।अहंकारी व्यक्ति यही समझता है कि उसे जो भी ज्ञान प्राप्त हुआ है वह स्वयं के कारण हुआ है।उसमें दूसरों का कोई योगदान नहीं है।
  • ऐसी स्थिति में जबकि अहंकार सबसे अधिक होता है वे छात्र-छात्राएं और व्यक्ति नवीन ज्ञान,नई चीज का निर्माण कर ही नहीं पाते हैं।
  • जिस व्यक्ति तथा छात्र-छात्रा को आंतरिक बोध (इन्ट्यूशन पावर) जागृत हो जाता है उनमें अहंकार बहुत कम होता है।ऐसी स्थिति में वे नवीन वस्तु,नए विचारों,नए ज्ञान का निर्माण कर पाते हैं।उनमें नया सीखने की प्यास होती है होता है,लगन (Passion) होती है। ऐसे व्यक्ति अलग हटकर सोचते हैं और नवीन खोज कर पाते हैं।जैसे महान् वैज्ञानिक न्यूटन में अहंकार नहीं था।एक बार उसके पालतू कुत्ते (डायमंड) ने मोमबत्ती को गिरा दिया और उनकी नई खोजों के लेख जलकर नष्ट हो गए। उन्होंने उस पर गुस्सा नहीं किया बल्कि नए सिरे से खोज किए गए लेख को तैयार किया।अपने आविष्कार गुरुत्वाकर्षण को करने के बाद उन्होंने कहा कि “मैं नहीं जानता”, संसार मुझे क्या समझेगा? मैं तो अपने आपको समुद्र के किनारे बालक के समान पाता हूं जो अपने विनोद के लिए समुद्र के किनारे की ओर सीपियाँ और घोंघे बीनता फिर रहा हूं।जबकि सत्य का अगाध तथा असीम समुद्र बिना खोजा पड़ा हुआ था।इससे उनमें अहंकार न होने का पता चलता है।
  • इस प्रकार के व्यक्तियों में चिंतन-मनन का स्तर उच्च कोटि का होता है।अपने आंतरिक बोध (इन्ट्यूशन पावर) के आधार पर असाधारण तथा बिल्कुल नवीन खोज करते हैं।
  • दूसरे प्रकार की सृजनात्मकता बौद्धिक होती है।इस प्रकार की सृजनात्मकता के धनी छात्र-छात्राएं मौजूद वस्तु,विचार,लेख इत्यादि के आधार पर नवीन वस्तु,नवीन विचार,लेख तैयार करते हैं।इस प्रकार के छात्र-छात्राओं व व्यक्तियों में अहंकार कुछ मात्रा में होता है।इस कारण उन्हें थोड़ा सा ही अंतर्बोध होता है।इस प्रकार के छात्र-छात्राएं व्यक्ति पहले ही से ही निर्मित वस्तु,विचार का अनुकरण करके नई वस्तु व विचार की खोज करते हैं।जैसे कंप्यूटर के आधार पर लैपटॉप,टेबलेट इत्यादि का आविष्कार करना।इसी प्रकार गणित की विषय वस्तु ली जावे तो जैसे संख्या सिद्धांत के आधार पर अभाज्य संख्याओं,सम,विषम संख्याओं की खोज करना।
  • तात्पर्य यह कि बौद्धिक सृजनात्मक क्षमता वाले पहले से ही निर्मित वस्तु,विचार,सिद्धांत के आधार पर ही नवीन खोज या आविष्कार कर पाते हैं।
  • अंतर्बोध (इंट्यूशन पावर) वाली सृजनात्मकता सिखाई नहीं जा सकती है।उसे तो छात्र-छात्राओं तथा व्यक्तियों द्वारा स्वयं के प्रयासों से ही जागृत करना होता है।इस प्रकार की सृजनात्मकता जितना अहंकार कम होता जाता है उतनी अधिक प्रकट होती जाती है।जबकि बौद्धिक सृजनात्मकता छात्र-छात्राएं तथा व्यक्ति परिवार, माता-पिता,समाज,विद्यालय के शिक्षकों से सीख सकता है अथवा सिखाया जा सकता है।आंतरिक बोध में छात्र-छात्राओं का बिल्कुल रूपांतरण हो जाता है,कायाकल्प हो जाता है।बौद्धिक सृजनात्मकता आवश्यक नहीं है कि छात्र-छात्राओं व व्यक्तियों में प्रकट हो।
  • जो परंपरागत तरीके से,बिल्कुल हूबहू गणित के सवाल,समस्याओं को हल करते हैं।उनमें सृजनात्मकता का अंकुर नहीं फूटता है।प्रतिभा,सृजनात्मकता हर छात्र-छात्रा तथा व्यक्ति में हो सकती है परंतु उसे तराशने,उभारने,निखारने का कार्य एक कुशल और तेजस्वी मार्गदर्शक,शिक्षक ही कर सकता है वरना उनमें सृजनात्मकता सुप्त ही रह जाती है,उसके अंकुर फूट नहीं पाते हैं,खिल नहीं पाते हैं।

3.सृजनात्मकता को विकसित करने का तरीका (A way of developing creativity):

  • जिन छात्र-छात्राओं में सीखने की ललक,लगन (Passion) होती है ऐसे बालकों की शुरू में सृजनात्मकता प्रगट हो जाती है।किसी विद्यार्थी की विज्ञान में,किसी की खेल में,किसी की संगीत में,किसी की आध्यात्म में तथा किसी की व्यावहारिक क्षेत्र में रुचि होती है।माता-पिता,अभिभावकों,शिक्षकों को छात्र-छात्राओं में सृजनात्मकता का पता लगाने की सूक्ष्म दृष्टि होनी चाहिए।यदि माता-पिता,अभिभावक,शिक्षक छात्र-छात्राओं की सृजनात्मकता का पता लगाने में असमर्थ हों तो किसी योग्य गुरु,प्रशिक्षण संस्थान अथवा मार्गदर्शक का पता लगाकर उनकी सहायता लेनी चाहिए।
  • वस्तुतः छात्र-छात्राओं की चाहे गणित में सृजनात्मकता हो अथवा अन्य विषयों में सृजनात्मकता हो उसको तराशने,उभारने व निखारने का कार्य तप व साधना का कार्य है।बहुत से माता-पिता,अभिभावक व शिक्षक इस तरफ ध्यान नहीं देते हैं।इस प्रकार बहुत से बालक-बालिकाओं की सृजनात्मकता खिलने से पहले मुरझा जाती है और सड़,गल जाती है,नष्ट हो जाती है।
  • जो बालक-बालिकाएं वस्तुओं की उपयोगिता,आर्थिक पहलुओं,सांसारिक क्षेत्रों में रूचि प्रकट करते हैं तथा बार-बार उन कार्यों को करने का प्रयास करते हैं।ऐसी स्थिति में समझना चाहिए कि उनकी प्रतिभा,सृजनात्मकता व्यावहारिक क्षेत्र में है।ऐसे बालक व्यवसाय,खेल अथवा किसी विशिष्ट विषय में उच्च स्तर प्राप्त करके जैसे डॉक्टर,इंजीनियर, गणितज्ञ बनकर धन संपत्ति अर्जित करना चाहते हैं और उन्हीं कार्यों से मान सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं।उनकी आस्था सैद्धांतिक तथा आदर्शवाद में नहीं होती है।यदि परमात्मा में उनकी आस्था होती भी है तो वह भौतिक संपत्ति, धन सम्पत्ति अर्जित करने की मंशा रखते हैं।
  • कुछ बालक-बालिकाएं भले ही भौतिक विषयों में रुचि रखते हो परन्तु आर्थिक क्षेत्र,व्यापार,विज्ञापन या व्यवसायिक भावना उनमें नहीं होती है।वे सामाजिक तथा सांसारिक विषयों में सृजन करने की मंशा रखते हैं परंतु उससे धन कमाने की लालसा उनमें नहीं होती है।जैसे अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार को जड़मूल से खत्म करने के लिए जन आंदोलन चलाया।भ्रष्टाचार सांसारिक व व्यावहारिक क्षेत्र से ही संबंध रखता है।परन्तु उनमें धन कमाने की लालसा बिल्कुल नहीं थी।उन्होंने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए नए-नए प्रयोग किए तथा लोकपाल विधेयक लाने के लिए अद्भुत संघर्ष किया और अंत में उसे साकार रूप प्रदान करके ही दम लिया।
  • कुछ विद्यार्थियों की शुरू से ही भजन,पूजन,धार्मिक तत्वों में रुचि रखते हैं।यदि इस प्रकार के बालकों की रुचि,लगन को पहचान कर प्रोत्साहित किया जाए तो ऐसे छात्र-छात्राएं धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में नए आदर्श,नए सृजन कार्य स्थापित करते हैं।उसे साकार रूप प्रदान करके लोगों को उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं।ऐसे छात्र छात्राओं की रचनात्मक क्षमता,चिंतन-मनन करने की क्षमता को विकसित किया जाए,तराशा जाए तो अध्यात्म क्षेत्र में अद्भुत व चमत्कारिक कार्य करके दिखाते हैं।उसे जी करके दिखाते हैं,नए मार्ग को प्रशस्त करते हैं।ऐसे छात्र-छात्राएं विश्व के सामने अनुकरणीय आदर्श प्रस्तुत करते हैं।
  • सृजनात्मक क्षमता वाले बालक बालिकाएं आगे जाकर असाधारण रूप से चिंतन-मनन करते हैं। अपनी ही बात को सर्वोपरि नहीं मानते हैं।दूसरों की सलाह,सुझावों को भी अहमियत देते हैं।क्योंकि उनमें अहंकार बहुत कम होता है।नए-नए प्रयोग करते हैं,नए-नए आविष्कार व खोजे करते हैं।नए विचार प्रस्तुत करते हैं,नए लेख लिखते हैं यानी जिस क्षेत्र में कार्य करते हैं उनमें चमत्कारिक कार्य करके उदाहरण प्रस्तुत करते हैं कि देखो ऐसा भी किया जा सकता है।जैसे मैथमेटिक्स गुरु ने जेईई-मेन,एडवांस की तैयारी करवाके छात्र-छात्राओं को नई राह दिखाई,एक नई मिशाल कायम की।

Also Read This Article:What is Importance and utility of Creative Mathematics?

4.सृजनात्मकता का प्रेरक प्रसंग (Inspiring context of creativity):

  • एक गणित के अध्यापक थे।गणित के अध्यापक छात्र-छात्राओं को गणित पढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे।परंतु कुछ छात्र-छात्राएं गणित का अध्ययन नाम मात्र के लिए तथा परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए करते थे।जब गणित अध्यापक बार-बार गणित के प्रेरक प्रसंग सुनाते तथा उन्हें उत्साहित करते तो कुछ छात्र-छात्राओं ने सोचा कि अध्यापक वाकई गणित को बहुत पसंद करते हैं तो उन्हें किसी भी गणित की समस्या को हल करना चाहिए।
  • अचानक कुछ छात्र-छात्राओं ने गणित अध्यापक से गणित के कोर्स से बाहर के नवीन सवाल तथा समस्याएँ पूछना प्रारंभ कर दिया।चूँकि नवीन तथा कभी न पढ़े हुए गणित के सवाल व समस्या को हर किसी गणित अध्यापक के लिए हल करना कठिन होता है।अचानक अप्रत्याशित सवालों को देखकर गणित अध्यापक चकित हुए तथा अत्यधिक सतर्क हो गए कि इस प्रकार के नए-नए सवाल व समस्याएं तथा गणित से अलग हटकर दैनिक जीवन से संबंधित समस्याएं भी पूछी जा सकती है। गणित अध्यापक ने सतर्क व सचेत होकर न केवल उन सवालों को हल किया बल्कि उनकी व्यक्तिगत समस्याओं को भी बेहतरीन तरीके से हल किया।सवालों को एक-एक तरीके से नहीं बल्कि दो-दो तीन-तीन तरीके से हल कर दिए।छात्र-छात्राएं गणित अध्यापक की रचनात्मकता और बुद्धि बल को देखकर बहुत प्रसन्न हुए।उन्होंने निश्चय किया कि यदि पढ़ना है तो ऐसे ही गणित अध्यापक से पढ़ना है।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity),सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity) के बारे में बताया गया है।

5.मां द्वारा अपने बच्चों के साथ भेदभाव (हास्य-व्यंग्य) (Mother discriminates against her children) (Humour-Satire):

  • गणित अध्यापक (छात्र-छात्रा की माँ से):आप छात्र को चुपड़ी रोटी,दूध तथा अच्छा पोष्टिक भोजन खिला रही हो जबकि छात्रा को सूखी रोटी और सब्जी।
  • मां:मेरा पुत्र गणित जैसा कठिन विषय पड़ता है इसलिए इसको अधिक पौष्टिक खानपान की जरूरत होती है जबकि बच्चियां घर गृहस्थी संभालती हैं।उन्हें पौष्टिक भोजन की जरूरत नहीं है।
  • गणित अध्यापक:यह भेदभाव उचित नहीं है क्योंकि लड़कियां भी मां-बाप का यश फैला सकती हैं।उनमें भी प्रतिभा होती है जैसे श्रीमती इंदिरा गांधी, ममता बनर्जी इत्यादि।

6.सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity),सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity) से सम्बन्धित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.अहंकाररहित होने का क्या उपाय है? (What is the way to be ego less?):

उत्तर:यह सोचे कि जितना जानते हैं वह बहुत कम है जबकि अज्ञात चीजें,ज्ञान बहुत है।हम समुद्र की एक बूंद जितना भी नहीं जानते हैं।इसके अलावा अपने क्षेत्र के बड़े,उच्च स्तर के लोगों से मिले और उन्हें समझे आप पाएंगे कि आपके क्षेत्र में ही आप से बढ़कर अनेक लोग मिल जाएंगे।इससे आपका अहंकार कम होगा।

प्रश्न:2.सृजन का प्रारंभ कहां से होता है? (Where does creation begin?):

उत्तर:सृजन का प्रारंभ कल्पना से प्रारंभ होता है।आप नई-नई चीजों,विचारों की कल्पना करें।कल्पना को सही दिशा देना और साकार रूप प्रदान करना ही सृजन है।
प्रश्न:3.अधिक रचनात्मक के लिए क्या करें? (What to do to be more creative?):
उत्तर:कुछ भी नया करने के लिए डरे नहीं। परंपरागत विचारों,सिद्धांतों को चुनौती दे।

प्रश्न:3.अधिक रचनात्मक के लिए क्या करें? (What to do to be more creative?):

उत्तर:कुछ भी नया करने के लिए डरे नहीं। परंपरागत विचारों,सिद्धांतों को चुनौती दे।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity),सृजनात्मकता का विकास (Development of Creativity) के बारे में ओर अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

3 Best Tips for Developing Creativity

सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स
(3 Best Tips for Developing Creativity)

3 Best Tips for Developing Creativity

सृजनात्मकता का विकास के 3 बेहतरीन टिप्स (3 Best Tips for Developing Creativity) के
आधार पर गणित में नवीन ज्ञान,नए सिद्धांतों,नई विषय सामग्री की
खोज कर सकते हैं।सर्जन का अर्थ होता है रचना,निर्माण।
हर छात्र-छात्रा में भिन्न-भिन्न प्रकार की सृजन क्षमता हो सकती है।

No. Social Media Url
1. Facebook click here
2. you tube click here
3. Instagram click here
4. Linkedin click here
5. Facebook Page click here
6. Twitter click here

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *