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18 Spells for Effective Leadership

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1 1.प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (18 Spells for Effective Leadership),नेतृत्व कला को विकसित करने की 18 तकनीक (18 Techniques to Develop Leadership Art):
1.1 2.नेतृत्व करने का क्या आशय है? (What does it mean to lead?):

1.प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (18 Spells for Effective Leadership),नेतृत्व कला को विकसित करने की 18 तकनीक (18 Techniques to Develop Leadership Art):

  • प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (18 Spells for Effective Leadership) के आधार पर आप अपनी नेतृत्व करने की क्षमता को विकसित कर सकेंगे और प्रभावी बना सकेंगे।आज के व्यवसायिक युग में आगे बढ़ने के लिए आकर्षक व्यक्तित्व का होना बहुत आवश्यक है।नेतृत्व करने का गुण उसमें चार चांद लगा देता है।
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2.नेतृत्व करने का क्या आशय है? (What does it mean to lead?):

  • नेतृत्व करना एक खास कला है,जो सामान्य व्यक्तित्व के अंदर नहीं होती।नेतृत्व कला जिसके अंदर जन्मजात है उसे प्रशिक्षण से चमत्कारिक बनाया जा सकता है।यह इतनी खास है कि विदेशों में इस कला को विकसित करने के लिए व्यावसायिक स्तर पर कक्षाएं होती हैं।इसे जीवन जीने की कला का एक महत्त्वपूर्ण बिंदु माना जा रहा है।यह कला ही ऐसी है,जो पूर्णता तभी पाती है,जब व्यक्ति का सही रूप में व्यक्तित्व विकसित होता है,उसका चरित्र प्रखर होता है और वह गुणों की खान होता है।
  • कार्यस्थल पर नेतृत्व की पहचान कार्यस्थल के सहयोगी वातावरण,सहकर्मियों के सद्भाव,कार्य निष्ठा एवं लगन,सफल कार्यों की निरंतरता,काम करने वाले लोगों के भावनात्मक लगाव एवं संस्थान की छवि से होती है।श्रेष्ठतम नेतृत्वकर्त्ता वही बन पाता है,जो लोगों के दिलों पर राज करता है और जिसके व्यक्तित्व को हर कोई स्वीकारता है।ऐसे व्यक्ति के साथ काम करने वाले लोग अपना सब कुछ उस पर निछावर करने के लिए तत्पर होते हैं।अतः श्रेष्ठ नेतृत्व प्रदान करने के लिए व्यक्ति में अनेक गुणों का होना आवश्यक है जिनमें मुख्य गुण निम्नलिखित हैं:

(1.)अनुशासन प्रिय होना (Being discipline-loving):

  • जीवन जीना चाहिए और समय पर हर कार्य को पूर्ण करना चाहिए।ऐसा होने पर ही उसके अंतर्गत कार्य करने वाले लोग अनुशासित रहेंगे और निर्धारित कार्यों को समय पर पूर्ण करने का प्रयास करेंगे।यथा राजा तथा प्रजा के अनुसार लीडर स्वच्छंद होगा तो उसके अनुयायी भी स्वच्छंद होंगे।कार्य स्थल पर देरी से आएंगे,मनमानी करेंगे और लीडर के आदेशों की अवहेलना करेंगे।फलस्वरूप कार्य समय पर पूरा नहीं होगा और उसका ठीकरा लीडर पर थोपेंगे।

(2.)कर्मशीलता (diligence):

  • जो लीडर परिश्रमी होते हैं,अपने अनुयायियों के साथ काम करना पसंद करते हैं तथा कर्म को ही पूजा मानते और समझते हैं तथा अपेक्षा से अधिक काम करने की चाहत व क्षमता रखते हैं,वे ही अपने सहकर्मियों को और अधिक अच्छा करने की प्रेरणा दे सकते हैं।अधिक से अधिक काम करने से जॉब सेटिस्फेक्शन होता है अर्थात् उन्हें अधिक से अधिक जॉब करने से आनंद की अनुभूति होती है।अधिक काम करने से न वे थकते हैं और न रुकते हैं जब तक कि काम पूरा नहीं हो जाता है।अपने फॉलोअर्स के सामने कर्म करने का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करते हैं जिससे प्रेरित होकर उनके फॉलोअर्स कंधे से कंधा मिलाकर अनवरत कठिन परिश्रम करते हैं।

(3.)जिम्मेदारी स्वीकार करना या उत्तरदायी होना (Accepting responsibility or being responsible):

  • नेतृत्वकर्त्ता को अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी होने के साथ-साथ अपने अंतर्गत काम करने वालों की गलतियों व असफलताओं के दायित्व को स्वीकार करने का साहस व दायित्वबोध भी होना चाहिए।ऐसा किए बिना उनके विश्वास को नहीं जीता जा सकता।जॉब करते समय सफलता और असफलता मिलती रहती है।परंतु अपने फॉलोअर्स को वही नेतृत्वकर्त्ता प्रेरित और उत्साहित कर सकता है जो असफलता का श्रेय स्वयं लेता है और सफलता का श्रेय सभी में बाँटता है।नेतृत्वकर्त्ता असफलताओं व गलतियों से सीख लेता है और उन्हें दोहराता नहीं है।फॉलोअर्स हताश होते हैं तो उनमें प्राण फूँकने का काम करता है चाहे कितनी ही जटिल परिस्थिति हो।

(4.)वस्तुनिष्ठ व्यवहार (Objective Behavior):

  • सफल नेतृत्वकर्त्ता के व्यवहार में निष्पक्षता एवं सोच में वस्तुनिष्ठता का गुण होना चाहिए।इसके लिए व्यक्तिगत संबंधों को व्यावसायिक संबंधों से बिल्कुल अलग रखा जाना चाहिए।साथ ही एक अच्छा नेतृत्वकर्त्ता अपनी व्यक्तिगत समस्याओं,कठिनाइयों और उलझनों का प्रभाव अपने जॉब पर और न ही अपने फॉलोअर्स पर पड़ने देता है।काम का बंटवारा भी निष्पक्ष ढंग से करता है ताकि फॉलोअर्स में असंतोष पैदा नहीं हो।सही व्यक्ति को सही जॉब की जिम्मेदारी सौंपता है ताकि वे जाॅब के साथ न्याय कर सकें।

(5.)साहस (courage):

  • नेतृत्वकर्त्ता को साहस का परिचय देते हुए चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए और पुरुषार्थ करना चाहिए।जो व्यक्ति आत्म-विश्वास से भरपूर व निर्भय नहीं होते हैं,उनके नेतृत्व को बार-बार चुनौतियां मिलती रहती हैं और ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व को उसके सहकर्मी लंबे समय तक स्वीकार नहीं कर पाते।इसलिए नेतृत्वकर्त्ता को साहसी होना अत्यंत जरूरी है।
  • संसार के महान कार्य साहस और आत्मविश्वास के बल पर ही किए गए हैं।साहस और आत्मविश्वास के अभाव में दोतरफा नुकसान होता है।पहला उसके फॉलोअर्स दिल से काम नहीं करते हैं और उसके सामने चुनौतियां पेश करते हैं।दूसरा जॉब को करते समय आने वाली जटिल परिस्थितियों,समस्याओं को हल नहीं किया जा सकता है और काम बिगड़ जाता है जिसकी जिम्मेदारी नेतृत्वकर्त्ता पर थोपी जाती है।

(6.)स्वनियंत्रण (Self-control):

  • नेतृत्वकर्त्ता को अपनी वाणी एवं व्यवहार,स्वनियंत्रण में रखना चाहिए।जो व्यक्ति अपनी वाणी व कार्यों को अपने दायित्व व अपेक्षाओं के अनुरूप समयानुसार नियंत्रण में नहीं रख सकता,वह दूसरों को सही नेतृत्व भी नहीं दे सकता है;क्योंकि उसके मर्यादारहित व्यवहार से उसके नियंत्रण में काम करने वाले लोग मनमानी करने लगते हैं।इसलिए स्वनियंत्रण के द्वारा ही नेतृत्वकर्त्ता दूसरों को प्रभावित कर सकता है।
  • स्पष्ट है कि जो स्वयं अपने पर नियंत्रण नहीं कर सकता है वह दूसरों को नियंत्रण में कैसे कर सकता है? जो स्वयं अनुशासन में नहीं रहता है,नियमों का पालन नहीं करता है वह दूसरों से अनुशासन में रहने की अपेक्षा कैसे कर सकता है,कैसे दूसरे लोग नियमों का पालन कर सकते हैं? स्वनियंत्रण रखने वाला नेतृत्वकर्त्ता अपने आचार-विचार,रहन-सहन,चाल-चलन को संतुलित और प्रेरणास्पद रखता है।

(7.)सही निर्णय लेने की क्षमता (Ability to make the right decisions):

  • जो व्यक्ति अपने निर्णयों को बार-बार बदलता है,उसकी निष्पक्षता और बुद्धिमत्ता संदिग्ध रहती है।इसलिए नेतृत्वकर्त्ता में ठीक प्रकार से सोच-विचार कर दूरदर्शिता के साथ सही निर्णय लेने का अभ्यास होना चाहिए।उसके द्वारा लिए गए निर्णयों को तभी कठोरता से लागू किया जा सकता है,जब वे सुविचारित एवं हर दृष्टिकोण से सही हों।
  • एकाएक और बिना सोचे समझे कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए।साथ ही लिए गए निर्णय व्यावहारिक और पालन किए जा सकने योग्य होना चाहिए।उदाहरणार्थ यदि यह निर्णय लिया जाता है कि सभी 15 घंटे काम करेंगे।हो सकता है नेतृत्वकर्त्ता 15 घंटे रोजाना काम कर सकता हो परंतु सभी फॉलोअर्स इसका पालन कर सकें यह संभव नहीं है।

(8.)स्पष्ट योजना (Clear plan):

  • सफल नेतृत्वकर्त्ता के लिए कार्य की योजना बनाना व योजनानुसार कार्य करना बहुत जरूरी है।वह केवल अनुमानों के आधार पर कोई कार्य नहीं कर सकता है।साथ ही योजना का संपूर्ण प्रारूप हर समय सार्वजनिक होना भी जरूरी है,जिससे पारदर्शिता बनी रहे।
  • योजना बनाना इतना महत्त्वपूर्ण नहीं है जितना महत्त्वपूर्ण उसका क्रियान्वयन है।सैद्धांतिक और कागजी योजना का कोई महत्त्व नहीं होता है,केवल उससे अपने आपको खुश किया जा सकता है।उदाहरणार्थ छात्र-छात्राएं अपने अध्ययन करने का टाइम टेबल बना लें और उसके अनुसार अध्ययन ही ना करें और मनमर्जी करें,मौजमस्ती करें तो उस टाइम टेबल का क्या महत्त्व है? अर्थात् कुछ भी नहीं।

(9.)सहानुभूतिपूर्ण सोच (Empathetic thinking):

  • नेतृत्व की स्वैच्छिक स्वीकृति उसके सकारात्मक एवं सहानुभूतिपूर्ण सोच से ही होती है।साथ वालों का बुरा ना हो और यथासंभव भला हो।ऐसे व्यवहार से ही दूसरों का दिल जीता जा सकता है।
  • दाब-दबाव से किसी भी कार्य को बेहतरीन तरीके से नहीं कराया जा सकता है।जो कार्य दिल से किया और कराया जाता है वही कार्य शुभ परिणाम देने वाला होता है।फॉलोअर्स दिल से कार्य करें इसके लिए उनका दिल जीतना आवश्यक है।उनका दिल जीतने के लिए उनके साथ संतुलित और मधुर व्यवहार करना चाहिए और सकारात्मक सोच रखनी चाहिए।

(10.)शालीन व्यवहार (Decent behavior):

  • कहते हैं व्यक्ति वाणी से ही अपने शुभचिंतक व दुश्मन बनाता है वाणी में मिठास व व्यवहार में शालीनता व्यक्ति को समूह में स्वीकृति दिलवाती हैं,जो नेतृत्व की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।आधुनिक युग में बहुत कुछ बदलाव आ गया है।
    पहले डिक्टेटरशिप के द्वारा फॉलोअर्स को वश में किया जा सकता था और उनसे कार्य करवाया जा सकता था।परंतु अब नेतृत्वकर्त्ता अपने मधुर व्यवहार से काम करा सकता है।यदि जॉब करने के बदले वेतन भी देते हैं तो भी कार्य को उत्कृष्ट तरीके से करने के लिए मधुर व्यवहार करना चाहिए।उज्जड़ और रूढ़ व्यवहार करने वाले नेतृत्वकर्त्ता का काम उसके अनुयायी दिल से नहीं करते हैं।

(11.)सहयोग की प्रवृत्ति (Tendency to collaborate):

  • सफल नेतृत्वकर्त्ता अपने प्रत्येक कार्य को सहकारिता,सहयोग अर्थात् एक सबके लिए सब एक के लिए की भावना से करता है।उसे समूह की भलाई में अपनी सफलता देखनी चाहिए।
  • किसी भी कार्य को टीम भावना से ही निपटाया जा सकता है।कोई व्यक्ति यह सोच ले कि उसे अपना काम कर देना है और बस फिर फ्री।परंतु आज के माहौल में ऐसा नहीं हो सकता है।तेजी से बदलती तकनीकी युग में एक-दूसरे के सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है।नेतृत्वकर्त्ता भी इस सोच के साथ सफल नहीं हो सकता है कि वह अधिकारी है,सीनियर है वह काम क्यों करें? टीम भावना से कार्य तभी किया जा सकता है जब नेतृत्वकर्त्ता स्वयं अपने अधीनस्थों के साथ मिलकर कार्य करता है।

(12.)अहंकाररहित होना (Being egoless):

  • नेतृत्वकर्त्ता में अपनी कमजोरियों या गुणों के संबंध में किसी प्रकार की ग्रंथि नहीं होनी चाहिए।उसे यथार्थ को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए।अपने सहायकों द्वारा उसका स्थान लेने का भय उसे कमजोर व अक्षम बनाता है।
  • अहंकार की अनुभूति नेतृत्वकर्त्ता को उसके फॉलोअर्स से दूर कर देती है।अहंकार के कारण नेतृत्वकर्त्ता अपने आपको सर्वेसर्वा समझता है और सारे कार्य का श्रेय स्वयं लेता है और कार्य को बिगड़ने के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराता है।अहंकार के कारण टीम में बिखराव,आपस में मनमुटाव,आपस में संघर्ष,घृणा पनपती है जबकि सच्चाई यह है कि किसी भी कार्य की सफलता में पूरी टीम का योगदान होता है।

(13.)संस्थान के प्रति समर्पण की भावना (A sense of dedication to the institution):

  • समर्पण भावना के आधार पर वह अन्य सहकर्मियों के अंदर संस्था या उद्देश्य के प्रति समर्पण को जागृत कर सकता है।जो अधिकारी अपने संस्थान के हितों के प्रति समर्पित नहीं होता,उसे अपने अधीनस्थों से भी ऐसी आशा नहीं रखनी चाहिए।
    संस्थान,संगठन या किसी भी विभाग को आगे बढ़ाने में समर्पण,निष्ठा और एकजुट रहने की भावना ही उसे आगे बढ़ाती है।समर्पण की भावना के लिए अहंकार का त्याग करना होता है और इस सोच को विकसित करना होता है कि संस्थान का हित ही उसका हित है।संस्थान की उन्नति में ही उसकी उन्नति है,संस्थान के आगे बढ़ने पर ही वह आगे बढ़ सकता है।

(14.)जानकारी की पूर्णता (Completeness of information):

  • नेतृत्वकर्त्ता को अपने संस्थान के प्रत्येक कार्य की थोड़ी या अधिक जानकारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।इसके अभाव में उसको सहायकों द्वारा मूर्ख बनाए जाने की संभावनाएँ बढ़ जाती है।
  • आज के युग में तो यह बहुत जरूरी है कि अपने आपको अपडेट और अपग्रेड करते रहना चाहिए।जो नेतृत्वकर्त्ता अपने संस्थान के कार्य की मोटी-मोटी या छोटी-छोटी बातों की जानकारी नहीं रखता है उस संस्थान के कार्यकर्त्ता अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लग जाते हैं भले संस्थान की लुटिया डूबे तो डूबे,साख खराब होती हो तो हो जाए,संस्थान दिवालिया हो तो हो जाए इन बातों का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।अतः नेतृत्वकर्त्ता को संस्थान के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने का सतत प्रयत्न करते रहना चाहिए।

(15.)संपर्कों की सुदृढ़ता (Strengthening of Links):

  • नेतृत्वकर्त्ता का व्यावसायिक और गैर-व्यावसायिक क्षेत्रों में भी संपर्क होना चाहिए तथा उनकी जरूरत के समय यथासंभव सहयोग भी करना चाहिए।इससे उसे अन्य लोगों का सहयोग मिलेगा और विश्वसनीय बन सकेगा।
  • संपर्कों से संस्थान की साख बढ़ती है।सहयोग और समन्वय से मिलकर और एकजुट रहकर कार्य करने की प्रवृत्ति पैदा होती है।अतः नेतृत्वकर्त्ता को समय-समय पर संपर्क रखना चाहिए और सहयोग करने में किसी प्रकार का संकोच नहीं करना चाहिए।संपर्कों,सहयोग और समन्वय से ही संस्थान की नींव मजबूत होती है।

(16.)अनौपचारिक संबंध (Informal Relations):

  • नेतृत्वकर्त्ता को अपने संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए परिवार में जन्मदिवस,विवाह दिवस आने पर उत्साह मनाने या किसी की मृत्यु होने पर घर जाकर अपनी संवेदना व्यक्त करने और विपत्ति के समय सहानुभूति व्यक्त करने से उसके संबंधों में प्रगाढ़ता बढ़ती है और इससे उसके नेतृत्व के प्रति अतिरिक्त विश्वास का वातावरण बनता है।
  • सहानुभूति और संवेदना के साथ यदि उनकी कुछ मदद भी की जा सके तो और बढ़िया है,इससे नेतृत्वकर्त्ता के प्रति सम्मान बढ़ता है और वे नेतृत्वकर्त्ता में अपनापन महसूस करते हैं।वे नेतृत्वकर्त्ता को दिलोजान से चाहने लगते हैं और संस्थान को आगे बढ़ाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं।

3.प्रभावी नेतृत्व का निष्कर्ष (Conclusion to Effective Leadership):

  • नेतृत्व कुशलता एक ऐसी कला है,जिसके माध्यम से बहुत आसानी से बड़े-बड़े असंभव कार्यों को भी सरलता के साथ किया जा सकता है।छोटे-छोटे कार्यों को करने के लिए भी स्व-प्रेरणा एवं मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है,जिसे स्व-नेतृत्व कहते हैं।बिना मार्गदर्शन के आगे बढ़ने में भटकाव ही होता है और किसी भी तरह की सफलता प्राप्त नहीं होती है।जैसे एक जगह एकत्र हुए लोगों की भीड़ से कुछ खास कार्य नहीं कराया जा सकता है,वहीं सेना की एक टुकड़ी के माध्यम से सही नेतृत्व द्वारा युद्ध भी जीता जा सकता है।नेतृत्व कला की यही खासियत है कि इसके माध्यम से किसी भी कार्य को बड़ी ही कुशलता,सुंदरता व आशातीत सफलता के साथ पूरा किया जा सकता है; बशर्ते इसके बहुमूल्य गुण व्यक्ति के अंदर मौजूद हों।
  • उपर्युक्त आर्टिकल में प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (18 Spells for Effective Leadership),नेतृत्व कला को विकसित करने की 18 तकनीक (18 Techniques to Develop Leadership Art) के बारे में बताया गया है।

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4.नेता से वादा (हास्य-व्यंग्य) (Promise to Leader) (Humour-Satire):

  • नेता (एम्प्लाॅई से):आपने मुझसे वादा करके अमुक काम क्यों नहीं किया,जबकि वादा करते समय तो लंबी-चौड़ी हांक रहे थे।
  • एम्प्लाॅई (नेता से):आपने भी तो मुझे वेतन में इंक्रीमेंट करने का वादा पूरा नहीं किया,वादा करते समय तो आपने मुझे बहुत से सब्जबाग दिखाए थे।

5.प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (Frequently Asked Questions Related to 18 Spells for Effective Leadership),नेतृत्व कला को विकसित करने की 18 तकनीक (18 Techniques to Develop Leadership Art) से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न:

प्रश्न:1.नेता कैसा होना चाहिए? (What should the leader be like?):

उत्तर:नेता को दिशासूचक यंत्र की तरह होना चाहिए जो लोगों,सहकर्मियों,सहायकों या फॉलोअर्स को सही रास्ता बताता हो और उस पर चलने के लिए प्रेरित करता हो।

प्रश्न:2.नेता कब भटकता है? (When does the leader go astray?):

उत्तर:जब नेता में नेतृत्व के गुण तर्क,निर्णय,विवेक आदि ना हो तो वह भटक जाता है।बाइबिल में कहा गया है कि अगर अंधा अंधे का नेतृत्व करें तो दोनों खाई में गिरेंगे।

प्रश्न:3.क्या भूतकाल में नेतृत्वकर्त्ता भविष्य में भी नेतृत्व कर सकता है? (Can a leader in the past lead into the future?):

उत्तर:भूतकाल में नेतृत्वकर्त्ता जरूरी नहीं है कि भविष्य में भी नेतृत्व करें।भूतकाल का कष्ट और कुर्बानी भविष्य के नेतृत्व के लिए हर हालत में पासपोर्ट नहीं देती।

प्रश्न:4.नेता की दुविधा क्या है? (What is the leader’s dilemma?):

उत्तर:सफलता मिलने पर सफलता के भागीदार सब बनते हैं परंतु असफलता का जिम्मेदार नेता को ही ठहराया जाता है।

  • उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर द्वारा प्रभावी नेतृत्व हेतु 18 मंत्र (18 Spells for Effective Leadership),नेतृत्व कला को विकसित करने की 18 तकनीक (18 Techniques to Develop Leadership Art) के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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